(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है, 9वीं किस्त -संपादक। )
भरत जैन, दिल्ली:
क्या आज़ादी केवल गांधीजी के कारण मिली थी? मैं नहीं मानता और मुझे ऐसा लगता है कि ऐसी बातें करके हम गांधीजी के लिए विरोध बढ़ा देते हैं। क्या वास्तव में हम मानते हैं कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद , उधम सिंह और सुभाष चंद्र बोस जैसे लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं था, जो भले ही गांधी जी की नीतियों से पूरी तरह सहमत नहीं थे। यह सभी गांधी जी का सम्मान करते थे, इस तर्क से स्वतंत्रता संग्राम में जिन लोगों ने हिंसा का रास्ता चुना था उनका महत्व कम नहीं हो जाता। जनता के मन को सबसे अधिक आकर्षित करता है त्याग और बलिदान। विशेषकर भारत जैसे देश में जहां पर की त्याग की एक बहुत पुरानी परंपरा है। भारत में गांधी जैसे त्यागमूर्ति और भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र जैसे कुर्बानी देने वाले नायकों का सदा सम्मान रहा है और रहेगा। इसलिए स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्व कम करना गांधीजी के महत्व को बढ़ाता नहीं है बल्कि अनावश्यक विवाद पैदा करता है और गांधी विरोधी शक्तियों को मजबूत करने का काम है।
एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है और सदा रहेगा जिसके लिए जान देना सबसे बड़ा बलिदान है और यदि ऐसे बलिदानियों का महत्व कम किया जाए तो हमारी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है। वैसे भी किसी भी युद्ध में विजय के पश्चात केवल सेनापति को महामंडित करना उचित नहीं है। यह केवल नीति की बात नहीं है बल्कि सत्य है कि युद्ध कोई भी सेना किसी एक व्यक्ति की बुद्धि या शक्ति के बल पर नहीं जीत सकती। कुछ बातें ऐसी हुई हैं जिससे कि गांधी विरोधी शक्तियों को बल मिला है। और यह बात हुई है केवल कांग्रेस के द्वारा सरकारी स्तर पर ही ऐसा नहीं है। बहुत से लोगों ने निजी तौर पर ऐसी बातें कही हैं जिससे कि गांधी विरोधियों को गांधी जी को नीचा दिखाने का मौका मिला है। उदाहरण के लिए कवि प्रदीप का गीत लीजिए :
दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
इस गीत का कांग्रेस पार्टी से या कांग्रेस की सरकार से कोई लेना देना नहीं है। परंतु इस तरह के गीत के बारे में यह कहकर कि केवल गांधी जी ने ही देश को आज़ादी दिलाई और केवल कांग्रेस पार्टी ही इसका लाभ उठा रही है लोगों में बहुत दुष्प्रचार हुआ है और उसका लाभ गांधी विरोधियों को मिला भी है।
फिर कहूंगा कि यह बात केवल नीति कि नहीं बल्कि सच ही है कि कितने हज़ार लोगों ने अपनी जान कुर्बान की है। उनमें से बहुतों का हमें नाम भी नहीं पता है और कितने लोगों ने अपने करियर बर्बाद कर लिए उस संग्राम के लिए हमें पता ही नहीं है। इसलिए सदा ध्यान रखें की आज़ादी और गांधी को पर्यायवाची शब्द न बनाएं। आज़ादी की लड़ाई में उसका भी योगदान है जिसने केवल चार पर्चे अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध बांटे होंगे और उसका भी है जिसने किसी सभा में वंदे मातरम या जय हिंद का नारा लगाया होगा क्योंकि उस समय यह भी एक मुश्किल काम था।
प्रसिद्ध अमेरिकन पत्रकार लुई फिशर, जिनकी गांधीजी की जीवनी 'द लाइफ ऑफ महात्मा गांधी' जो गांधीजी के बारे में सबसे विश्वसनीय मानी जाती है , उनसे बातचीत करते हुए गांधीजी ने कहा था कि चंपारण के रास्ते में वह मुजफ्फ़रपुर पहुंचे और वहां पर स्टेशन पर आचार्य कृपलानी और प्रोफेसर मलकानी बहुत से छात्रों के साथ उनको लेने के लिए उपस्थित थे। वह प्रोफेसर मलकानी के घर दो दिन रुके। गांधीजी ने कहा कि यह बड़ी असामान्य बात थी कि एक छोटे शहर में आजादी की बात करने वाले को कोई अपने घर में रखे। ऐसे ही न जाने कितने लोग होंगे जिनको हम उनके योगदान के लिए श्रेय नहीं देते। इसलिए भूल कर भी यह न कहें कि आजादी का वरदान हमें गांधीजी के कारण मिला है। यह करोड़ों भारतीय वासियों के संघर्ष का परिणाम था और बहुत से घटनाओं का परिणाम था।
जारी
इसे भी पढ़िये:
साबरमती का संत-1 : महात्मा गांधी के नामलेवा ही कर रहे रोज़ उनकी हत्या
साबरमती का संत-2 : ट्रस्टीशिप के विचार को बल दें, परिष्कृत करें, ठुकराएं नहीं
साबरमती का संत-3 : महात्मा गांधी के किसी भी आंदोलन में विरोधियों के प्रति कटुता का भाव नहीं रहा
साबरमती का संत-4 : गांधी को समझ जाएँ तो दुनिया में आ सकते हैं कल्पनातीत परिवर्तन
साबरमती का संत-5 : जनता की नब्ज़ पर कैसी रहती थी गांधी की पकड़
साबरमती का संत-6 : आज ही की तारीख़ शुरू हुआ था अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन
साबरमती का संत-7 : न हिंदी, ना उर्दू, गांधी हिंदुस्तानी भाषा के रहे पक्षधर
साबरमती का संत-8: जब देश आज़ाद हो रहा था तब गांधी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर थे
(लेखक गुरुग्राम में रहते हैं। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।