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जंगल पर आदिवासी समाज के अधिकार को लेकर आखिर क्‍यों उठते रहे हैं सवाल : रामेशवर उरांव

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द फॉलोअप टीम, लोहरदगा:
झारखंड प्रदेश अध्यक्ष सह वित्त तथा खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने कहा है कि वन पर अधिकार को लेकर आदिवासी समाज वर्षां से संघर्ष करते रहे हैं। ब्रिटिश शासनकाल में ही पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कानून बनाये गये। वो एक दिवसीय लोहरदगा दौरे के पर हैं। इस दौरान उन्होंने पार्टी के जिलाध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने राष्ट्रव्यापी आउटरीच अभियान की समीक्षा की। इस दौरान जिला अध्यक्षने यह जानकारी दी गयी कि सभी पंचायत स्तर पर आउटरीच अभियान की सफलता को लेकर कोरोना योद्धा घर-घर जाकर लोगों से डाटा एकत्रित कर रहे है। प्रदेश अध्यक्ष ने डाटा संग्रहण में विशेष सतर्कता बरतने का निर्देश दिया। वहीं जंगल की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया। 

जंगल पर सरकार का अधिकार नहीं था 
डॉक्टर रामेश्वर उरांव ने कहा कि आजादी के पहले जंगल पर सरकार का अधिकार नहीं होता था। स्थानीय राजाओं और जमींनदारों का अधिकार था। छोटानागपुर के इलाके में रामगढ़ राजा का राज था, 1927 के पहले तक क्षेत्र के जंगल पर अंग्रेजों का अधिकार नहीं था, बल्कि रामगढ़ राजा का अधिकार था। 1927 में ब्रिटिश शासनकाल में वन संरक्षण को लेकर पहली बार भारतीय वन कानून बना। जिसके तहत जंगल को बचाने का प्रयास शुरू किया। रिजर्व फॉरेस्ट और प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट के माध्यम से वन और जंगल में रहने वाले वन्य प्राणी की सुरक्षा का काम शुरू किया। लेकिन इसके बावजूद जंगल पर जनजातीय समाज के अधिकार को लेकर सवाल उठते रहे, जिसके कारण 1992 में वन अधिकार कानून भी बना। इससे पहले सारंडा के रिजर्व फॉरेस्ट में रहने वाले कई लोगों को जंगल से बाहर कर दिया गया।

फोन कर समाधान का निर्देश 
उन्होंने कहा दुनिया भर में वन और पर्यावरण संरक्षण की बात हो रही है। इसके लिए जहां नये पेड़-पौधे लगाने की जरुरत है, साथ ही पुराने पेड़ को भी बचाने होगा। उक्त बातों की जानकारी प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने दिया। बैठक के दौरान कई पार्टी कार्यकर्त्ताओं और स्थानीय लोगों ने अपनी समस्या से भी डॉ0 रामेश्वर उरांव को अवगत कराया। उन्होंने समस्याओं के समाधान को लेकर अधिकारियों से फोन पर बात की और आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया।