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आदिवासी महोत्सव में शामिल हुए सीएम हेमंत सोरेन, कहा- देश की 13 करोड़ आदिवासी को एक होकर लड़ना और बढ़ना होगा 

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द फॉलोअप डेस्क, रांची 


विश्व आदिवासी दिवस को लेकर झारखंड में पिछले दो सालों से 9 और 10 अगस्त को आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इसकी शुरुआत झारखंड की वर्तमान की हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड आदिवासी महोत्सव के रूप में किया। इस दौरान रांची के बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी महोत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा, राज्य अलग हुए एक लंबे समय के बाद इस राज्य में दूसरी बार आदिवासी महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन हुआ है. पिछली बार घनघोर बारिश के बीच में भी इस महोत्सव को बड़ी मजबूती के साथ और काफी हर्षोल्लास के साथ धूमधाम के साथ मनाया गया. आज फिर से उस आदिवासी महोत्सव की अपेक्षा आज का जो आदिवासी महोत्सव है वह और भी भव्य और उत्साह भरा दिख रहा है. आज इस दो दिवसीय महोत्सव के उद्घाटन मेला में इस महोत्सव के अपनी एक मायने है. और आज की परिस्थिति में यह दिवस और भी कई महीनों से महत्वपूर्ण भी है. दो दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में देश में विभिन्न राज्यों से आए हुए आदिवासी समुदाय अपने नृत्य और अपने गांव को प्रस्तुत करेंगे साथी आदिवासी समाज के समस्या और अन्य सामाजिक समस्या के विषयों के पर कार्यक्रम होना है.

आज भी आदिवासी समाज देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे हैं प्रताड़ित 

आज मैं आदिवासी महोत्सव पर बेजिझक कहना चाहूंगा देश के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे आदिवासी भाई बहन प्रताड़ना झेलने को विवश हैं. वह अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर है. क्या मध्यप्रदेश, मणिपुर, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और तमिलनाडु। मणिपुर में हजारों घर जल कर खाक हो गौए. महिलाओं की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया.आदिवासी भाइयों पर पेशाब किया जा रहा है तो कहीं उन्हें बांधकर पीटा जा रहा है. दरअसल यह संघर्ष है धार्मिक कट्टरपंथियों और जियो और जीने दो के उदार ताकतों के बीच, संघर्ष है जातिवाद और वर्तमान समृद्ध करने वाले व्यक्तियों के बीच. संघर्ष है प्रकृति पर कब्जा करने वाले विनाशकारी शक्तियों के बीच.


सभी आदिवासी समुदायों को एक होना होगा 

मैं देश के लगभग 13 करोड़ से ज्यादा आदिवासी भाई-बहनों से एक होकर लड़ने और बढ़ाने की अपील करता हूं. मुंडा, कुकी, मीणा, संथाल, असुर, उरांव आदि सभी को एक होकर सोचना होगा। आज देश का आदिवासी बिखरा हुआ है. हम धर्म और क्षेत्र के आधार पर बटे हुए हैं. जबकि सबकी संस्कृति एक है, खून एक है, तो समझ भी एक होनी चाहिये। और हमारा लक्ष्य भी एक होना चाहिए। हमारे समस्या का बनावट लगभग एक जैसा है, तो हमारी लड़ाई भी एक होनी चाहिए। उन्होंने कहा लगभग सभी हिस्सों में आदिवासी समाज को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ रहा है. केंद्र तथा राज्य में सरकार चाहे किन्हीं की हो. आदिवासी समाज के दर्द को कम करने के लिए कभी कोई ज्यादा प्रयास नहीं किया गया. 


उद्योगों, डैमों के विस्थापन से बेघर लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी समुदाय

सीएम ने कहा हमारी व्यवस्था कितनी निर्दय है, कभी यह पता लगाने का भी काम नहीं किया कि कहां गए खदानों, डैमों, कारखानों के द्वारा विस्थापित किए गए. खदानों, उद्योगों, डैमों के विस्थापन से बेघर लोगों में से 80 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लोग हैं. काट दिया गया लाखों लोगों को अपनी भाषा अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों से. कल का किसान आज व साइकिल पर कोयला बेचने पर मजबूर है बड़े शहरों में जाकर बर्तन मांजने, बच्चे पालने या ईट के भट्टों में बंधुआ मजदूरी करने के लिए हमको विवश किया गया. बिना पुनर्वास किए, बिना पुनर्वास एक्ट बनाये लाखों एकड़ जमीन कोयला कंपनी को दिया गया. हमारा झरिया शहर बरसों से आज की भट्टी में तप रहा है लेकिन कोयला कंपनी कोयला भट्टी या भारत सरकार कान में तेल डालकर सोई हुई है.


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