(हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 23 वां भाग:)
मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
रावलपिंडी में सभी निकट संबंधियों से मिलने तथा ऐतिहासिक और अन्य स्थलों का भ्रमण करने के पश्चात हमें कराची के लिए प्रस्थान करना था। रावलपिंडी से कराची जाने के लिए सड़क मार्ग को चुना गया ताकि रास्ते में विभिन्न शहरों में रहने वाले संबंधियों से भी मिल लें और रास्ते में पड़ने वाले ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण भी हो सके। वैसे भी रेल यात्रा के लिए सब ने मना किया। इसके लिए हमें फिर लाहौर वापस जाना था। हमें बताया गया कि लाहौर के रास्ते में रावलपिंडी से 140 किलोमीटर दूर मोटरवे से पूरब की दिशा में लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर खेवड़ा में नमक की प्रसिद्ध ऐतिहासिक खाने हैं। भारत में हम महाराष्ट्र में कोयले की खान देख चुके थे जो बहुत रोचक लगी थीं। अब नमक की खान देखने की उत्सुकता उत्पन्न हुई। 140 किलोमीटर चलने के बाद हमारी कार मोटरवे से उतरकर एक पतली सी सड़क पर मुड़ गई। लगभग 40 मिनट इस सड़क पर चलने के बाद हम खेवड़ा पहुंच गए। खेवड़ा पाकिस्तान के पंजाब राज्य में जनपद झेलुम का शहर है। खेवड़ा कान के एक अधिकारी हमारे बहनोई के मित्र थे, जिन्होंने वहां के गेस्ट हाउस में हमको ठहरा दिया। इतने हम सब फ्रेश हुए इतने कुछ खाने का सामान व चाय आ गई। नाश्ता करने के पश्चात हम खान के मुख्य द्वार पर पहुंच गए।
अंदर जाने के लिए रेल की पटरियां बिछी हुई थी जिन पर चार व्यक्तियों के बैठने के लिए छोटे-छोटे 8 डब्बे एक इंजन के द्वारा खींचकर अंदर ले जाए जा रहे थे। हम रेलगाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे। इस अवधि में हमने नमक की खान का इतिहास पढ़ा जो एक बड़े से बोर्ड पर लिखा हुआ था। जिसके अनुसार ईसा मसीह से 326 वर्ष पूर्व जब सिकंदर और पोरस के युद्ध के समय सिकंदर ने झेलुम मियांवाली क्षेत्र में पहुंचकर विश्राम किया तो उस की फौज के घोड़े इस क्षेत्र की पहाड़ियों के पत्थरों को चाट रहे थे। यह देख कर उसके सिपाही चौंके और इस से उन्हें ज्ञात हुआ कि यह पहाड़ियां नमकीन हैं। इस प्रकार इन नमक की खानों की खोज किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं बल्कि घोड़ों के द्वारा की गई। परंतु उसके पश्चात इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। 1520 ईस्वी में खेवड़ा के स्थानीय लीडर एएसपी खान के द्वारा मुगल सम्राट अकबर को इसकी सूचना दी गई जिनके द्वारा इस नमक को निकालने का कार्य आरंभ कराया गया। 1809 ईस्वी में सिखों द्वारा इन माइंस को ले लिया गया।
1850 ईस्वी में अंग्रेज शासकों द्वारा इन पर कब्जा कर लिया गया। 1872 ईस्वी में माइनिंग इंजीनियर डॉक्टर रैथ ने इस क्षेत्र का विस्तृत सर्वे किया और वैज्ञानिक तरीके से नमक निकालना आरंभ किया और मुख्य सुरंग जो भूतल के स्तर पर है, का निर्माण कराया। तत्पश्चात नमक की खान के अंदर सुरंग का डिजाइन व लेआउट बीसवीं शताब्दी के आरंभ में चौधरी नियाज़ अली खान ने तैयार किया। चौधरी नियाज़ अली ने 1980 में थोमसन इंजीनियरिंग कॉलेज रुड़की, जो अब आई0आई 0टी0 रुड़की में परिवर्तित हो गया है, से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। नमक के पहाड़ों की लंबाई 300 किलोमीटर, चौड़ाई 8 से 30 किलोमीटर और ऊंचाई 2200 से 4990 फिट तक है जिसमें नमक की कान का भूमिगत क्षेत्रफल 110 वर्ग किलोमीटर है। एक अनुमान के अनुसार 22 करोड़ टन नमक इन कानों में उपलब्ध है। इस समय 4.65 टन नमक प्रति वर्ष निकाला जाता है। इन कानों में विभिन्न प्रकार का नमक उपलब्ध है जैसे पारदर्शी सफेद, पिंक व लाल नमक।
जारी
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पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्तान, तो क्या हुआ पढ़िये दमदार संस्मरण
दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्तानी
तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण
चौथा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा
पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: दरवाज़े पर ॐ लिखा पत्थर और आंगन में तुलसी का पौधा
छठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे
सातवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक
आठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना
नौवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची के रत्नेश्वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता
दसवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान
11वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची
12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़
13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म
14 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : 18 वीं शताब्दी के इस गुरुद्वारे की दीवारें हैं पांचवें गुरु अर्जुन देव की शहादत की गवाह
15 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : अज़ान और अरदास की जुगलबंदी- गुरुद्वारे के पास ही है लाहौर में बादशाही मस्जिद
16 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : लाहौरी क़िला और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि- न रख और न रखाव
17 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : मुग़ल बादशाह शाहजहां ने लाहौर के शाहदरा बाग़ में बनवाया था जहांगीर का मक़बरा
18 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : जब लाहौर से रावलपिंडी तक जीटी रोड पर दौड़ पड़ी 129 किलोमीटर की स्पीड से कार
19 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : तक्षशिला की सैर-कभी सनातन और बौद्ध धर्मों का रहा केंद्र
20 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : श्रीराम के भाई भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर बसा था तक्षशिला
21 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : विश्व के इस प्राचीन विश्वविद्यालय की दीवारें कुछ कहती हैं आप से
22 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इसी गुरुद्वारा पंजा साहब में हैं गुरु नानक देव के पाक कर-चिन्ह
(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्वतंत्र लेखन )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।