(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है, 22वीं किस्त -संपादक। )
शाह फ़हद नसीम, अमरोहा:
महात्मा गांधी भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व हैं,जिनकी दुनिया के सबसे अधिक देशों में प्रतिमा लगी हुई है। उनके नाम पर कई संस्थागत भवन और सड़क के नाम हैं। स्कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटी के कोर्स में गांधी शामिल हैं। वह उर्दू भी लिखना-पढ़ना जानते थे, यह शायद बहुत कम हीे लोग जानते होंगे। आई उर्दू में उनके हाथ के लिखे दो ख़त से रूबरू होते हैं। आखिऱ वो पत्र उन्होंने किसे लिखा और उसमें क्या लिखा।
ख़त नंबर 1:
इस ख़त में अल्लामा इक़बाल के दिवंगत पर महात्मा गांधी अफ़सोस ज़ाहिर कर रहे हैंं। यह ख़त गांधी ने 9 जून 1938 को अपने दोस्त मुहम्मद हुसैन को लिखा था। उस वक़्त वह यरवदा जेल में थे। ख़त की इबारत ये है:
भाई मुहम्मद हुसैन!
आपका ख़त मिला. डॉक्टर इक़बाल मरहूम के बारे में मैं क्या लिखूं!
लेकिन इतना तो मैं कह सकता हूं कि जब उनकी मशहूर नज़्म "हिन्दोस्तां हमारा" पढ़ी तो मेरा दिल उभर आया और यारवदा जेल में तो सैकड़ों बार मैंने इस नज़्म को गाया होगा। इस नज़्म के अल्फाज़ मुझे बहुत मीठे लगे और ख़त लिखता हूँ तो तब भी वो नज़्म मेरे कानों में गूँज रही है।
आपका
मीम. काफ़. गांधी
ख़त नंबर 2:
ये ख़त बाबा-ए-उर्दू मौलवी अब्दुल हक़ के नाम है। दिसंबर 1939 में अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू की कॉन्फ्रेंस हुई थी। इसमें शिरकत के लिए गांधी जी को भी बुलाया गया था। ये ख़त उसी बुलावे का जवाब है। ख़त की इबारत ये है:
भाई साहब!
आपका तार मिला था मुझे दुख है कि आपके जलसे में शामिल नहीं हो सकता हूं। मेरी उम्मीद है कि जलसा हर तरह कामयाब होगा। आप जानते हैं कि मैं उर्दू ज़बान की तरक़्क़ी चाहता हूं। मेरा ख्याल है कि सब हिन्दू जो मुल्क की खिदमत करना चाहते हैं उर्दू लिखें और मुस्लिम हिन्दी सीखें।
सेवा गांव वर्धा.
आपका.. गांधी
ख़त नंबर 3:
ये उर्दू पत्र महात्मा गांधी ने वर्ष 1930 में मौलाना सुलेमान नदवी को लिखा था। जिसमें उन्हें उसी साल 26 और 27 फरवरी को दिल्ली में आयोजित हिंदुस्तानी प्रचार सभा की बैठक में हिस्स लेने के लिए निमंत्रित किया था। गांधीजी का ये पत्र आजमगढ़ की शिब्ली एकेडमी में सुरक्षित रखा हुआ है। तहरीर यह थी:
भाई साहब
26 और 27 फरवरी को दिल्ली में हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की कॉन्फ्रेंस होने को है। मैं चाहता हूं कि इसमें आप भी शामिल हों, और इस सवाल को सुलझाने में हिस्सा लें। मुझे आशा है कि आप जरूर आवेंगे। आप आने की तारीख और वक्त की खबर देंगे।
आपका
मीम. काफ़. गांधी
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(युवा लेखक शाह फ़हद नसीम इतिहास के जानकार हैं। संंप्रति अमरोहा में रहकर स्वतंत्र लेखन।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।