(हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 18 वां भाग:)
मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
लाहौर में संबंधियों से मिलने और वहां के ऐतिहासिक स्थल देखने के बाद हम रावलपिंडी के लिए रवाना हो गए। लाहौर से रावलपिंडी जाने के लिए 2 मार्ग हैं। एक पुराना प्रसिद्ध जीटी मार्ग जो कोलकाता से दिल्ली, लाहौर और रावलपिंडी होते हुए पेशावर तक शेरशाह सूरी के द्वारा बनवाया गया था। यह चार लेन मार्ग है जिसके द्वारा लाहौर से पिंडी 260 किलोमीटर है परंतु इसमें समय बहुत अधिक लगता है। दूसरा छह लेन का मार्ग बाद में बनाया गया है जिसे मोटरवे कहा जाता है। इस मार्ग से रावलपिंडी लाहौर से 390 किलोमीटर है। परंतु इस पर समय कम लगता है। इस मार्ग की विशेषताएं भी कई हैं।
इस मार्ग पर केवल चार पहिया वाहन अर्थात ट्रक, बस और कार ही चलते हैं। मोटरसाइकिल, ऑटो रिक्शा, साइकिल तथा बैलगाड़ी आदि चलाना वर्जित है। थोड़े-थोड़े अंतराल से मार्ग के दोनों ओर कैमरे लगे हैं। निर्धारित गति से अधिक तेज चलने पर कैमरे की पकड़ में आने से गाड़ी का चालान हो जाता है। कार के लिए निर्धारित गति सीमा 120 किलोमीटर प्रति घंटा है परंतु अधिकतम 129 किलोमीटर की रफ्तार से जा सकते हैं। थोड़े थोड़े अंतराल के पश्चात टेलीफोन बूथ की सुविधा उपलब्ध है ताकि वाहन खराब होने पर मोबाइल कार्यशाला को बुलाया जा सकता है। छह लेन के अतिरिक्त मार्ग के दोनों और एक अन्य अतिरिक्त लेन बनाई गई है जिस पर पुलिस का वाहन गश्त करता रहता है जिसके कारण यात्री भी सतर्क होकर गाड़ी चलाते हैं।
मार्ग के दोनों और किनारे पर रेलिंग लगी हुई है ताकि किसी जानवर आदि के सड़क पर आने से कोई दुर्घटना न हो एवं यातायात भी बाधित न हो।
अतः इसी मार्ग से रावलपिंडी के लिए रवाना हुए। लाहौर और रावलपिंडी के मध्य जगह-जगह मार्ग से थोड़ा हटकर पेट्रोल /सीएनजी फिलिंग स्टेशन बने हुए हैं जिनके साथ ही जलपान वह भोजन के लिए साफ-सुथरे होटल भी हैं। कार में गैस भरवाने के लिए और जलपान के लिए एक स्थान पर कुछ समय के लिए रुके। होटल में काफी चहल-पहल और भीड़ दिखाई दी। होटल के बाहर छोटी-छोटी कुछ ऐसी दुकानें भी थीं जिनमें खाने के सामान के अलावा बच्चों की दिलचस्पी का सामान भी मौजूद था। यहां पर चारों तरफ काफी हरियाली थी और खूबसूरत फूलों के पौधे भी लगे थे जिन्होंने इस स्थान की सुन्दरता को बढ़ा दिया था। भारत की तरह यहां भी मोटरवे पर टोल टैक्स वसूलने के लिए जगह जगह टोल प्लाज़ा बने हुए थे। रास्ते में कई जगह छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच से भी गुजरना हुआ जहां ठंडी हवा के सुखद झोंके रास्ते की थकान को दूर कर रहे थे। इस तरह हम 4 घंटे में लगभग 400 किलोमीटर की यात्रा करके रावलपिंडी पहुंच गए। यात्रा काफी सुखद रही तथा पहली बार 129 किलोमीटर की स्पीड से कार चलाने का आनंद भी प्राप्त हुआ।
जारी
सभी क़िस्त पढ़ने के लिए यहां पढ़ें
पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्तान, तो क्या हुआ पढ़िये दमदार संस्मरण
दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्तानी
तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण
चौथा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा
पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: दरवाज़े पर ॐ लिखा पत्थर और आंगन में तुलसी का पौधा
छठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे
सातवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक
आठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना
नौवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची के रत्नेश्वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता
दसवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान
11वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची
12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़
13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म
14 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : 18 वीं शताब्दी के इस गुरुद्वारे की दीवारें हैं पांचवें गुरु अर्जुन देव की शहादत की गवाह
15 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : अज़ान और अरदास की जुगलबंदी- गुरुद्वारे के पास ही है लाहौर में बादशाही मस्जिद
16 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : लाहौरी क़िला और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि- न रख और न रखाव
17 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : मुग़ल बादशाह शाहजहां ने लाहौर के शाहदरा बाग़ में बनवाया था जहांगीर का मक़बरा
(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्वतंत्र लेखन )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।