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कांग्रेस नेताओं की दौड़-भाग का खुला राज़, बोर्ड-निगम के बंटवारे को लेकर मचा है घमासान

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द फॉलोअप टीम, रांची:
करीब एक महीने से झारखंड में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं के बीच संगठन और सरकार को लेकर एक तरह की बेचैनी देखी जा रही है। कोई संगठन से रुष्ट है, तो कोई सरकारी कामकाज को लेकर असंतुष्ट बताया जाता रहा है। इसको लेकर बार-बार दिल्ली की यात्रा भी नेता-विधायक करते रहे हैं। लेकिन इस दौड़-भाग का राज़ अब धीरे-धीरे खुल रहा है। खबर यह है कि सभी की नजर बोर्ड-निगम पर टिकी हुई है। जो मंत्री न बन सके उनके लिए यह जरूरी लग रहा कि कहीं से लाल-हरी बत्ती मिल जाए। कुछ नेता अपने चहेतों को फिट कराने को उतावले हुए जा रहे हैं।

महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों की लगी है नजर
दरअसल झारखंड में कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी होने के साथ ही 20 सूत्री और बोर्ड-निगम के गठन की चर्चा जोरों पर है। इन पदों पर कब्जा जमाने की होड़ में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के नेता-कार्यकर्त्ताओं की ओर से अपने स्तर से लॉबिंग शुरू कर दी गयी है। लेकिन सबसे ज्यादा होड़ कांग्रेस में मची हुई है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी पांच कार्यकारी अध्यक्ष और पार्टी कुछ विधायक इन दिनों अलग-अलग बैठक कर अपनी ताकत का अहसास करा रहे हैं। वहीं कुछ विधायक और नेता दिल्ली दौड़ भी लगाने में जुटे हैंं।



राष्ट्रीय सचिव उत्‍तराखंड की जगह झारखंड में उलझीं
पार्टी की एक विधायक दीपिका पांडेय को हाल ही में केंद्रीय नेतृत्व ने राष्ट्रीय सचिव मनोनीत किया है। उत्‍तराखंड की सह प्रभारी के रूप में जिम्मेवारी भी सौंपी गयी। इस नई जिम्मेवारी मिलने के बाद वह भी रेस हो गयी हैं। लेकिन जिस राज्य की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गयी है, वहां का दौरा कर संगठन को मजबूत बनाने की बजाय झारखंड में ही पार्टी के कुछ नेताओं से उलझ जा रही हैं। पिछले दिनों दिल्ली दौरे के क्रम में बात-बात ही रांची महानगर कांग्रेस के अध्यक्ष संजय पांडेय से उनकी तीखी नोक-झोंक हो गयी। 

उचित फोरम में अपनी बात रखने की चल रही कवायद
पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और विधायकों को संगठन के आम नेताओं-कार्यकर्त्ताओं की बात सुनने की जिम्मेवारी मिली है। लेकिन इनमें से कई कार्यकारी अध्यक्ष और विधायक खुद यह कह रहे हैं कि वे पार्टी के उचित फोरम में अपनी बात रखेंगे। जब प्रदेश कांग्रेस में नेताओं-कार्यकर्त्ताओं की बात सुनने के लिए वे खुद एक प्लेटफॉर्म माने जाते हैं, ऐसी हालत में उनके द्वारा उचित फोरम की बात करना ही अपने आप में हास्यापद है।



आरपीएन सिंह के करीबी अलग पका रहे पुलाव
दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर और वरिष्ठ नेता रवींद्र सिंह दिल्ली में बैठे प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह से अपनी निकटकता का धौंस जमाकर संगठन में सिक्का जमाने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन हाल के दिनों में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए ज्योतित्य राजे सिंधिया और जतिन प्रसाद के साथ आरपीएन सिंह की मुलकात और बैठक की खबर इन दिनों दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में सुर्खियां बनी हुई है। आरपीएन सिंह के कार्यकाल में कांग्रेस के चार-चार पूर्व प्रदेश अध्यक्षों प्रदीप बलमुचू, डॉ. अजय कुमार, सरफराज अहमद और सुखदेव भगत के पार्टी छोड़ कर चले जाने को भी लोग उनके कमजोर नेतृत्व क्षमता के रूप में आंक रहे है और इन सारे बातों की जानकारी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को भी दे दी गयी है।



अध्‍यक्ष की ओर लगी है तीन प्रवक्‍ताओं की आस 
झारखंड प्रदेश कांग्रेस में यूं तो प्रवक्‍ता कई हैं। लेकिन सबसे अधिक चर्चा में तीन ही प्रवक्‍ता रहते हैं। इनमें आलोक कुमार दूबे, डॉ राजेश गुप्‍ता उर्फ छोटू और किशोरनाथ शाहदेव शामिल हैं। सियासी गलियारे में तीनों त्रीमूर्ति के उपनाम से विख्‍यात हैं। तीनों को प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष डॉ रामेश्‍वर उरांव का बेहद करीबी माना जाता है। विरोधी गुट जहां इनकी सरकारी पहुंच का मजाक उडा़ता है,लेकिन अंदर-अंदर एक तरह का धुआं भी उड़ रहा होता है। अब तीनों भी बोर्ड-निगम केलिए ललायित हैं। लेकिन इनकी आस प्रदेश अध्‍यक्ष की ओर टिकी हुई है।