(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है, 18वीं किस्त -संपादक। )
पुष्यमित्र, पटना:
इस तस्वीर में आप गांधी की एक विशाल प्रतिमा को देख रहे होंगे। यह मूर्ति भारत में नहीं है। यह मौजूदा बांग्लादेश के नोआखली के जायग गांव में है। उस मूर्ति के सामने बांग्लादेश में भारत के राजदूत सपरिवार तस्वीर खिचवा रहे हैं। तारीख 2 अक्टूबर 2018 है। यह वह जगह है जहां गांधी 29 जनवरी 1947 को एक रात ठहरे थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर उनके द्वारा चलाये जा रहे अभियान से इस गांव के लोग काफी प्रभावित थे। गांव के एक जमींदार बैरिस्टर हेमंत कुमार घोष ने अपनी तमाम संपत्ति इस मिशन के लिये दान कर दी। उनका अपना मकान तो था ही वहां उनकी 2671 एकड़ जमीन भी थी। सब गांधी जी के चरणों में डाल दिया। 5 जून 1947 को लिखा पढ़ी भी हो गयी। चारू चौधरी नामक एक कार्यकर्ता को वहां आश्रम बनाकर काम शांति मिशन को जारी रखने के लिये कहा गया।
मगर जब वह इलाका पाकिस्तान में चला गया तो उनके लिये काम करना मुश्किल हो गया। उन्हें जेल में डाल दिया गया। बांग्लादेश बनने के बाद ही वे छूटे। तब जाकर उन्होने फिर से काम शुरू किया। 1975 में गांधी आश्रम ट्रस्ट की स्थापना हुई। आज यह संस्था बांग्लादेश के चार जिलों में शांति, मानवाधिकार और आजीविका को लेकर बड़ा काम कर रही है। यह आश्रम एक पर्यटन स्थल बन गया है। पिछ्ले पोस्ट में मैने लिखा था कि गांधी जहां एक दिन भी ठहरे लोगों ने उस जगह को तीर्थ बनाकर रखा। यह उसी का उदाहरण है।
गांधी, सीमांत गांधी और आजाद हिंद फौज के मेजर जनरल शाहनवाज
यह तस्वीर गंगा-जमनी विरासत पर एक साइट चला रहे युवा पत्रकार मोहम्मद उमर अशरफ़ से मिली है। उन्हें यह तस्वीर जनरल शाहनवाज के पोते आदिल से मिली। आदिल ने बताया कि उन्हें यह तस्वीर बादशाह खान के इलाके से किसी व्यक्ति ने भेजी थी। इस तस्वीर में खुदाई खिदमतगार खान अब्दुल गफ्फार खान के साथ आजाद हिंद फौज के मेजर जनरल शाहनवाज खड़े नजर आ रहे हैं। यह तस्वीर कहां की है, यह मैं दावे के साथ नहीं कह सकता, मगर मेरा अंदाजा है कि यह पटना की तस्वीर होगी। ये दोनों गांधी के पीस मिशन के सिलसिले में लंबे समय तक पटना में थे और अक्सर एक साथ गांधी से मिलते थे। खान साहब तो खैर बहुत पहले से गांधी के अनुयायी और अहिंसा के पुजारी थे, मगर आजाद हिंद फौज पर चले मुकदमे के बाद आइएनए के फौजी भी गांधी के असर में आने लगे थे। नोआखली मेंं तो कर्नल जीवन सिंह के साथ चालीस से अधिक आजाद हिंद फौज के सेनानी गांधी के साथ थे ही। बिहार के पीस मिशन में भाग लेने मेजर जनरल शाहनवाज खान आये थे।
अहिंसा का कर्नल
गांधी ने एक दिन सुबह टहलते हुए उनसे कहा कि मैं तो आप पर बड़ी आशाएं लगाये बैठा हूं। मुझे आपको संपूर्ण अहिंसक शस्त्र का सिपाही बनाना है। आपने नेताजी के साथ रहकर कर्नल की पदवी प्राप्त की है। उसी तरह मुझे आपको अहिंसा का कर्नल बनाना है। यदि आप यह पदवी हासिल कर लें तो मुझे बड़ी खुशी होगी। इसके लिए सबको प्रेम से जीतना होगा। आपको सूत कातन सीख लेना चाहिए। यह 15 अप्रैल, 1947 की बात है। इस चर्चा के तत्काल बाद शाहनवाज गांधी जी की पोती मनुबेन के पास गये और उनसे उन्होंने चरखा चलाना सीख लिया। फिर एक दिन उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि वे अहिंसा के कर्नल बन गये हैं। उन्होंने पटना से सटे मसौढ़ी कस्बे को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था। वहां से 29 अप्रैल को उन्होंने गांधी जी को रिपोर्ट भेजी।
मनुबेन ने अपनी डायरी में उस रिपोर्ट के दो अंशों का विवरण पेश किया
1. अंतरपुरा गांव में हमने स्थानीय लोगों की मदद से ग्राम पंचायत की स्थापना की है। दो दिन बाद पंचायत के सरपंच पटना गये और निराश्रित कैंप में दंगा पीड़ितों से मिले। उन्होंने सबको आश्वासन देकर कहा कि आप वापस गांव चलिये। हम अपनी जान देकर भी आपकी रक्षा करेंगे। उनके साथ 50 मुसलमान परिवार अपने गांव लौट आये। अब वे शांति से रह रहे हैं। लोगों ने उनकी सुरक्षा करने वाले पुलिसकर्मियों को भी वापस भेज दिया है, कि अब इसकी जरूरत नहीं है। उस गांव में जाकर मैंने जब पीड़ितों के लिए अनाज की व्यवस्था की तो यह हिंदुओं को पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा, अब ये लोग हमारे मेहमान हैं। इनकी देखभाल करना हमारा काम है।
2. बीर गांव के एक मुसलमान ने मुझसे कहा कि मुझे अपने गांव जाना है, मगर बहुत डर लग रहा है। वह खूब रो रहा था। मैंने अपनी मोटर दी और उनके साथ आजाद हिंद फौज के दो सिपाही भेज दिये। रास्ते में उन्हें बीर गांव की पंचायत के एक सदस्य मिले। उन्होंने मोटर रुकवाई और कहा कि कुम अपने साथ सिपाहियों को क्यों ले जा रहे हो। मुसलमान भाई ने कहा कि मुझे डर लगता है। तो पंचायत सदस्य ने कहा, जब गांधी जी ने खुद सबकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है तब भी तुम्हें अपने साथ सिपाही लेकर जाना पड़े, यह हमारे लिए शर्म की बात है। अगर तुम्हारा बाल बांका भी हो जाये तो मुझे मरा समझना।
इस भरोसे के बाद उस मुसलमान ने सिपाही लौटा दिये और कहा कि अब इसकी जरूरत नहीं। गांधी जी कहते थे अहिंसा सिर्फ कमजोरों की ताकत नहीं है, यह वीरों का आभूषण भी है। हमें वीर और साहसी अहिंसक चाहिए। जनरल शाहनवाज ने बिहार में काम करते हुए गांधी जी की इस कल्पना को साकार किया।
जारी
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(लेखक एक घुमन्तू पत्रकार और लेखक हैं। उनकी दो किताबें रेडियो कोसी और रुकतापुर बहुत मशहूर हुई है। कई मीडिया संस्थानों में सेवाएं देने के बाद संप्रति स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।