द फॉलोअप टीम, रांची:
जाति प्रमाणपत्र से धर्म का कालम जल्द हटाया जा सकता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कार्मिक विभाग को इस पर जांचकर आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया है। इससे संबंधित मांग बीते 27 सितंबर को टीएसी की हुई बैठक में उठी। इसके पक्ष में कांग्रेस के विधायक और टीएसी के सदस्य नमन विक्सल कोनगाड़ी का तर्क था कि व्यक्ति की जाति कभी नहीं बदलती, लेकिन वह धर्म बदलने की स्वतंत्रता रखता है।
जाति प्रमाणपत्र के प्रपत्र-4 के कॉलम को अप्रासंगिक बताते हुए उन्होंने इसे हटाने का अनुरोध किया। जेएमएम विधायक चमरा लिंडा ने भी उनका समर्थन किया। लिंडा के मुताबिक जाति धर्म का कालम भेदभावपूर्ण रवैया को दर्शाता है, जिसे हटाना चाहिए।
जाति प्रमाणपत्र पर आजीवन मान्यता पर सबकी सहमति नहीं
आदिवासियों के जाति प्रमाणपत्र की आजीवन मान्यता को लेकर सबकी सहमति नहीं थी। झामुमो के विधायक और टीएसी के सदस्य भूषण तिर्की ने कहा कि इस पर पुनर्विचार किया जाए, क्योंकि इससे गैर आदिवासी से विवाह के बाद भी जाति प्रमाणपत्र का लाभ लिया जा सकता है। जिससे अनुसूचित जनजातियों की स्थिति और खराब हो जायेगी। वहीं चमरा लिंडा का कहना था कि आदिवासी महिलाओं द्वारा गैर आदिवासी पुरुष से विवाह के बाद जाति प्रमाणपत्र की व्यवस्था स्पष्ट होनी चाहिए। कार्यसूची में सबसे ऊपर रखे गए इस प्रस्ताव में कहा गया कि जाति प्रमाणपत्र बनाने में अनुसूचित जनजातियों को बहुत सारी दिक्कते होती है।
जीवनकाल में एक बार ही बने प्रमाणपत्र
कार्मिक विभाग इस संबंध में अधिसूचना जारी करने पर विचार करे, जिससे जीवनकाल में एक बार अनुसूचित जनजातियों को जाति प्रमाणपत्र बनाना पड़े जो कि जीवन भर उपयोग में लाया जा सके। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि प्रज्ञा केंद्रों के साथ-साथ आफलाइन भी प्रमाणपत्र जारी किया जाए। सभी उपायुक्त विशेष अभियान चलाकर सभी विद्यालयों में तीन माह के अंदर कक्षा एक में नामांकित छात्र-छात्राओं का जाति प्रमाणपत्र जारी करें।
टीएसी की बैठक में ये लोग रहे शामिल
टीएसी की बैठक में लोहरा, भुईंहर, खुटकट्टी मुंडा, चिक बड़ाईक को जनजातीय समुदाय में शामिल करने की मांग उठी। विधायक और टीएसी के सदस्य बंधु तिर्की ने कहा कि इसपर पूर्व में नीलकंठ सिंह मुंडा के नेतृत्व में एक कमेटी बनी थी, लेकिन निराकरण नहीं हो पाया। उन्होंने डा. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान से अध्ययन कराने का अनुरोध किया। इसे स्वीकार करते हुए निर्देश दिया गया है कि तीन माह के भीतर संस्थान राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपे।