(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है, 33वीं किस्त -संपादक। )
विवेक शुक्ला, दिल्ली:
महात्मा गांधी के नोआखाली और कोलकाता में सांप्रदायिक दंगों को खत्म करवाने के बारे में बार-बार लिखा जाता है। पर उन्होंने यही काम दिल्ली में भी किया था। अजीब सी बात है कि इसकी अधिक चर्चा नहीं होती। इसके साथ ही वे दिल्ली में शिक्षक भी बने। उन्होंने दिल्ली के बच्चों को पढ़ाया भी। बाकी शायद ही कहीं वे किसी जगह पर मास्टर जी बने हों। दरअसल गांधी जी शाहदरा रेलवे स्टेशन में 9 सितंबर, 1947 को पहुंचते हैं। वे उसके बाद कभी दिल्ली से गए नहीं। वे पहली बार राजधानी में 12 अप्रैल 1915 को आए थे। वे तब पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। शाहदरा रेलवे स्टेशन में देश के गृह मंत्री सरदार पटेल और स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर उन्हें लेने आए थे। उस वक्त सारे वातावरण में तनाव और निराशा फैली हुई थी।
कारण ये था कि देश आजाद होने के साथ-साथ बंटा भी था। बंटने के कारण अनेक शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे। दिल्ली भी दंगों से अछूती नहीं रही थी। पहाड़गंज,करोलबाग,दरियागंज, महरौली वगैरह को दंगों ने हिला कर रखा दिया था। गांधी जी को शाहदरा रेलवे स्टेशन पर ही सरदार पटेल ने बता दिया कि अब उनका पंचकुईयां रोड की वाल्मिकी बस्ती के वाल्मिकी मंदिर में रहना सुरक्षित नहीं होगा। बापू वहां पर पहले रह चुके थे। बापू को यह भी बताया गया कि अब वाल्मिकी बस्ती में पाकिस्तान से आए शरणार्थी ठहरे हैं। इसलिए उनके लिए वहां पर स्पेस भी नहीं है। पंडित नेहरु भी यही चाहते थे कि बापू किसी सुरक्षित जगह पर ठहरे क्योंकि दिल्ली में दंगे-फसाद थम ही नहीं रहे थे। तब बापू अलबुर्कर रोड (अब तीस जनवरी) पर स्थित बिड़ला हाउस में ठहरने के लिए तैयार हुए। शाहदरा से बिड़ला हाउस तक के सफर में गांधी जी ने जलती दिल्ली को देख लिया था। वे समझ गए थे कि यहां के हालात बेहद संवेदनशील हैं। वे दिल्ली आने के बाद सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने जुट गए। वे 1 4 सितंबर को ईदगाह और मोतियाखान जाते हैं। ये दोनों स्थान भी दंगों की आग में झुलसे थे। वे स्थानीय लोगों से शांति बनाए करने की अपील करते हैं। दोनों जगहों पर दोनों संप्रदायों के लोग उन्हें अपनी आपबीती सुनाते हैं। पाकिस्तान से अपना सब कुछ खोकर आए हिंदू और सिख शरणार्थी हैरान थे कि गांधी जी कह रहे हैं कि “ भारत में मुसलमानों को रहने का हक़ है।”
गांधी जी के सघन प्रयासों के बाद भी यहां जब दंगे रुक ही नहीं रहे थे, तब उन्होंने 13 जनवरी,1948 से अनिश्चितकालीन उपवास चालू कर दिया। दरअसल उन्हें 12 जनवरी को खबर मिली कि महरौली में स्थित कुतुबउदीन बख्तियार काकी की दरगाह के बाहरी हिस्से को दंगाइयों ने क्षति पहुंचाई है।
दिल्ली ने महात्मा गांधी को मास्टर जी के रूप में देखा। ये तथ्य कम ही लोग जानते हैं। यहां उनकी पाठशाला चलती थी। वे अपने छात्रों को अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाते थे। उनकी कक्षाओं में सिर्फ बच्चे ही नहीं आते थे। उसमें बड़े-बुजुर्ग भी रहते थे। वे पंचकुईया रोड स्थित वाल्मिकि मंदिर परिसर में 214 दिन रहे। 1 अप्रैल 1946 से 10 जून,1947 तक। वे शाम के वक्त मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों को पढ़ाते थे। उनकी पाठशाला में खासी भीड़ हो जाती थी। तब बापू की पाठशाला में रीडिंग रोड (अब मंदिर मार्ग) में स्थित हारकोर्ट बटलर स्कूल, रायसीना बंगाली स्कूल, दिल्ली तमिल स्कूल वगैरह के बच्चे भी आने लगे थे। कुछ बच्चे करोल बाग और इरविन रोड तक से आते थे। बापू अपने उन विद्यार्थियों को फटकार भी लगा देते थे, जो कक्षा में साफ-सुथरे हो कर नहीं आते थे। वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे। वे मानते थे कि स्वच्छ रहे बिना आप ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। ये संयोग ही है कि इसी मंदिर से सटी वाल्मिकी बस्ती से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी।
बहरहाल वो कमरा जहां पर बापू पढ़ाते थे, अब भी पहले की तरह बना हुआ है। इधर एक चित्र रखा है, जिसमें कुछ बच्चे उनके पैरों से लिपटे नजर आते हैं। आपको इस तरह का चित्र शायद ही कहीं देखने को मिले। बापू की कोशिश रहती थी कि जिन्हें कतई लिखना-पढ़ना नहीं आता वे कुछ लिख-पढ़ सकें। इस वाल्मिकी मंदिर में बापू से विचार-विमर्श करने के लिए पंडित नेहरु से लेकर सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान भी आते थे। सीमांत गांधी यहां बापू के साथ कई बार ठहरे भी थे। अब भी इधर बापू के कक्ष के दर्शन करने के लिए देखने वाले आते रहते हैं। वाल्मिकी समाज की तरफ से प्रयास हो रहे हैं कि इधर गांधी शोध केन्द्र की स्थापना हो जाए। वे शाम को प्रार्थना के तुरंत बाद बच्चों को पढ़ाते थे।
गांधी जी की संभवत: महानतम जीवनी ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ के लेखक लुई फिशर भी उनसे वाल्मिकी मंदिर में ही मिलते थे। वे 25 जून,1946 को दिल्ली आए तो यहां पर बापू से मिलने पहुंचे थे। उस समय इधर प्रार्थना सभा की तैयारियां चल रही थीं। ‘दि लाइफ आफ महात्मा गांधी’ को आधार बनाकर ही फिल्म गांधी का निर्माण हुआ था।
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(लेखक कई मीडिया हाउस में सेवा दे चुके हैं। संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
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