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दिनकर को तो बख़्श देते हुजूर, उनके  नाम से किसी और की कविता नव वर्ष पर हुई वायरल

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भरत जैन, दिल्ली:

एक मित्र हैं - पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक प्रसिद्ध शहर में संघ के एक उच्च स्तरीय कार्यकर्ता। कई दिनों से फेसबुक और व्हाट्सएप स्टेटस पर लिख रहे थे कि मुझे नव वर्ष पर बधाई ना दें और ना मुझसे बधाई की उम्मीद करें। वैसे काफी लोग नव वर्ष पर या किसी और भी त्यौहार पर बधाई लेने - देने के लिए व्याकुल नहीं होते। दर्जनों लोगों के घिसे - पिटे मैसेज पढ़ना और जवाब देना कई बार एक  बोझ लगता है । पर यहां कारण यह नहीं था। कारण था- कि यह नया वर्ष हमारा नहीं है ,यह तो अंग्रेजी नया वर्ष है - हमारा तो चैत्र प्रतिपदा को आएगा। एक कविता जो रामधारी सिंह दिनकर की लिखी हुई बताते हैं वह भी चिपका रखी थी व्हाट्सएप स्टेटस पर - 
' यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं........ 
है अपना यह त्यौहार नहीं ' । 
पहली बात तो उन्हें  यह नहीं पता कि यह  दिनकर जी की कविता है ही नहीं। यह कविता श्री अंकुर आनंद की है जो हरियाणा के रोहतक में रहते हैं। दिनकर जी की किस पुस्तक में से है, इसका कहीं किसी ने आज तक उल्लेख नहीं किया है हालांकि यह कविता पिछले कई वर्षों से सोशल मीडिया पर घूम रही है। इसके अतिरिक्त यदि दिनकर जी की है भी तो दिनकर जी ने गांधी और नेहरू के बारे में जो लिखा है वह पढे़ंगे तो उनकी छाती पर सांप लोट जाएंगे। गांधीजी के बारे में दिनकर जी ने लिखा था- "बापू मैं तेरा समयुगीन, है बात बड़ी, पर कहने दे लघुता को भूल तनिक गरिमा के महासिंधु में बहने दे।" और "तू चला, तो लोग कुछ चौंक पड़े, ‘तूफान उठा या आंधी है?’ ईसा की बोली रूह, अरे! यह तो बेचारा गांधी है।"

गांधी जी की हत्या के तुरंत बाद दिनकर जी ने लिखा था-‘कहने में जीभ सिहरती है, मूर्च्छित हो जाती कलम, हाय, हिन्दू ही था वह हत्यारा।’ अन्यत्र कहते हैं, ‘गोली से डाला मार उन्हें, उन्मत्त एक हत्यारे ने, जो हिन्दू था।’ एक स्थान पर फिर से पूछते हैं, ‘हिन्दू भी करने लगे अगर ऐसा अनर्थ, तो शेष रहा जर्जर भू का भवितव्य कौन?’ गोडसे जिंदाबाद के नारे लगाने वाले दिनकर जी के यह शब्द ध्यान से पढ़ लें-

पहचानो, कौन चला जग से? पापी! अब भी कुछ होश करो
गति नहीं अन्य, गति नहीं अन्य, इन चरणों को पकड़ो, पकड़ो।

और बहुत आहत मन से श्राप सा देते हुए कहते हैं-

लिखता हूं कुंभीपाक नरक के पीव कुण्ड में कलम बोर,
बापू का हत्यारा पापी था कोई हिन्दू ही कठोर।

 

नेहरू के समय दिनकर जी बारह साल राज्यसभा में कांग्रेस की ओर से  सांसद थे। इस पर संघ वालों का क्या कहना है जानना दिलचस्प होगा । दिनकर जी कांग्रेस की चापलूसी नहीं करते थे - चीन के हमले के समय उन्होंने कठोर शब्दों में नेहरू सरकार की आलोचना भी की थी। उनके संबंध नेहरू से बौद्धिक स्तर पर अधिक थे। दिनकर जी की महान रचना ' संस्कृति के चार अध्याय ' की भूमिका उन्होंने नेहरू से लिखवाई थी । और उसमें जो नेहरू ने लिखा था वह पढ़ कर संघ वालों की बोलती बंद हो जाएगी क्योंकि ऐसा लगेगा कि जैसे वह आज के बारे में ही लिख रहे हैं उन्होंने लिखा था-
 ‘भारत में बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है. भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है. यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे.’ यदि दिनकर जी इन शब्दों से सहमत ना होते तो यह उस पुस्तक में ना लिखे होते। 

देश के प्रसिद्ध नेताओं के बारे में लिखते हुए दिनकर जी ने जो अध्याय नेहरू पर लिखा था उसका शीर्षक था ' लोकदेव नेहरू '। वह मित्र महोदय क्रिसमस से कुछ दिन पहले 25 दिसंबर के आसपास गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार की शहीदी को याद करने की सलाह दे रहे थे बजाय सैंटा क्लॉस के बारे में बात करने के। हालांकि कुछ महीने पहले सिख किसान उन्हें खालिस्तानी नज़र आ रहे थे। 25 दिसंबर को उन्होंने याद कर आया कि आज तो दो -दो भारत रत्नों - अटल बिहारी वाजपेई तथा मदन मोहन मालवीय जी का जन्मदिन है - ईसा मसीह को नहीं इन्हें याद कीजिए। यह बात अलग है कि इन दोनों का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से है ना कि हिंदू कैलेंडर के। सबसे बड़ा परेशानी का विषय था कि पहली जनवरी को ही उनकी पत्नी का जन्मदिन भी है । अब वह हिंदी - अंग्रेज़ी वाली बात भूल गए और लिख दिया फेसबुक पर ' जन्मदिन की बधाई ... मेरे जीवन साथी।' व्यक्ति सज्जन हैं। उनकी पत्नी भी परिचित हैं और बच्चे भी। पत्नी को मैंने सवेरे ही स्वयं फोन कर जन्मदिन की बधाई दी। पर समस्या यह है कि संघ की पाठशाला में लगातार जाकर सोचने की शक्ति कमज़ोर पड़ जाती है।

देश में नया वर्ष सब के लिए अलग अलग दिन आता है। जिसको जब मनाना है मनाए। आपको उनकी खुशियों में शामिल नहीं होना तो कोई बात नहीं , उसके विरोध में एक आंदोलन सा खड़ा क्यों करना। जब अमेरिका के व्हाइट हाउस में दिवाली पर दिए जलाए जाते हैं तो ये लोग बड़े खुश होते हैं । पर यहां ईसाई क्रिसमस मनाएं यह इनको बर्दाश्त नहीं होता। कमला हैरिस जिसकी मां भारतीय थी और स्वयं कमला भारत में कभी रही नहीं परंतु उसके अमेरिका के उपराष्ट्रपति बनने पर हमें ऐसा लगता है कि जैसे एक भारतीय ही वहां का उपराष्ट्रपति बन गया है और दूसरी ओर सोनिया गांधी जो पचास साल से अधिक से भारत में रहती है और उनके बच्चे पूरी तरह भारतीय हैं वह उनको आज तक विदेशी लगती हैं। कुछ तो सोचो यारों किस पागलपन में लगे हुए हो। क्यों अपने आप को जला रहे हो ? सब की खुशियों में शामिल हो जाओ, मस्त रहो।

 

 

 

(गुरुग्राम में रहने वाले भरत जैन गांधीवादी हैं और स्‍वतंत्र लेखन करते हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।