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साबरमती का संत-13: आख़िर पटना के पीएमसीएच के ऑपरेशन थियेटर क्‍यों पहुंचे थे बापू

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(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्‍ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है,  13वीं किस्त -संपादक। )

पुष्‍यमित्र, पटना:

यह बड़ा दुर्लभ तस्वीर बिहार स्टेट आर्काइव से साभार है। इस चित्र में बाईं तरफ कोने में बापू बैठे हैं। मुंह पर मास्क लगाये। सामने कई डॉक्टर नजर आ रहे हैं। यह पटना के पीएमसीएच के ऑपरेशन थियेटर का दृश्य है। तारीख 15 मई 1947, रात के 8 से 9 बजे के बीच। गांधी की पोती मनु का एपेंडिक्स का ओपरेशन चल रहा है। यह चित्र इसलिये भी दुर्लभ है क्योंकि गांधी इलाज के लिये एलोपेथी पर बिल्कुल भरोसा नहीं करते थे। वे अपना इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से ही करते थे और दूसरों को भी इस बारे में सलाह देते थे। मगर जब मनु गांधी का दर्द बरदास्त से बाहर हो गया तो उन्होने एलोपेथी की सर्जरी के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। 

 

यह उस दौर की बात है जब बिहार के साम्प्रदायिक दंगों के बाद शांति मिशन के सिलसिले में गांधी पटना आये थे। वे लगभग दो महीने मार्च से मई तक यहां रहे। मनु गांधी नोआखली से ही उनकी सेवा के लिये उनके साथ रहती थी। आखिर तक रही। पटना में गांधी मैदान के पास डा सैयद महमूद के घर में उनका ठिकाना था। गांधी इस लम्बी अवधि के दौरान जहां ठहरे थे वह छोटा सा मकान आज भी एएन सिन्हा इंस्टीटयूट के परिसर में है। मगर अब वहां लगभग कोई नहीं जाता। कोई आयोजन नहीं होता। एकाध बार इसकी मरम्मत जरूर हुई मगर अब भी उपेक्षित पड़ा है। उसी मकान में रहते हुए मनु गांधी के एपेंडिक्स का दर्द शुरू हुआ था। पहले तो गांधी ने उनका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा के जानकारों से करवाया। उन लोगों ने साफ कह दिया कि यह एपेंडिक्स का दर्द नहीं है। मगर जब एलोपेथी चिकित्सकों ने एपेंडिसाईटिस की पुष्टि की तो वे मजबूरन तैयार हो गये। ओपरेशन थियेटर में भी वे सिर्फ इसी वजह से थे, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि कौन सही है।

ओपरेशन पटना के डॉक्टर भार्गव ने किया। उनकी भतीजी भी पीएमसीएच में डॉक्टर थीं वे मनु गांधी का खास ख्याल रखती थीं। ओपरेशन के बाद जब मनु को प्राइवेट रूम में ले जाया जाने लगा तो गांधी जी ने साफ मना कर दिया यह कहते हुए कि यह तो गरीब की बेटी है। मगर डॉक्टरों ने कहा कि इनकी जेनरल वार्ड में रहने से काफी भीड़ होने लगेगी। तब बापू माने। मनु अस्पताल में 5 से 6 दिन रहीं। गांधी लगभग रोज उन्हें देखने आते। उनके आने पर मरीज भी अपने बिस्तर से उठकर मनु के कमरे के पास पहुँच जाते। तब डॉक्टरों के कहने पर गांधी रोज खुद ही अस्पताल के वार्डों का चक्कर लगाने लगे। इसके बाद मरीजों की भीड़ कम हुई। 

 

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(लेखक  एक घुमन्तू पत्रकार और लेखक हैं। उनकी दो किताबें रेडियो कोसी और रुकतापुर बहुत मशहूर हुई है। कई मीडिया संस्‍थानों में सेवाएं देने के बाद संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।