(हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 19 वां भाग:)
मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
जनरल कनिंघम को इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने प्राचीन तक्षशिला के खण्डहरों को खोज निकाला था। लेकिन बक़ायदा इसपर काम 1912 ई के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से सर जॉन मार्शल की अगुवाई में हुआ। तक्षशिला, जिसे पाली में तक्कसिला कहा गया-यह प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी था और शिक्षा का बड़ा केंद्र भी। सनातन और बौद्ध-दोनों धर्मों का यह सेंटर रहा।
कहते हैं कि फ़ाहयान भी यहां आया था। यह 405 ई की बात है। हमें रावलपिंडी में बताया गया था कि रावलपिंडी के निकट ऐतिहासिक स्थल टेक्सला है, जिसे देखने की हमने इच्छा प्रकट की। अतः प्रातः 9:00 बजे हम कार के द्वारा तक्षशिला की ओर रवाना हुए।
पाकिस्तान में तक्षशिला को अंग्रेजी और उर्दू में टेक्स्ला लिखा जाता है। यह रावलपिंडी जनपद ( पंजाब प्रांत) की तहसील है। तक्षशिला रावलपिंडी से पेशावर जाने वाली जी टी रोड पर 32 किलोमीटर की दूरी पर मरगल्ला की पहाड़ियों पर समुद्र तल से 1800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। लगभग 1 घंटे की यात्रा के पश्चात तक्षशिला पहुंचकर पाकिस्तान पर्यटन विकास निगम के गेस्ट हाउस के सामने रुके। वहां एक व्यक्ति ठेले पर भुट्टे बेच रहा था। इसे देखकर अचानक अधिकांश लोगों को भूख लगने लगी। भुट्टों की विशेषता यह थी कि वह सीधे आग पर नहीं भूने जा रहे थे बल्कि जैसे कढ़ाई में रेत डालकर मूंगफली भूनी जाती हैं उसी प्रकार कढ़ाई में रेत के स्थान पर लाहौरी नमक, जिसे यहां सेंधा नमक भी कहते हैं, डालकर भुट्टे भूने जा रहे थे, जो खाने में बहुत स्वादिष्ट लगे।
भुट्टे खा कर और कुछ पेयजल लेकर हमने टिकट खरीदे और सामने बने संग्रहालय के अंदर चले गए। म्यूजियम के अंदर कुछ बड़े आकार की गौतम बुद्ध की मूर्तियां रखी हुई थी तथा कुछ छोटे आकार की गौतम बुध्द की मूर्तियां शीशे की अलमारी के अंदर रखी गई थी। खुदाई में निकले हुए बर्तन, हथियार, सुनार के औजार, पुराने सिक्के और विभिन्न प्रकार की वस्तुएं शीशे की अलमारी में रखी हुई थीं। लगभग 1 घंटे तक संग्रहालय में रखी अनेकों अद्भुत वस्तुओं को देखकर आश्चर्यचकित होते रहे। संग्रहालय में काफी सफाई थी तथा विभिन्न वस्तुओं को भलीभांति सजाया गया था। म्यूजियम के अंदर कुछ चित्र कैमरे में बंद करके हम बाहर आ गए।
जारी
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पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्तान, तो क्या हुआ पढ़िये दमदार संस्मरण
दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्तानी
तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण
चौथा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा
पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: दरवाज़े पर ॐ लिखा पत्थर और आंगन में तुलसी का पौधा
छठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे
सातवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक
आठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना
नौवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची के रत्नेश्वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता
दसवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान
11वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची
12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़
13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म
14 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : 18 वीं शताब्दी के इस गुरुद्वारे की दीवारें हैं पांचवें गुरु अर्जुन देव की शहादत की गवाह
15 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : अज़ान और अरदास की जुगलबंदी- गुरुद्वारे के पास ही है लाहौर में बादशाही मस्जिद
16 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : लाहौरी क़िला और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि- न रख और न रखाव
17 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : मुग़ल बादशाह शाहजहां ने लाहौर के शाहदरा बाग़ में बनवाया था जहांगीर का मक़बरा
18 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : जब लाहौर से रावलपिंडी तक जीटी रोड पर दौड़ पड़ी 129 किलोमीटर की स्पीड से कार
(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्वतंत्र लेखन )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।