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पाकिस्तान यात्रा-17: मुग़ल बादशाह शाहजहां ने लाहौर के शाहदरा बाग़ में बनवाया था जहांगीर का मक़बरा

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(हिंदी के वरिष्‍ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्‍होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 17 वां भाग:)

मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
क़िले से बाहर आए तो किले के सामने उत्तर की ओर एक बहुत ऊंची मीनार दिखाई दी। इसके बारे में ज्ञात हुआ कि यह मीनार-ए-पाकिस्तान है। इसका निर्माण उस स्थान पर किया गया है जहां 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग की लाहौर में हुई बैठक में मुस्लिम लीग के द्वारा टू नेशन थ्योरी के अंतर्गत प्रथम मुस्लिम देश बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया था। इसका निर्माण 1960 से 1968 की अवधि में किया गया। इसकी ऊंचाई 70 मीटर है। इस स्थल को एक पार्क का स्वरूप दिया गया है जिसे इकबाल पार्क कहते हैं। समय की कमी के कारण इसके अन्दर नहीं गए, केवल दूर से ही इसे देखकर आगे बढ़ गए, क्योंकि दोपहर के खाने का समय भी हो गया था। आस पास कोई होटल नहीं था इसलिए निर्णय लिया गया कि फूड स्ट्रीट चलते हैं। फूड स्ट्रीट पर एक पुरानी बिल्डिंग को विभिन्न रंगों के पेंट करके अत्यंत सुंदर बनाया गया है और अनोखे ढंग से सजाया गया है।  यहां पर छोटे-छोटे बहुत से रेस्टोरेंट हैं। इन रेस्टोरेंट में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन की बेशुमार वैरायटी मिलती हैं। हमारे भाई ने बताया कि रात में यहां बहुत रौनक होती है। विभिन्न रंगों की लाइटों से यह मार्केट चमकता रहता है और भीड़ भी अधिक होती है।

 

खाना खाकर हम लोग जहांगीर की समाधि की ओर चल दिए। मकबरे के अन्दर जाने के लिए कोई टिकट नहीं लेना पड़ता है। यह मकबरा शाहदरा बाग़ में स्थित है। मुगल सम्राट जहांगीर ने 1605 ईस्वी से 1627 ईस्वी तक भारत पर शासन किया तथा उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें लाहौर में दफन किया गया। लगभग 10 वर्ष पश्चात उनके पुत्र सम्राट शाहजहां के द्वारा उनका मकबरा बनवाया गया।

 

जहांगीर का मकबरा लाल पत्थर से ताजमहल के डिजाइन का बना हुआ है बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि जहांगीर के मकबरे के डिजाइन व आर्किटेक्चर में कुछ सुधार करके आगरा का ताजमहल बाद में सफेद पत्थर से शाहजहां के द्वारा बनवाया गया। मकबरे के अंदर जाने के लिए एक मुख्य द्वार है। इसके अंदर जाकर बीच में पानी के झरने बहते हैं और दोनों और पौधे लगे हुए हैं। आगे जाकर मुख्य भवन है जिसकी दीवारों पर ताजमहल की तरह कुरान की आयतें लिखी हूई हैं और विभिन्न रंगों के पत्थरों से फूल वह पत्तियां बनी हुई हैं।

 

भवन के अंदर सम्राट जहांगीर की कब्र है जो सफेद मार्बल की बनी हुई है तथा उस पर ताजमहल में शाहजहां की कब्र की तरह पत्थर को खोदकर विभिन्न रंगों के पत्थरों से फूल व पत्तियां बनाई गई हैं। इसके अतिरिक्त कब्र पर अल्लाह के विभिन्न नाम अरबी में लिखे हुए हैं। ताजमहल जो शाहजहां की पत्नी मुमताज महल का मकबरा है उसमें मुमताज महल के साथ शाहजहां की कब्र भी है परंतु जहांगीर के मकबरे में केवल जहाँगीर की कब्र है। यहां पर भी पर्यटकों की संख्या ना के बराबर थी। पाकिस्तान के 1000 के नोट पर जहांगीर का मकबरा दर्शाया गया है। 
 

जारी

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पहला भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्‍तान, तो क्‍या हुआ पढ़िये दमदार संस्‍मरण

दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें:  पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्‍तानी

तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण

चौथा भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा

पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: दरवाज़े पर ॐ  लिखा पत्‍थर और आंगन में तुलसी का पौधा

छठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे

सातवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक

आठवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना

नौवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची के रत्‍नेश्‍वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता

दसवां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान

11वां भाग पढ़ने के लिए क्‍लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची

12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़

13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म

14 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : 18 वीं शताब्दी के इस गुरुद्वारे की दीवारें हैं पांचवें गुरु अर्जुन देव की शहादत की गवाह

15 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : अज़ान और अरदास की जुगलबंदी- गुरुद्वारे के पास ही है लाहौर में बादशाही मस्जिद

16 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : लाहौरी क़िला और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि- न रख और न रखाव

 

(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्‍वतंत्र लेखन )

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।

 

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