डेस्क:
वरिष्ठ विधायक सरयू राय ने झारखंड के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखा है। सरयू राय ने कहा है कि दामोदर नद और स्वर्णरेखा नदी की प्रदूषण समीक्षा यात्रा का संक्षिप्त निष्कर्ष प्रतिवेदन मैंने झारखंड के माननीय राज्यपाल और माननीय मुख्यमंत्री को सौंपा है। इसकी प्रति आपको सौंप रहा हूं।
अपेक्षा है कि इस संदर्भ में आप शीघ्र आवश्यक कारवाई करेंगे। दामोदर और स्वर्णरेखा औद्योगिक प्रदूषण से काफ़ी हद तक मुक्त हो चुके हैं परंतु इनमें नगरीय प्रदूषण बेतहाशा बढ़ा है। नगरपालिकाओं का लचर प्रबंधन और अविवेकपूर्ण शहरीकरण इसका एकमात्र कारण है। इस समस्या को सरकार के सहयोग से ही दूर किया जा सकता है। इसके लिये आपकी सक्रिय पहल ज़रूरी है।
जमशेदपुर में व्यवस्थित हों नागरिक सुविधायें
सरयू राय ने मुख्य सचिव से कहा है कि इस संबंध में जमशेदपुर की विशेष स्थिति के बारे में एक बार फिर आपसे निवेदन करना चाहता हूं। जमशेदपुर 100 साल से अधिक पुराना शहर है। टिस्को ने अपने औद्योगिक विकास को ध्यान में रखकर यह शहर बसाया था। विगत 100 साल में शहर काफ़ी बढ़ा है। मगर इस अनुपात में जनसुविधाएं व्यवस्थित नहीं हुई हैं। फ़िलहाल जमशेदपुर में वैधानिक नगरपालिका नहीं है। यहां नगर निगम बने या औद्योगिक नगर यह पेंच उलझते जा रहा है। इसे शीघ्र सुलझाने की ज़रूरत है। इसमें आपसे सक्रिय पहल की अपेक्षा है।
जमशेदपुर में वैधानिक नगरपालिका का अभाव
वैधानिक नगरपालिका के अभाव में जमशेदपुर के नागरिकों को जन-सुविधाएं उपलब्ध कराने का ज़िम्मा सरकार ने टाटा लीज़ समझौता के अंर्तगत पूर्ववर्ती टिस्को और वर्तमान टाटा स्टील के दिया है। पहला लीज़ समझौता 1985 में हुआ था। इसका नवीकरण 2005 में हुआ। दोनों समझौतों में सभी प्रकार की नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा हाट, बाज़ार, सैरात आदि सरकारी परिसंपत्तियों को व्यवस्थित रखने की ज़िम्मेदारी टाटा स्टील के उपर दी गई है। परंतु एक बार भी सरकार के स्तर से मीमांसा नहीं हुई है कि लीज़ समझौता के परिप्रेक्ष्य में जन-सुविधाओं की स्थिति क्या है? हाट, बाज़ार, सैरात का प्रबंधन कैसा है?
शहर के पुराने हिस्सा स्लम में तब्दील हो गये हैं
विडंबना है कि लीज़ समझौता के क्रियान्वयन से किसी को शिकायत है तो वह अपनी शिकायत कहां करे? इसकी कोई व्यवस्था समझौता प्रपत्र में नहीं है। इस कारण से जनसुविधाओं के संदर्भ में नागरिक अधिकारों की सुरक्षा नहीं हो पा रही है। शहर की व्यवस्था चरमराने लगी है। जमशेदपुर के सभी नागरिकों को जनसुविधाएं उपलब्ध कराना तो दूर लीज़ क्षेत्र के निवासियों के बड़े हिस्सा को भी जन-सुविधाएं नहीं उपलब्ध हो पाई हैं। भव्य अट्टालिकाओं वाले शहर के पुराने हिस्से स्लम में तब्दील हो रहे हैं।
पेयजलापूर्ति और जल-मल निकासी की समस्या
पेयजलापूर्ति और जल-मल निकासी की समस्या गहराती जा रही हैं। मैंने पहले भी इस बारे में आपका ध्यान आकृष्ट किया है और आपके स्तर से पहल भी हुई है। परंतु आपका पहल प्रभावी नहीं हो पाया है। अनुरोध है कि एक बार पुनः पहल कर नगर विकास विभाग, राजस्व विभाग, परिवहन विभाग, पर्यटन विभाग आदि की बैठक अपने स्तर पर आयोजित कर समस्या का समाधान निकालें।
इस बीच दो बड़ी समस्याएं जमशेदपुर में उत्पन्न हुई हैं। एक, सैरात बाज़ारों का किराया बेतहाशा बढ़ जाने और दूसरा, होल्डिंग्स टैक्स बेहिसाब बढ़ जाने की समस्या से शहर रूबरू है। ज़िला प्रशासन इन्हें सुलझाने के लिये प्रयासरत है। मगर इसके लिये सरकार के स्तर पर नीतिगत पहलकदमी की ज़रूरत है। दोनों निर्णयों की समीक्षा के लिये एक उच्चस्तरीय समिति गठित की जानी चाहिये।
टाटा लीज की जमीन पर आलीशान मकान बने हैं!
एक और गंभीर समस्या है सरकारी ज़मीन और टाटा लीज़ की ज़मीन पर बस्तियां बस जाने की। इन बस्तियों में टाटा स्टील से अवकाश प्राप्त करनेवाले, सरकारी सेवा से निवृत्त होने वाले, विविध रोज़गार-व्यवसाय करने वाले लोगों ने इन बस्तियों में आलीशान मकान बना लिया है। यहाँ पानी, बिजली, सड़क, सुरक्षा, पेयजल आपूर्ति आदि समस्त जनसुविधाएँ सरकार/टाटा स्टील ने उपलब्ध कराया है। मगर बस्तियों के बाशिन्दों को अपने आवासों पर कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। इनकी होल्डिंग्स तक निर्धारित नहीं है।
इस कारण से ज़मीन, मकान पर क़ब्ज़ा, सार्वजनिक भूमि का अतिक्रमण, मुकदमेबाजी की घटनायें बढ़ रही हैं। क़ानून-व्यवस्था पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ रहा है। निहित स्वार्थी समूह अपनी गोटियाँ फ़िट करने में लगे हैं। इस बारे में भी आपके स्तर पर अंतर्विभागीय बैठकों मेरे अनुरोध पर हुई हैं। पर गाड़ी थोड़ा आगे बढ़ती है, फिर शिथिल हो जाती है, अंजाम तक नहीं पहुँच पाती। इस समस्या को सुलझाने और बाशिन्दों को मालिकाना हक दिलाने में आप कृपया विशेष रुचि लेंगे।
शहरीकरण को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है!
महाशय, अनुरोध है कि जमशेदपुर की समस्याओं को दूर करने तथा राज्य में शहरीकरण को सुव्यवस्थित करने के लिये नीतिगत स्तर पर भी और कार्यक्रमों के स्तर पर भी आवश्यक सुधार करने की कारवाई आरम्भ करें ताकि जन-जीवन की सुरक्षा हो सके, जनसुविधाएँ उपलब्ध हो सकें, नदियों, जल स्रोतों और अन्य प्राकृतिक एवं मानव जनित परिसंपत्तियों का संरक्षण हो सके। संक्षेप में कहा जाय तो अपने ऐसे प्रयासों से हम भावी पीढ़ी को एक बेहतर परिवेश देने का रास्ता प्रशस्त कर सकेंगे और राज्य को भी शहरी विकास की सार्थक दिशा में ले जा सकेंगे।