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समाजवादी-ललक-़16: लोहिया गांधी के भक्त ज़रूर थे, लेकिन गांधीवादियों के प्रशंसक नहीं

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भारतीय समाज, राजनीति और धर्म को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले अहम व्यक्तित्व से फॉलोअप रुबरू कराना चाहता है। साबरमती का संत नाम से 50 क़िस्त के मार्फत महात्मा गांधी को समझने की कोशिश की गई थी। वहीं सदी के महाचिंतक स्वामी विवेकानंद पर केंद्रित करीब 20 क़िस्त भी आपने पढ़े होंगे। धुर समाजवादी लीडर डॉ .राममनोहर लोहिया के बारे में आप गांधीवादी वरिष्ठ लेखक कनक तिवारी की क़लम से नियमित पढ़ रहे हैं। आज पढ़िये 16 वीं क़िस्त-संपादक

कनक तिवारी, रायपुर:

लोहिया के जीवनीकार ओमप्रकाश दीपक के अनुसार लोहिया गांधी जी के भक्त थे। लेकिन गांधीवादियों के प्रशंसक नहीं। बाद में उन्होंने नेताओं की इस पीढ़ी के लगभग सभी लोगों के बारे में अपनी राय दोहरायी। लेकिन उस समय देश के अधिकांश शिक्षित नवयुवकों के समान अठारह-बीस साल के राममनोहर लोहिया को भी जवाहरलाल नेहरू के चुंबकीय व्यक्तित्व ने मुग्ध कर लिया था। उन दिनों का एक किस्सा लोहिया ने सुनाया, ‘जवाहरलाल नेहरू ने एक सभा में भाषण करते हुए कहा-किंग्डम आफ हेवन इज फार पुअर‘ (स्वर्ग का साम्राज्य गरीबों का है)। उस बात को जब श्रोताओं के साथ सुना मैं भी चमत्कृत हो गया। फिर एक खट्टी सी मुस्कान, ‘यह तो मुझे बाद में मालूम हुआ कि यह वाक्य उन्होंने कहां से चुराया था।‘ (वाक्य इंजील का है)।‘‘ 

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सुभाष बोस का व्यक्तित्व भी उन्नत था। आकर्षण था। लेकिन इसके अलावा कि उनकी गांधी जी के साथ कभी नहीं बनी, लोहिया को उन्होंने शायद इसलिए भी अधिक आकर्षित नहीं किया कि उनमें सभ्यता और इतिहास संबंधी यह व्यापक दृष्टि नहीं थी जो नेहरू में थी। विश्व क्रांति और विश्व बंधुत्व का जो सपना उन दिनों खोजा जा रहा था, और भारतीय नेताओं में जिसका स्वर जवाहरलाल नेहरू में सबसे अधिक मुखर था, उसमें लोहिया जैसे नौजवानों के लिए एक सहज आकर्षण था। मधु लिमये के अनुसार लोहिया समाजवादी थे और वे ठोस सामाजिक परिवर्तनों के प्रति समर्पित थे। देश के स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बाद जो मुख्य बात लोहिया को उकसाती थी वह थी भारत व पाकिस्तान के बीच एकता और उनका फिर आपस में मिल जाना। उनकी आकांक्षा सिर्फ यह देखने की नहीं थी कि ऐसे समाज की स्थापना हो जो उनके अनुसार आर्थिक एकता, जो कि हासिल की जा सकती है, पर आधारित हो, उनकी तीव्र इच्छा सामाजिक समानता की स्थापना देखनी थी। वह अपने सात सूत्रीय प्रस्ताव के अंग के रूप में स्त्री व पुरुष के बीच सामंजस्य भी चाहते थे। लोहिया ने इन वैश्विक प्रस्तावों की विवेचना निम्नलिखित रूप से की। (1) स्त्री-पुरुष समानता के लिए। (2) रंग भेद पर आधारित असमानता के विरुद्ध। (3) सामाजिक व जातिगत असमानता के विरुद्ध तथा विशिष्ट अवसरों के समर्थन में। (4) उपनिवेशवाद तथा विदेशी शासन के विरुद्ध। (5) अधिकतम प्राप्त की जाने वाली आर्थिक समानता। (6) व्यक्तिगत गोपनीयता तथा लोकतान्त्रिक अधिकार के लिए तथा (7) हथियारों के विरुद्ध तथा आतंक के विरुद्ध नागरिक अवज्ञा के पक्ष में। यह लोहिया के समाजवाद का सार था, उन समस्याओं के सन्दर्भ में, जो भारत तथा विश्व के समक्ष थीं। 

डाॅ. सदाशिव कारंत के अनुसार इस संबंध में लोहिया ने दो नीतियां सुझाईं। एक नीति पाकिस्तान के प्रति और दूसरी देश के भीतर लागू करने के लिए पाकिस्तान के प्रति उन्होंने महासंघ बनाने की नीति की हिदायत की। उनका कहना था कि भारत को पाकिस्तान के साथ महासंघ बनाना चाहिए। चूंकि पाकिस्तान के सत्तारूढ़ वर्ग द्वारा इसके अस्वीकार किये जाने की संभावना थी। इसलिए डाॅ. लोहिया ने सुझाव दिया कि इस विचार को दोनों देशों की जनता के संबंध बढ़ाकर पाकिस्तान की जनता तक पहुंचाया जाना चाहिये। दोनों देशों की जनता के बीच यह संबंध विरोधी दलों को, विशेष रूप से समाजवादी शक्तियों को स्थापित करना चाहिए। डाॅ. लोहिया का विचार था कि महासंघ बनाने की यह नीति तभी सफल हो सकती है जबकि उससे संबद्ध आंतरिक नीतियां अपनायी जायें और उनको क्रियान्वित किया जाये। इसके लिए उन्होंने उन दो मुद्दों पर अधिक जोर दियाः (1) मुसलमानों सहित सभी भारतीय जन के लिए समान नागरिक आचार संहिता, (2) आर्थिक विकास औैर आर्थिक तथा सामाजिक समानता के लिए एक सशस्त्र नीति समान आचार संहिता हिंदू और मुसलमान के बीच के अवरोधों को दूर करके मुसलमानों को भारतीय सामाजिक जीवन की मुख्य धारा में मिलायेगी। इसमें मुसलमान स्वयं को भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग समझेंगे और उनकी अलगाववादी भावना दूर होगी। वे स्वयं को सुरक्षित भी समझेंगे। एक समाजवादी समाज स्वतः ही भारत के पहले वाले मुस्लिम समुदाय के स्तर को ऊंचा उठा देगा। भारत में ऐसा समाज बन जाने के बाद पाकिस्तान के मुसमलानों को यह अहसास होगा कि भारत और पाकिस्तान का महासंघ उनके लिए लाभप्रद है और तब पाकिस्तान में महासंघ के पक्ष में जनांदोलन होगा।

 

(जारी)

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(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं।  छत्‍तीसगढ़ के महाधिवक्‍ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।