(हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 14 वां भाग:)
मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
इंडिया से आने के बाद रात में लाहौर रुके। यहां से हमें रावलपिंडी जाना था परंतु 1 दिन का समय हमारे पास था। अतः हम ने लाहौर के ऐतिहासिक स्थल देखने का प्रोग्राम बनाया। हमें बताया गया कि लाहौर में बहुत से ऐतिहासिक स्थल हैं परंतु किला, बादशाही मस्जिद और गुरुद्वारा पास पास हैं, अतः पहले वहां चलते हैं। प्रातः 9:00 बजे हम घर से रवाना हो गए। लाहौर में कार चलाने के शौक में मैं ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। रास्ते में अनारकली बाजार की ओर से भी गुज़रे। उस समय हमें फिल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' और फिल्म 'अनारकली' की याद आ गई। समय की कमी के कारण हम अनारकली बाजार में नहीं गए, परंतु दूर से वहां की भीड़ और सजी हुई दुकानें देखलीं। मेरी बहन ने मुझ से कहा कि चौराहे के नजदीक पहुंचकर कार की लेन मत बदलना और गाड़ी भी सावधानी से चलाना यहां चालान हो जाता है। मैंने सोचा कि अच्छा हुआ बता दिया वरना हमें तो चौराहे पर पहुंचकर मौका देखकर किसी भी लाइन में खड़े होने की आदत थी। इसके बाद इस आदत को बदल दिया। रास्ते में शहर के अंदर एक जगह आने जाने वाली दो सड़कों के बीच में नहर बह रही थी जिसने उस स्थान की सुंदरता बढ़ा दी थी। जल्द ही हम गंतव्य स्थान पर पहुंच गए।
पहले दाएं हाथ पर गुरुद्वारा था और पास में ही इसी हाथ पर बादशाही मस्जिद तथा सामने की ओर बाएं हाथ पर लाहौर किला दिखाई दे रहा था। गुरुद्वारे का निर्माण 18 वीं शताब्दी में हुआ था। यहां सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव शहीद हुए थे। गुरुद्वारे के आस पास हमें सिख भाई दिखाई दिए जिनमें कुछ पैंट शर्ट पहने थे तथा कुछ सलवार और कमीज में थे। हम गुरुद्वारे के मुख्य द्वार पर पहुंचे। द्वार पर उपस्थित गार्डों ने हमें अंदर जाने से रोक दिया। उनके द्वारा बताया गया कि गुरुद्वारे के अंदर केवल सिख ही जा सकते हैं। हमारे बार बार निवेदन करने पर उन्होंने बताया कि क्योंकि पाकिस्तान में आतंकी हमले होते रहते हैं अतः गुरुद्वारे की सुरक्षा और किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए सरकार ने यह नियम बनाए हैं। इसी समय अंदर से कुछ सिख भाई आते दिखाई दिए जो गुरुद्वारे के प्रबंधन से संबंधित लग रहे थे। हमने उन्हें बताया कि हम इंडिया से आए हैं तथा वहां किसी भी गुरुद्वारे में हमारा जाना प्रतिबंधित नहीं है। इंडिया का नाम सुनकर वह कुछ देर खामोश रहे फिर कुछ सोचकर हमें अपने साथ गुरुद्वारे में ले गए।
वह पहले एक बड़े हॉल में ले गए जहां दो व्यक्ति कुछ पाठ कर रहे थे। उसके बाद दूसरे कमरे में गए जहां एक वृद्ध आयु के व्यक्ति पाठ में लीन थे। फिर वह हमें खुले भाग में ले आए जहाँ हमने उनसे पूछा कि वह बटवारे के समय इंडिया क्यों नहीं चले गए। उन्होंने जवाब देने के बजाय उल्टा हम से सवाल किया कि हम पाकिस्तान क्यों नहीं आए। हम ने उनसे फिर पूछा कि वे पाकिस्तान में रह रहे हैं जहां सरकार भी मुसलमानों की है और शहर में संख्या भी मुसलमानों की अधिक है ऐसी परिस्थिति में क्या उनके अंदर कोई भय या अन्य किसी प्रकार की भावना उत्पन्न होती है। पहले तो वे हंसे फिर जवाब दिया। ऐसी कोई बात नहीं है, यहां हम सब प्यार मोहब्बत से रहते हैं । वह पंजाबी के अतिरिक्त हिंदी और उर्दू भी अच्छी बोल रहे थे उन्होंने बताया कि हमें यहां अपने धर्म के अनुसार पूजा पाठ करने और रहने की आजादी है। उन्होंने बताया कि करतारपुर में गुरु नानक देव जी का गुरुद्वारा है जहां इंडिया से बहुत से सिख श्रद्धालु आते है। इसके अलावा हसन अब्दाल में प्रसिद्ध गुरुद्वारा पंजा साहब भी है। गुरुद्वारे में वैशाखी पर मेला भी लगता है
जारी
सभी क़िस्त पढ़ने के लिए यहां पढ़ें
पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्तान, तो क्या हुआ पढ़िये दमदार संस्मरण
दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्तानी
तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण
चौथा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा
पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: दरवाज़े पर ॐ लिखा पत्थर और आंगन में तुलसी का पौधा
छठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे
सातवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक
आठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना
नौवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची के रत्नेश्वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता
दसवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान
11वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची
12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़
13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म
(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्वतंत्र लेखन )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।