द फॉलोअप डेस्क, रांची:
प्रवर्तन निदेशालय को कैबिनेट सचिव वंदना दादेल की चिट्ठी मामले में बाबूलाल मरांडी ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार और झारखंड की ब्यूरोक्रेसी को आड़े हाथों लिया है। बाबूलाल मरांडी ने किसी का नाम लिए बगैर कुछ नौकरशाहों पर सत्तारुढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया है। चेतावनी भरे लहजे में बाबूलाल मरांडी ने कहा कि न्यायिक प्रणाली में बाधा डाल रहे अधिकारी यह समझ लें कि कानून के हत्थे चढ़े तो जमानत मुश्किल हो जाएगी। दरअसल, कैबिनेट सचिव वंदना दादेल ने अवैध खनन केस में सीएम के सलाहकार अभिषेक प्रसाद पिंटू और साहिबगंड डीसी रामनिवास यादव को समन मामले में ईडी को पत्र लिखकर जानना चाहा है कि इसकी वजह क्या है।
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बाबूलाल मरांडी ने कैबिनेट सचिव के पत्र पर क्या कहा
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने अपने आधिकारिक ट्विटर पर लिखा कि "कैबिनेट सचिव के पत्र से स्पष्ट हो गया है कि हेमंत सरकार आधिकारिक रूप से भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रही है और मनी लॉन्ड्रिंग जांच में बाधा डालने का प्रयास कर रही है। हेमंत सोरेन जी सिर्फ भ्रष्टाचारियों को ईडी से बचाने का ही नहीं बल्कि झारखंड में हुई महालूट की जिम्मेदारी लेने का आधिकारिक पत्र भी जारी कराएं। झामुमो कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रहे, न्यायिक प्रणाली में बाधा डाल रहे कुछ अधिकारी यह समझ लें कि, यदि एक बार हत्थे चढ़ गए तो फिर जमानत भी मुश्किल हो जाएगी"।
कैबिनेट सचिव के पत्र से स्पष्ट हो गया है कि, हेमंत सरकार आधिकारिक रूप से भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रही है और मनी लॉन्ड्रिंग जांच में बाधा डालने का प्रयास कर रही है।
— Babulal Marandi (@yourBabulal) January 12, 2024
हेमंत सोरेन जी, सिर्फ भ्रष्ट अधिकारियों को @dir_ed से बचाने का ही नहीं, बल्कि झारखंड में हुई महालूट की… pic.twitter.com/3theJDumsl
हेमंत सरकार ने पदाधिकारयों के लिए जारी किया निर्देश
गौरतलब है कि 9 जनवरी को कैबिनेट की मीटिंग में हेमंत सोरेन सरकार अधिकारियों के लिए गाइडलाइन लाई है। इसमें पदाधिकारियों से कहा गया है कि किसी भी केंद्रीय एजेंसी के समन पर सीधा हाजिर होने से पहले वे अपने विभागीय प्रमुख को सूचित करेंगे। विभाग इसकी जानकारी मंत्रिमंडल सचिवालय और निगरानी विभाग को देगा। इस प्रकार की कार्रवाइयों के लिए नोडल विभाग के रूप में नियुक्त मंत्रिमंडल सचिवालय और निगरानी विभाग मामले में विधिक सलाह लेने के बाद ही आगे की कार्रवाई करेगा। विपक्ष इसे झारखंड में केंद्रीय एजेंसियों की जांच में अड़ंगा लगाने के प्रयास के रूप में देख रहा है जबकि सरकार का तर्क है कि केंद्रीय एजेंसियों के सहयोग के लिए ही यह गाइडलाइन बनाई गई है।