रांची:
16 अप्रैल 1858, इतिहास के वो स्वर्णिम दिन है जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने पूरे अविभाजित बिहार (वर्तमान झारखंड) में अंग्रेजी सत्ता की नींव को हिला कर रख दिया था। मातृभूमि की आजादी के खातिर अंग्रेजो से लड़ते-लड़ते फंसी पर चढ़ गए और हो गए। 16 अप्रैल को बड़कागढ़ जगन्नाथपुर में दिन के 9 बजे उनकी आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित की जाएगी।
1857-58 में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ छेड़ा था जंग
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857-58 ईस्वी के बड़कागढ़ ईस्टेट के राजा ने अंग्रेजी शासन की जड़ को हिला कर रख दिया था। अंग्रेजों छ: माह तक बड़कागढ़ ईस्टेट में शासन नहीं कर सके और पूरा छोटानागपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया। ठाकुर के खौफ से कैप्टन ई.टी.डाल्टन छोटानागपुर को छोड़कर भाग खड़ा हुआ और बगोदर होते हुए डाल्टेनगंज (मेदनीनगर) में जाकर छिप गया ,परंतु 6 माह तक इसने षडयंत्र करना नहीं छोड़ा। वो बड़कागढ ईस्टेट के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के खास लोगों को तोड़ने में लगा रहा। पिठोरिया के जमींदार जगतपाल सिंह को अपने पक्ष में मिलाकर पुन: बड़कागढ़ ईस्टेट पर धावा बोल दिया।
पूरे छोटानागपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था
उस समय बड़कागढ ईस्टेट के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने पूरे छोटानागपुर को स्वतंत्र घोषित कर दिया। डोरण्डा छावनी के सिपाहियों के मुखिया माधव सिंह को अपनी ओर मिलाया और डोरंडा से ही शासन का बागडोर संभाली। गवर्नर के हैसियत से पूरे छोटानागपुर का शासन अपने हाथ में ले लिया। कचहरी डोरंडा में ही स्थापित की।
विरोधियों ने खुलकर अंग्रेजों का सहयोग किया। षड्यंत्र के तहत कार्य किया जाने लगा। अंततः बड़कागढ रियासत के राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को पकड़ लिया गया। इन्हें अपर बाजार स्थित जेल में रखा गया और बिना किसी ट्रायल किए आनन-फानन में 16 अप्रैल 1858 को प्रातः 5:30 बजे रांची जिला स्कूल के मुख्य द्वार पर (छोटानागपुर कॉरपोरेटिव बैंक) वर्तमान शहीद चौक रांची में फांसी दे दिया गया।
हटिया स्थित ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का किला ध्वस्त
बडकागढ़ की राजधानी हटिया में स्थित ठाकुर के किले चिरनागढ़़ को तोप से मारकर ध्वस्त कर दिया गया। ठाकुर साहब की धर्मपत्नी ठकुरानी बाणेश्वरी कुंवर की गोद में उस समय एकमात्र पुत्र (बड़कागढ़ उतराधिकार) जो 1 वर्ष का था ठाकुर कपिल नाथ शाहदेव को लेकर रानी खोरहा जंगल (गुमला जिला) अपने विश्वस्त जनों के साथ भाग गई। रानी को पता था कि अंग्रेजी सरकार उन्हें एवं उनके पुत्र को मारने के लिए तत्पर हो गई है। रानी( ठकुरानी ) बाणेश्वरी कुंवर ने खोरहा ग्राम में 12 वर्षों तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया।
इधर अंग्रेज परेशान से हो गए, उन्हें पता चला कि रानी बाणेश्वरी कुंवर कहीं छिप गई है, वे महल के मलबों में खोजने पर भी नहीं मिली। रानी की कुछ दासिआं चिरनागढ़ के समीप स्थित रानी चूआं में छलांग लगाकर चिर निद्रा में सो गई।
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की पत्नी और पुत्र छिप गये थे
अब बड़कागढ ईस्टेट का मांग करने वाले अंग्रेजों के पिट्ठू छोटानागपुर कमिश्नर कैप्टन एडवर्ड टूटी डाल्टन के समीप पहुंचे और उन्होंने करार किए गए शर्तों को रखी। ई.टी.डाल्टन ने उन्हें कहा कि आप लोग अंग्रेजी सरकार के मदद तहे दिल से किया है परंतु अभी तक अंग्रेजी सरकार को ठाकुर साहब की पत्नी और उसका एकमात्र पुत्र का पता नहीं चल सका है।
रानी ने हक मांगा लेकिन अंग्रेजों ने पेंशन बांध दी
इधर 12 वर्ष पूर्ण हो जाने के बाद ठकुरानी बाणेश्वरी कुवंर अपने पुत्र जो (हिंदू मिताक्षरारी कानून के तहत वयस्क हो गया था) को आगे कर अंग्रेजों के समक्ष प्रकट हो गई और अंग्रेजी सरकार से बड़कागढ ईस्टेट को वापस करने की मांग की परंतु अंग्रेजी सरकार ने बड़कागढ़ ईस्टेट का संचालन के लिए एक कमिटी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया इन काउंसिल बना दी थी। यह कहते हुए कि जिन जागींरदारों का कोई वारिस नहीं होगा वैसी जमींदारी सीधे काउंसिल के तहत हो जाएगी। परंतु ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का वारिस था इसलिए अंग्रेजों ने कहा कि कौंसिल बड़कागढ़ ईस्टेट का केयरटेकर के रूप में कार्य करता रहेगी।
काउंसिल के अधीन कर दिया गया था पूरा राजपरिवार
अंग्रेजों की व्यवस्था के अनुरूप बड़कागढ ईस्टेट से जो लगान सेक्रेटरी ऑफ ईस्टेट फॉर इंडिया इन काउंसिल उगाही करती है, उसी में से जीविकोपार्जन के लिए 30 रुपये प्रतिमाह ठाकुरानी बाणेश्वरी कुवंर को दिया जाएगा और मौजा जगन्नाथपुर में मिट्टी का मकान 500 रुपये की लागत से बना दिया गया। इसी ठाकुर निवास बड़कागढ़ जगन्नाथपुर वर्तमान में इनके छठी पीढी के ठाकुर नवीन नाथ शाहदेव अपने परिवार जनों के साथ निवास करते हैं। राजपरिवार के लोग यहीं निवास करते हैं।
गौरतलब है कि शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के उत्तराधिकारी ठाकुर नवीननाथ शाहदेव ने कई बार अध्ययन केंद्र के माध्यम से सरकार से मांग की है कि अविलंब झारखंड सेनानी कोष को पुनर्गठित कर तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को वशंजों को सदस्यता दी जाये लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब नवीननाथ शाहदेव ने कहा कि अब सम्मान के लिए झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना होगा।