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साबरमती का संत-44: बापू ने कहा था-भारत हिन्दू इंडिया नहीं और न कांग्रेस केवल हिन्दुओं का संगठन

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(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्‍ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। पेश है,  44वीं किस्त -संपादक। )

कनक तिवारी, रायपुर:

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि एक चतुर बनिया गांधी ने कांग्रेस को भंग कर देने कहा था। उन्होंने पूरी बात नहीं कही। गांधी चतुर भी थे और बनिया भी थे, लेकिन चतुर बनिया नहीं थे। आजादी के युद्ध के सेनापति थे। चतुराई के बनिस्बत सत्य और अहिंसा का प्रयोग कर इतिहास में मौलिक जगह सुरक्षित कर ली है। बनिया का चतुर व्यापार सामाजिक समझ के अनुसार असत्य और हिंसा पर टिका होता है। झूठ और हिंसा व्यापार के पैर होते हैं। व्यापार उनकी बैसाखी पर चलता है। यह बात अम्बानी, अदानी और मोदी तथा शाह जैसे कारपोरेटिये और उनके प्रोत्साहनकर्ता समझते होंगे। जनसेवा व्यापार नहीं है। आजादी के बाद भविष्य को लेकर गांधी ने अपनी प्रार्थना सभाओं में बहुत कुछ कहा है। वे कांग्रेस के लिए फिक्रमन्द, उम्मीदजदा और ऊपरी तौर पर तटस्थ भी होते थे। एक पत्रकार ने उनसे 24 जुलाई 1947 की प्रार्थना सभा में पूछा कि कांग्रेस तो सत्य और अहिंसा के रास्ते आजादी के लिए लड़ने का ऐलान करती रही। आजादी के बाद कांग्रेस क्या करेगी? गांधी ने पहले कहा कि इसके बारे में कांग्रेस ही बता पाएगी। फिर खुलकर बोले ‘कांग्रेस का विनम्र सेवक होने के नाते मानता हूं कि हमने विद्रोह कर विदेशी हुकूमत को खत्म किया है। हम बाहरी तौर पर सत्य और अहिंसा के साथ रहे। हमारे अंदर हिंसा तो भरी थी। हमने पाखंड का भी इस्तेमाल किया। उससे तरह तरह की पारस्परिक तकलीफें हुईं। आज भी हमारा दृष्टिकोण युद्धपरस्त है। अगर इससे नहीं हटे तो बड़ा खतरा आएगा। यह 1857 के गदर की तरह हो सकता है। उस वक्त हिंदुस्तान में मुनासिब चेतना नहीं होने से 1857 का युद्ध केवल सिपाहियों तक सीमित रह गया। अंगरेजों को मारा गया। बाद में अंगरेजी सेना ने अपने विरोधियों को मार दिया।

 

गांधी ने कहा कि वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि देश का मौजूदा जीवन हिंसा से सना हुआ नहीं रहे। सैकड़ों हजारों ने देश की आजादी के लिए कुर्बानियां दी हैं। हम गफ़लत में रहे तो इंग्लैंड, रूस, अमेरिका या चीन कोई भी हमारे देश पर हमला कर हमें गुलाम बना सकता है। कौन चाहेगा कि आने वाले 15 अगस्त को हिंदू मुसलमान और सिक्ख आपस में लड़ते कटते रहें। बेहतर है कोई भूकंप ही आ जाए। हम सब उसमें समा जाएं। गांधी ने कहा कांग्रेस पूरे भारत की पार्टी है। उसे देखना है कि हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सभी धर्मों, जातियों के लोग सुखी रहें। मैं कतई नहीं कहना चाहता कि कांग्रेस केवल मुसलमानों को खुश करे या कायर बनी रहे। मैंने कायरता की पैरवी कभी नहीं की। बहादुरी के साथ शांति की स्थापना कांग्रेस का मुख्य कार्यक्रम होना चाहिए। 28 जुलाई, 1947 को गांधी ने फिर कहा। भारत का विभाजन दो सार्वभौम इलाकों का विभाजन है। मूल भारत को दो राष्ट्र क्यों समझा जाए। दोनों मुल्कों में कांग्रेस काम कर सकती है। भारत संघ के अंतर्गत कोई सामंती राज्य हो तो क्या वहां कांग्रेस काम नहीं करेगी? कांग्रेस को बेहतर सियासी सूझबूझ, गम्भीर बहस मुबाहिसा और व्यावहारिक फैसले और हल ढूंढ़ने होंगे। उनकी उसे उसकी फिलहाल कल्पना भी नहीं होगी।

मुसलमानों ने भले ही अपना अलग राष्ट्र बना लिया है, लेकिन भारत हिन्दू इंडिया नहीं है। कांग्रेस केवल हिन्दुओं का संगठन नहीं बन सकती। जो करेंगे वे भारत और हिन्दू धर्म का नुकसान करेंगे। करोड़ों हैं जिनकी आवाज सुनी नहीं जाती। केवल शहरी वाचाल समझते हैं कि वे देश की अगुआई कर रहे हैं। वे उपेक्षित करोड़ों लोगों के प्रतिनिधि नहीं हैं। हिंदुस्तान को रचने वाले मुसलमान कभी नहीं कहते कि वे भारतीय नहीं हैं। अपनी कमजोरियों के बावजूद हिंदू धर्म ने कभी नहीं कहा कि उसे बटवारा चाहिए। कई धर्मों के मानने वालों ने मिलकर हिंदुस्तान बनाया है। वे सब भारतीय हैं। एक दूसरे को प्रताड़ित करने का किसी को अधिकार नहीं है। तलवार की जोर पर आजमाई ताकत के बदले सत्य की ताकत बड़ी होती है। चिमनलाल एन शाह की शिकायत के कारण गांधी ने यूं ही अलबत्ता लिख दिया कि यदि कांग्रेस सड़ गई है तो उसका मर जाना ही बेहतर है। सड़ी चीजों की दुनिया में बदबू फैलाने की क्या ज़रूरत है? 14 नवम्बर 1947 की प्रार्थना सभा में कांग्रेस से उपेक्षित गांधी ने कहा कांग्रेस स्वराज्य लाना चाहती थी। जो मिला वह स्वराज्य तो नहीं है। ऐसी हालत में इस संस्था को भंग कर दिया जाना चाहिए। हम सबको पूरी ताकत के साथ देश सेवा में लग जाना चाहिए। 

जयप्रकाश नारायण में असीमित ताकत है। लेकिन वे पार्टीबंदी के कारण आते नहीं हैं। देश को जहां मिले ऊर्जावान लोगों का लाभ लेना चाहिए। गांधी ने 18 नवम्बर, 1947 को डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद से बातचीत में कहा कि मौजूदा हालात में तो कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए या फिर बहुत ऊर्जावान व्यक्ति के नेतृत्व में जिंदा रखा जाना चाहिए। यहां गांधी समग्र विचार के बाद कांग्रेस को भंग कर देने का निर्विकल्प प्रस्ताव नहीं रच रहे थे। जाहिर है कि वे कांग्रेस की लीडरषिप से पूरी तौर पर नाखुश थे। कांग्रेस के सताधारी नेताओं के लिए गांधी की शख्सियत और शिक्षाओं का कोई मतलब नहीं रह गया था। गांधी कई त्रासदियों और यातनाओं को भोगने वाले लोगों को ढाढस बंधाकर मानो अपनी हत्या करवाने फिर दिल्ली आ गए थे। मरने के एक पखवाड़े पहले गांधी ने 16 जनवरी, 1948 को एक पत्र में लिख दिया था कि कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी है। इसी रूप में वह कायम रहेगी। उसे राजनीतिक सत्ता मिलेगी तो वह देश की कई पार्टियों में से केवल एक पार्टी कहलाएगी।

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(गांधीवादी लेखक कनक तिवारी रायपुर में रहते हैं।  छत्‍तीसगढ़ के महाधिवक्‍ता भी रहे। कई किताबें प्रकाशित। संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।