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'हम घर पर नमक रोटी खा लेंगे पर पति को शहर वापस नहीं जाने देंगे'

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द फॉलोअप टीम, रांची
यह तस्‍वीर आपको भी याद होगी। यह तस्‍वीर रामपुकार पंडित की है। दिल्ली में छोटे-मोटे काम कर गुजर-बसर करते थे। अचानक जब लॉकडाउन हुआ। काम-धंधे बंद हो गए तो वो भी अपने गांव-घर बिहार के बेगूसराय जा रहे थे। मोटर-गाड़ी बंद। जेब में पैसे भी नहीं थे। रातभर सोए नहीं थे। रास्‍ते में ही मोबाइल घनघनाया। घबराए थे ही। कहीं कोई अनहोनी न हो। डरते-डरते फोन उठाया। आशंका सही निकली, उन्हें खबर मिली कि उनका एक साल का बेटा बहुत बीमार है। असीम संताप और अनंत वेदना से घिरे जब तक वे घर पहुंचते लाडले की मौत हो चुकी थी। घर तो पहुंच चुके हैं। यहां भी तब से उनके पास काम नहीं है। लेकिन उनकी पत्‍पी बिमला देवी कहती हैं कि हम नमक रोटी खा लेंगे पर मैं उन्हें वापस शहर नहीं जाने दूंगी। 

सबसे अधिक मौत भूखमरी से हुई
ऐसी कई तस्‍वीरें नींद से जगा देती होंगी। रेल की पटरियों पर रोटी के साथ शरीर के टुकड़े बिखरे हुए। मध्‍यप्रदेश के मजदूर चलते-चलते सो गए थे कि रेल दन दननाती आई और सब कुछ बहसा ले गई। बाकी रह गए खून के चंद छींटें और रोटियां। मीडिया के एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के 4 जुलाई तक देश भर में कुल 906 लोग खेत हुए। इसमें सबसे अधिक 216 मौत भूखमरी से हुई तो, 209 एक्सीडेंट से और 96 लोग श्रमिक ट्रेनों में मरे। इस बीच 133 लोगों ने आत्महत्या की।

1 करोड़ साढ़े 4 लाख मजदूर घर लौटे
सरकारी आंकड़े के अनुसार लॉक डाउन के दौरान कुल 1 करोड़ 4 लाख 66 हजार 152  मजदूर अपने-अपने घर लौटे। इसमें सबसे अधिक 32 लाख 49 हजार 638 मजदूर उत्तर प्रदेश और 15 लाख 612 मजदूर बिहार से थे। बिहार सरकार के आधिकारिक डाटा को मानें, तो यह संख्‍या लगभग 25 लाख पहुंचती है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार के डाटा के अनुसार लगभग 35 लाख मजदूर लॉकडाउन के दौरान गांव आए।

सरकार के पास कोई डाटा ही नहीं
सदन में जब सरकार से लोकसभा में पूछा गया कि लॉकडाउन के दौरान कितने लोगों की घर वापसी के दौरान मौत हुई, तो श्रम मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार बोले कि सरकार के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। जब पूछा गया कि कितने लोगों को को मुफ्त राशन मिला, तो सरकारी जवाब आया कि उन्हें राज्यों से आंकड़ा उपलब्ध नहीं हुआ है।