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लाेक-अर्पण : कश्मीर को कश्मीरियत के नज़रिये से देखने की कोशिश करती किताब लाल चौक: अविनाश दास

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रांची:

अनारकली ऑफ आरा फेम फिल्मकार अविनाश दास ने कहा कि कश्मीर को कश्मीरियत के नज़रिये से देखने की कोशिश किताब लाल चौक करती है। हालांकि कश्मीर को एक खूबसूरत कविता की तरह सभी हाथों-हाथ लेते हैं, पर विडंबना है कि उसके शब्द (कश्मीरी) लोगों को स्वीकार नहीं। वह आज रांची प्रेस क्लब में युवा पत्रकार रोहिण कुमार की किताब लाल चौक के लोकार्पण सह परिचर्चा में बोल रहे थे। कवर पेज के मुताबिक पुस्तक दिल्ली और कश्मीर के बीच मुसलसल चल रही जंग की दास्तां है। अविनाश ने कहा कि वह कश्मीर को मीडिया और एकाध किताब के बहाने जानते हैं। सुहैल आमिर के कार्टून और राहुल पंडिता की फ़िल्म की भी उन्होंने चर्चा की। उन्होंने क्षमा कौल, अग्निशेखर, अनुपम खेर और अशोक पंडित का जिक्र करते हुए कहा कि लेखक और फिल्मकार भी आज बंट गए हैं। उन्हें हैरत होती है कि न्याय की बात करते-करते लोग अन्याय की ओर कब हो जाते हैं।

प्रेस क्लब के अध्यक्ष व प्रभात खबर के संपादक संजय मिश्रा ने लेखक की हौसलाअफजाई करते हुए उनसे संबंधित विषय पर दूसरी किताब भी लिखने की हसरत साझा की। कहा कि आम पाठक वर्तमान के साथ कश्मीर के इतिहास को भी जानना चाहता है। साथ ही कश्मीर में पाकिस्तानी दखल को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश बोले कि रोहिण ने बेहद ईमानदारी से सच तलाशने की कोशिश की है। यह किताब न मुस्लिम ने लिखी है, न ही किसी कश्मीरी ने। इसलिए लेखक पर आग्रह-पूर्वाग्रह का आरोप नहीं लगा सकते। कहा कि देश के निर्माण में हर नागरिक की भूमिका है। इसे हमें याद रखना चाहिए। यह किताब ज़ेहन में बसे परसेप्शन को तोड़ती है। रवि ने कहा कि किसी भी चीज़ को देखने के लिए तटस्थता ज़रूरी है।

लेखकीय वक्तव्य में रोहिण कुमार ने कहा कि वह 2016 में कश्मीर गए थे। 2015 में बुरहान वानी की हत्या हुई थी। मीडिया रिपोर्टिंग हत्यारी सी थी। तबतक कश्मीर को हमलोग फ़िल्म से जानते रहे थे। लोग आज भी दो पक्ष में बंटे हुए हैं। उन्होंने वही दर्ज करने की कोशिश की है, जो वहां के लोगों ने बताया। मुख्य बात है कि बंदूक के बल पर कश्मीर को रखा नहीं जा सकता है। पत्रकार-लेखक शहरोज़ ने कश्मीर रिपोर्टिंग के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वहां के लोग फारूक अब्दुल्लाह आदि नेताओं के साथ पाकिस्तान को भी कोसते हैं। उनका दर्द है कि वो दो देश के बीच में पीस रहे हैं। लेखक-एक्टीविस्ट रूपेश कुमार ने पुलिसिया दबंगई का सवाल झारखंड के बहाने उठाया। परिचर्चा में असगर खान, आकाश आनंद और अशोक गोप ने भी हिस्सा लिया। संचालन सुमेधा चौधरी ने किया। मौके पर क्लब के उपाध्यक्ष पिंटु दुबे, कार्यकारिणी सदस्य परवेज कुरैशी, पूर्व महासचिव अखिलेश सिंह, आनंद दत्ता, आनंद कुमार, संजय कृष्ण, संदीप नाग समेत कई पत्रकार मौजूद रहे।