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नव लेखन शिविर : आचार्य भरत मुनि ने लोकहित का ध्यान रखकर नाटक रूपी पंचम वेद की रचना की: जेबी पाण्डेय

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रांची:

रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ. जेबी पाण्डेय ने कहा कि नाटक पंचम वेद है। आचार्य भरत मुनि ने लोकहित का ध्यान रख चारों वेदो से एक एक तत्व को ग्रहण कर नाटक रूपी पंचम वेद की रचना की। ऋग्वेद से कथा सामवेद से संगीत, यजुर्वेद से रस और अथर्ववेद से अभिनय लेकिन इस नाटक रूपी पंचम वेद की रचना हुई।इस नाटक के निर्माण हेतु देवाधिदेव शंकर ने तांडव और पार्वती ने लास्य दिया।आचार्य भरत मुनि ने नाटक की रचना का उद्देश्य बताते हुए लिखा है लोकार्तानां, श्रमार्तानां,दुखार्तानां तपस्विनाम्। विश्राम जननं लोके नाटयमेतद् भविष्यति।
अर्थात् लोक के श्रम परिहारार्थ तथा कल्याणार्थ नाटक का आविर्भाव हुआ।नाटक के 6 तत्व होते हैं-कथावस्तु, चरित्र चित्रण, कथोपकथन, भाषा-शैली, देशकाल और उद्देश्य या संदेश। कथोपकथन  नाटक का प्राण होता है। डाॅ. पांडेय ने उक्त बातें आठ दिवसीय नव लेखन शिविर के पांचवें दिन नाटक पर विमर्श करते हुए कहीं। आयोजन केन्द्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली और राजेंद्र विश्वविद्यालय, बलांगीर(उडीसा) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है।

 

डाॅ. पांडेय ने कहा कि नाटक एक दृश्य काव्य है, अतः इसमें अभिनय और कथोपकथन का विशेष महत्व है।नाटक को संस्कृत में रूपक कहते हैं।आचार्य धनंजय के दशरुपक के अनुसार इसके 10 भेद हैं-1.नाटक 2 प्रकरण 3 अंक 4 व्यायोग 5 भाण 6 समवकार 7 वीथी 8 प्रहसन 9 डिम 10 ईहामृग। नाटक में 5 संधियाँ होती हैं-मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श और निर्वहण। 5 अवस्थाएं हैं: आरंभ, संघर्ष (यत्न) प्राप्त्याशा नियताप्ति और फलागम। 5 प्रकृतियां हैं-बीज,बिंदु,पताका,प्रकरी और उत्कर्ष। डाॅ. पांडेय ने अनेक उदाहरणों से अपनी बातें स्पष्ट की। डाॅ. जेके शर्मा ने नाटक के व्यावहारिक पक्ष के साथ नुक्कड़ नाटक और अब्सर्ड नाटक पर भी प्रकाश डाला। डाॅ. सीमा असीम सक्सेना ने नाटक में अभिनय की कठिनाइयों की ओर प्रतिभागियों का ध्यान आकृष्ट किया और महत्वपूर्ण सुझाव दिए। डाॅ. सुजाता दास और डाॅ. संजय कुमार सिंह ने भी नाटक के संदर्भ में अपना पक्ष रखा। दो  उडिया नाटकों की चर्चा की।


मौके पर डाॅ. जेबी पाण्डेय के निर्देशन में ह और म की मुठभेड़ शीर्षक प्रहसन का प्रतिभागियों ने मंचन किया। ह की भूमिका में लाल मोहन महतो तो म की भूमिका में उमाशंकर महतो और गुरुजी की भूमिका में अशोक कुमार प्रमाणिक ने शानदार प्रस्तुति दी। जिसकी प्रशंसा सबों ने मुक्त कंठ से की। यह प्रहसन राष्ट्रीय एकता पर कन्द्रित था। अन्य सत्रों में प्रशिक्षुओं ने नाटक पर अपने विचार प्रकट किए।  जिनमें अशोक कुमार प्रमाणिक आशिक, दयानंद राय, राम कुमार प्रसाद, लाल मोहन महतो, उमा शंकर महतो, अंगद प्रमाणिक, प्रियंका कुमारी, आरती कुमारी, डा सुजाता दास, स्वरूपा सिंह, क्षेत्र मणि बिभार नूतन सत्पथी, डा शैलेश बिडालिया, अभिषेक कुमार सिंह, भलटी खमारी, डा शिखा रानी त्रिपाठी, कुन्दन अग्रवाल, स्वरूप सिंह आदि प्रमुख हैं। धन्यवाद ज्ञापन विनोद शर्मा जी ने किया।राष्ट्र गान से शिविर का समापन 4 बजे हुआ।