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आखिर स्वरा भास्कर को गृह-प्रवेश की फोटो क्‍यों करनी पड़ी सार्वजनिक, मायने समझिये

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अरविंद शेष, दिल्‍ली:

पिछले कुछ सालों से स्वरा जिस भूमिका में थीं, उसमें उन्हें अपने गृह-प्रवेश कर्मकांड की तस्वीरें सार्वजनिक करने का महत्त्व खूब पता था। यह पहले से तय था कि इस पर समूचा सोशल मीडिया, मीडिया बहस का केंद्र बनेगा और उन्हें अपनी छवि के विज्ञापन के लिए अतिरिक्त पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है। अगर कोई फिल्मी दुनिया के व्यवसाय में है तो किसी भी तरह सुर्खियों में बने रहना उसकी जरूरत होती है, वह सुर्खियां उसके लिए नकारात्मक हों या सकारात्मक। फिल्म बाजार को सिर्फ इतने से मतलब होता है कि फलां व्यक्ति यानी पुरुष या स्त्री बड़े दायरे में चर्चा का मुद्दा है। इसलिए चर्चा और सुर्खियों में होना एक मार्केटिंग का टूल है और उसमें सारे सोचने-समझने वालों को फंसा लेना उसकी कामयाबी का एक अहम सूचक। इस तरह फिल्म कॅरियर के लिहाज से स्वरा का यह प्रोजेक्ट कामयाब रहा।

रही बात सामाजिक या राजनीतिक क्रांति की, तो उससे किसी को कोई मतलब नहीं है। अपवाद सेलिब्रिटी ही सामाजिक या राजनीतिक सरोकारों को लेकर ईमानदार होगा। (हो सकता है स्वरा भी वही हों! लेकिन यह उन्हें ही साबित करने दिया जाए!) अगर कहीं कोई इस तरह के सरोकार के नाम पर मीडिया की सुर्खियों में आता है तो वह तात्कालिक बाजार बनाने के लिए आता है। स्वरा मामले में अगर सामाजिक-धार्मिक पहलू कुछ है तो यह है कि इन तस्वीरों को सार्वजनिक करके उन्होंने व्यवस्था को आश्वस्त किया है कि उनका मूल स्रोत क्या है!

 

यह भी हो सकता है कि इस तरह अपना 'प्रायश्चित सर्टिफिकेट' जारी किया जा रहा हो! उदय प्रकाश ने राम मंदिर चंदे की रसीद की प्रदर्शनी लगा कर यही किया था, बहुत सारे ऊंच कही जाने वाली जात में पैदा साहित्यकार, पत्रकार या अन्य टाइप के बुद्धिजीवी भी आजकल इस्लामोफोबिया के खिलाफ संतुलनवाद का यही खेल कर रहे हैं! यहां तक कि कुछ जजों ने जिस तरह मोरनी के बिना सेक्स के बच्चे पैदा करने या ब्राह्मणों की स्थिति को लेकर सार्वजनिक चिंता जताई या सवर्ण बौद्धिकों और उनके केंद्रों से लेकर इनके जमीनी दस्ते तक आक्रामक हो रहे हैं, तो इसके पीछे यही मकसद है कि यह दौर ब्राह्मणवाद के 'अनुकूल' है और भावी दौर में राज-समाज का जो ढांचा बनने वाला है तो उसमें अपनी जगह सुनिश्चित कर ली जाए!

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।