(हिंदी के वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत 2011 में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्म शताब्दी समारोह में शिरकत करने पाकिस्तान गए थे। वहां लगभग 45 दिन घूमते रहे। लाहौर, मुल्तान और कराची में अनेक लोगों से मिले थे। संस्थाओं में गए थे। उन अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सफरनामा 'पाकिस्तान का मतलब क्या' लिखा था, जो तब ज्ञानोदय में छपा था और उसके बाद ज्ञानपीठ ने उसे पुस्तक रूप में छापा था । उस पर आधारित कुछ अंश द फॉलोअप के पाठक 12 हिस्से में पढ़ चुके हैं। अब इस सफ़र को आगे बढ़ा रहे हैं यूपी सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे मंज़र ज़ैदी। प्रस्तुत है 21 वां भाग:)
मंज़र ज़ैदी, लखनऊ:
सरकैप से निकलकर हम जूलियन की ओर चल पड़े जहां बुद्धिस्ट स्तूप और विश्वविद्यालय आदि के अवशेष लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर मौजूद हैं। श्री अय्यर ने 1916-17 में जॉन मार्शल के निर्देशन में यहां खुदाई कराई थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह विश्व के प्राचीन विश्वविद्यालय में से एक माना जाता है। इसमें पूरे विश्व के 10 हज़ार से अधिक छात्र अध्ययन करते थे तथा 60 से अधिक विषयों में शिक्षा दी जाती थी। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने यहां शिक्षा प्राप्त की और चाणक्य इसमें वरिष्ठ प्रवक्ता थे। राजा अशोका के समय में तक्षशिला बुद्धिस्ट शिक्षा ज्ञान का केंद्र रहा है। इस स्थान को 1980 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में सम्मिलित किया गया। पाकिस्तान सरकार द्वारा जूलियन के स्टूपा और मठ की ऐतिहासिक और आर्किटेक्चरल महत्ता के दृष्टिगत इसे सुरक्षा एक्ट - 1975 के अंतर्गत सुरक्षित स्थल घोषित किया गया है जिसके अंतर्गत यदि कोई भी इसे तोड़े या हानि पहुंचाए या इसमें कोई परिवर्तन करे अथवा इस पर कुछ लिखें तो उसे 3 साल की सजा या 2 लाख रुपये जुर्माना या फिर दोनों सजाएं दी जा सकती हैं। यह स्थान एक पहाड़ी पर लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसके लिए 300 सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। किसी तरह हांपते हुए सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचे और थोड़ी देर ठहर कर अपनी सासों को काबू में किया।
सीढ़ियां जहां समाप्त होती हैं वहां बोर्ड पर जूलियन का प्लान तथा अन्य विवरण दर्शाए गए हैं। अंदर जाने के बाद बायीं ओर पर कमरों के अवशेष दिखाई दिए। लगभग 8 फुट ऊंची और 3 फुट चौड़ी पत्थर की चिनाई की दीवारें अभी मौजूद हैं। 28 कमरे छात्रों के लिए बनाए गए थे इन पर इस समय छत नहीं है। एक स्थान पर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां दिखाई दीं। एक ओर रसोई घर की 8 फीट ऊंची दीवारें खड़ी हुई हैं। बीच में बड़ा सा आंगन है। रसोई में बर्तन धोने की जगह बनी हुई है तथा मसाला पीसने के लिए मोटे पत्थर की सिल भी रखी हुई है। विभिन्न प्रकार के अनाज पीसने के लिए दो पत्थर की सिलें भी आंगन में रखी दिखाई दीं। आंगन मैं एक ओर 1 फुट गहरा बड़ा टैंक भी दिखाई दिया जिसमें अब पानी नहीं है।
छात्रों के एकत्रित होने के लिए असेंबली हॉल भी मौजूद है। परन्तु उसकी भी केवल दीवारें हैं। यहां का वातावरण बहुत अच्छा था और चारों ओर के सुंदर पहाड़ी दृश्य आंखों को ठंडक पहुंचा रहे थे। ठंडी हवा के झोंकों ने 300 सीढ़ियां चढ़ने की थकान को भी मिटा दिया था। इसी परिसर में दूसरी ओर मंदिर के अवशेष हैं परंतु उनको अधिक सुरक्षित रखने के लिए उन पर छत डाली गई है। इसमें विभिन्न आकार की गौतम बुद्ध की मूर्तियां रखी हुई हैं। दीवारों पर भी मूर्तियां बनी हुई हैं। यहाँ की कुछ मूर्तियां तक्षशिला के संग्रहालय में रखदी गई हैं।
एक स्थान पर गौतम बुध की पत्थर की बड़ी मूर्ति दीवार में बने ताक रखी हुई थी, जिसकी नाभि में छिद्र बना हुआ है। इसके बारे में वहां बताया गया कि उस समय श्रद्धालुओं में यह मान्यता थी कि रोगियों की उंगली इस छिद्र में डालकर उनके स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना की जाती थी। विश्वविद्यालय आदि देख कर पुनः 300 सीढ़ियां उतर कर नीचे आए। यहां एक बड़ा सा ढाबा दिखाई दिया। दोपहर के भोजन का समय भी हो गया था अतः ढाबे में विभिन्न प्रकार के पंजाबी स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया और गुरुद्वारा पंजा साहब के लिए प्रस्थान किया।
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पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिंदी के एक भारतीय लेखक जब पहुंचे पाकिस्तान, तो क्या हुआ पढ़िये दमदार संस्मरण
दूसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पड़ोसी देश में भारतीय लेखक को जब मिल जाता कोई हिंदुस्तानी
तीसरा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: आतंकवाद और धर्मान्धता की जड़ है- अज्ञानता और शोषण
चौथा भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: हिन्दू संस्कारों की वजह से मैं अलग प्लेट या थाली का इंतज़ार करने लगा
पांचवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: दरवाज़े पर ॐ लिखा पत्थर और आंगन में तुलसी का पौधा
छठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: पत्थर मार-मार कर मार डालने के दृश्य मेरी आँखों के सामने कौंधते रहे
सातवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: धर्मांध आतंकियों के निशाने पर पत्रकार और लेखक
आठवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: मुल्तान में परत-दर-परत छिपा हुआ है महाभारत कालीन इतिहास का ख़ज़ाना
नौवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची के रत्नेश्वर मंदिर में कोई गैर-हिंदू नहीं जा सकता
दसवां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: अपने लगाए पेड़ का कड़वा फल आज ‘खा’ रहा है पाकिस्तान
11वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें: कराची में ‘दिल्ली स्वीट्स’ की मिठास और एक पठान मोची
12 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : इस्लामी मुल्क से मैं लौट आया अपने देश, जहां न कोई डर और ना ही ख़ौफ़
13 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : बस से जब पहुंचा लाहौर, टीवी स्क्रीन पर चल रही थी हिंदुस्तानी फिल्म
14 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : 18 वीं शताब्दी के इस गुरुद्वारे की दीवारें हैं पांचवें गुरु अर्जुन देव की शहादत की गवाह
15 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : अज़ान और अरदास की जुगलबंदी- गुरुद्वारे के पास ही है लाहौर में बादशाही मस्जिद
16 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : लाहौरी क़िला और महाराजा रंजीत सिंह की समाधि- न रख और न रखाव
17 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : मुग़ल बादशाह शाहजहां ने लाहौर के शाहदरा बाग़ में बनवाया था जहांगीर का मक़बरा
18 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : जब लाहौर से रावलपिंडी तक जीटी रोड पर दौड़ पड़ी 129 किलोमीटर की स्पीड से कार
19 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : तक्षशिला की सैर-कभी सनातन और बौद्ध धर्मों का रहा केंद्र
20 वां भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें : श्रीराम के भाई भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर बसा था तक्षशिला
(मूलत: यूपी के जिला बिजनौर के चांदपुर के रहने वाले मंज़र ज़ैदी शायर और लेखक हैं। सिंचाई विभाग में अधिकारी रहे। संप्रति UP-RRDA से संबद्ध और स्वतंत्र लेखन )
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।