द फॉलोअप टीम, जमशेदपुर:
बेटी की चिंता मां को सबसे अधिक होती है। गांव-जवार की महिलाएं इस मामले में अधिक जागरूक रहती हैं। उनकी जागरुकता की कहानी लौह नगरी से लगे ग्रामीण इलाके से पहुंची है। जिसमें संवेदना की पवित्रता है और बदलाव की प्रेरणा भी। इलाके की बहू-बेटियां घाघीडीह और नागाडीह तालाब में स्ना न के लिए आया करती हैं। लेकिन उनके कपड़े बदलने के लिए कोई पर्दे की जगह नहीं थी। छेड़खानी की शिकायतें भी मिलती थीं। लेकिन अब ऐसा मुश्किल है। 20 हज़ार रुयए की लागत से पांच चेंजिंग रूम बन चुके हैं। यह सब महिलाओं की हिम्मत और नेक सोच के बल संभव हुआ। इसका खर्च उनके पाई-पाई जोड़कर जमा पैसे से किया गया।
कैसे हुआ संभव
संस्कृति सोशल वेलफेयर फाउंडेशन की अध्यक्ष मुनमुन चक्रवर्ती बताती हैं कि जब उन्हेंं ग्रामीण महिलाओं की खुले में नहाने और कपड़े बदलने की परेशानियों का पता चला, तो हम लोगों ने महिलाओं को खुद से पहल करने के लिए प्रेरित किया। महिलाओं ने अपने घर चर्च से 5-10 रुपए गुल्लक में रखने शुरू कर दिए। जिसका सुफल है कि अब बेटियां खुले स्थान में नहीं चेंजिंग रूम में कपड़े बदलती हैं। इन महिलाओं ने बता दिया कि घरेलू महिलाएं भी किसी से कम नहीं।
हर गांव में लाना चाहती हैं बदलाव
मुनमुन ने बताया कि एक चेंजिंग रूम बनाने में 4 से 5 हज़ार रुपए की लागत आती है। संस्था एक ही मकसद है, बेटियां सुरक्षित रहें। हर गांव में सामाजिक बदलाव महिलाएं चाहती हैं। जल्द पोटका प्रखंड में 290 चेंजिंग रूम बनने जा रहा है। महिलाओं ने तैयारी शुरू कर दी है। कोई बांस ला रही हैं तो कोई पेंट और शीट का इंतजाम कर रही हैं। कबाड़ से यदि शीट मिल गया, तो उसे पेंट कर दिया जाता है। फिर शुरू हो जाता चेंजिंग रूम का काम।