डॉ. तबस्सुम जहां, दिल्ली:
समय की रंगीनियां, मौसम की तपिश, किरदार के तेवर और संघर्ष की रफ्तार। पिछले दिनों तीन दिनों तक वर्चुअल चले बॉलीवुड इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल (Bollywood Internationl Film Festival) की फिल्मों को देखने के बाद यही कहा जा सकता है। इसका आयोजन संस्थापक बॉलीवुड एक्टर यशपाल शर्मा एवं एक्टर-डायरेक्टर प्रतिभा शर्मा ने 12 से 14 नवम्बर तक ऑनलाइन किया था। वो फेस्टिवल दो साल से आयोजित कर रहे हैं। इन तीन दिवसीय फेस्ट का संचालन समीर चौधरी, डॉ अल्पना सुहासिनी, सौरभ शुक्ला और प्रतिभा फड़के ने मिलकर किया। अवार्ड की घोषणा अमेरिका से श्वेता वासुदेवन ने की। बेस्ट फ़िल्म का चयन 5 सदस्यीय निर्णायक मंडल ने किया। इसमें अशोक राणे, अमित राय, संदीप शर्मा, फ्रांस की अभिनेत्री मेरीन बोरबो, बंगला देश के तौक़ीर अहमद शामिल थे। सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक शो चला।
अब जानिये कब कौन सी मूवी रही पर्दे पर
पहले दिन अमेरिका से ब्रांडी मैकडोनाल्ड, ब्रेंडन रीगल की म्यूज़िक वीडियो, भारत के विनीत शर्मा की शार्ट फ़िल्म गजरा, दधि आर पाण्डे की शार्ट फ़िल्म एवरी लाइफ मैटर, वनिता ओमंग कुमार की शार्ट फ़िल्म अवे मारिया, सुदीश कनौजिया की शार्ट फ़िल्म यू चेंज्ड मी, सिद्धांत दानी की शार्ट फ़िल्म कैनवस दिखाई गयी। विदेश से ही इटली से डायरेक्टर एन्द्रयु पापालोटी की शार्ट फ़िल्म ब्लैंच, अमेरिका से जॉन हैमलिन की शार्ट फ़िल्म 'रिचर्ड एन्ड सारा' का शो हुआ।
दूसरे दिन डायरेक्टर मौरिस मिकालिफ़ की डाक्यूमेंट्री 'द रोमन्स', इंडिया से अंनत महादेवन की 'विलेज ऑफ लेज़र गॉड', सोहन राय की 'ब्लैक सैंड', मनोहर ख़ुशलानी की कॉपिंग विद ए डी एच डी, गौतम मिश्रा की 'द डिवाइन डॉक्टर' डॉक्यूमेंट्री, ईरानी चाय कैफ़े( मंसूर शॉगी यज़्दी, कुवैत से स्टीव मैके व जोनाथन अली खान की 'अ वॉयेज अगेंस्ट टाइम' तथा टर्की से बतुहन क्लायसी की 'आई एम नॉट टेलिंग फैरी टेल्स डॉक्युमेंट्री प्रदर्शित हुई।
इस दिन की खास बात रही। एक्टर डायरेक्टर यशपाल शर्मा की बातचीत मास्टर क्लास। जिसमें उन्होंने अभिनय के बारे में बताया। संचालन बिफ़्फ़ के डायरेक्टर सौरभ शुक्ला ने किया। अंतिम दिन अमेरिका से मसूद गौतबी की मोबाइल फ़िल्म 'टर्निंग प्वाइंट', इटली से एन्टोनियो पिसु की 'ई एस टी', ईरान से मुर्तज़ा आतिशज़मज़म की 'मेलनकोलिया', चाईना से सू मिकेल की 'डॉ सन' तथा इंडिया से अशोक आर कलिता की 'वेलुक्काका ओप्पु का' फ़िल्में दिखायी गयीं।
किनके दामन में झलके इनाम, अवार्ड किसके नाम
बेस्ट इंडियन शार्ट हिंदी मूवी सुदीश कनौजिया की 'यू चेंज्ड मी', बेस्ट शार्ट फॉरेन मूवी इटली के डायरेक्टर एन्द्रयु पापालोटी की 'ब्लैंच' बनीं। बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड फ़िल्म रिचर्ड एंड सारा के डायरेक्टर 'जॉन हैमलिन', बेस्ट सिनेमाटोग्राफी का कैनवस फ़िल्म के 'चिरायुंश भानुशाली' और बेस्ट एक्टर का अवार्ड 'एन्द्रयु पापालोटी' को फ़िल्म ब्लैंच के लिए मिला।
जबकि सोलर नून फ़िल्म 'नीलाक्षी चेतिया' बेस्ट एक्ट्रेस के इनाम से नवाज़ी गईं। इंडिया की 'अवे मारिया' तथा फॉरेन की 'ब्रदर ट्रोल' को बेस्ट लॉन्ग शार्ट मूवी के लिए को अवार्ड दिया गया। बेस्ट म्यूज़िक वीडियो अवार्ड अमेरिका की 'एथोस' तथा जर्मनी की 'शैडो ऑफ मैगलिन' को मिला। बेस्ट एनिमेशन लॉन्ग शॉर्ट फ़िल्म चाईना की 'डॉ सन' और 'द सिल्क रोड वॉकर' बनी। डायरेक्टर, बेस्ट सिनेमाटोग्राफी, बेस्ट एक्टर के लिए 'निकोलाज फ्लैक' को अवार्ड दिया गया। 'रुचिता जाधव' को मूवी एनिग्मा' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड मिला।
लॉंग डाक्यूमेंट्री में 'द रोमन्स' को अवार्ड मिला। बेस्ट डायरेक्टर के लिए टर्की से 'बतुहन क्लायसी', सिनेमाटोग्राफी के लिए इंडिया से 'प्रदीप खानविलकर', तथा स्पेशल मेंशन अवार्ड के लिए 'ईरानी चाय कैफे' व कुवैत से 'अ वॉयेज अगेंस्ट टाइम' को पुरस्कृत किया गया। भारत के सोहन रॉय की 'ब्लैक सैंड' और ईरान की 'बुद्ध शेम' को शार्ट डॉक्यूमेंट्री अवार्ड दिया गया। बेस्ट डायरेक्टर का खिताब 'बायारम फैल' को फ़िल्म ब्यूटीफूल के लिए मिला। बेस्ट एक्टर का ताज इंडिया के अशोक कलिता और फॉरेन के फरहाद असलानी के सर पहुंचा। बेस्ट एक्ट्रेस बनीं इंडिया की केतकी नारायण और विदेश की लैला ओटाकलिया।
फ़ीचर फ़िल्म की कैटेगरी में इंडिया से 'वॉक अलोन' तथा फॉरेन से इटली की 'ई एस टी' को अवार्ड मिला। बेस्ट स्टोरी के लिए ईरान की 'मेलनकोलिया', बेस्ट सिनेमैटोग्राफर में मेलनकोलिया के लिए 'तौराज असलानी' को अवार्ड दिया गया। बेस्ट स्क्रीन प्ले अवार्ड 'द रिंग' फ़िल्म को दिया गया। बेस्ट मोबाइल फ़िल्म का अवार्ड मसूद गौतबी की 'टर्निंग पॉइंट' के नाम रहा। इस बार एक ख़ास अवार्ड की भी घोषणा हुई जिसमें फाउंडर च्वॉइस अवार्ड क्षमा उर्मिला को उनकी फिल्म 'प्यूपा एंड एंजेलिना' को मिला।
नेक पहल करने वालों का मक़सद
आयोजक प्रतिभा शर्मा बताती हैं कि "इसका ख्याल हमें एकाएक तब आया जब हम 4 शार्ट फिल्म बना चुके थे। कुछ फिल्मों की पटकथा लेखन भी उन दिनों हो चुका था। जिसे फ़िल्म का रूप देने के लिए हमारे पास आर्थिक समस्या थी। इसी के चलते ख़्याल आया कि एक साथ फिल्म फेस्टिवल शुरू करते हैं। एक अच्छा सा नाम ढूंढकर हमने उसे 'इम्फा' से रजिस्टर भी करा लिया। उसके बाद हम रात दिन बड़ी शिद्दत से इस मंच को आगे लाने में जुट गए। कुछ मुट्ठीभर लोगों से खड़े किए इस मंच से धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। जिनके सहयोग और अथक प्रयास से इस मंच को मूर्त जीवन मिलने लगा। फ़िल्म 'फ्री वे' की वेबसाइट पर भी फ़िल्म फेस्टिवल रजिस्टर हुआ। जिस दिन इस फेस्टिवल में पहली फ़िल्म एंट्री आयी वे हमारे मंच का ऐतिहासिक दिन था। इस दिन ने जैसे हमें जीवनदान दे दिया हो।" प्रतिभा शर्मा आगे बताती हैं कि जैसे सोचा था उतना आसान हमारा सफ़र नही था। फ़िल्म फेस्टिवल मंच के शुरू होने से ही उसमे अनेक उतार चढ़ाव होते रहे। जो लोग इससे पहले साल में जुड़े उसमे से अनेक लोग अलग हो गए। जो लोग इसकी ज़मीन से जुड़े थे वे भी किसी कारणवश उससे अलग हो गए। पर वह एक फाउंडर के तौर पर मज़बूती के साथ खड़ी रही।
मेरे पति यशपाल इस मंच का ब्रांड चेहरा थे जिनके होने ने हमारे फ़िल्म फेस्टिवल को एक मज़बूत दशा और दिशा प्रदान की।" एंकर अल्पना सुहासिनी व सुनील बेनीवाल जैसे सशक्त व अनुभवी टीम मेम्बर्स के सामने आने से एक बार फिर से यह मंच अपनी ऊंचाइयों को छूने लगा। विशाल शर्मा व सौरभ शुक्ला जैसे लोगों की कड़ी मेहनत ने इस मंच को और भी अधिक सुदृढ़ बनाया।" पहले ही वर्ष इस फेस्टिवल में 200 के लगभग फिल्में सम्मिलित हुईं। इन फिल्मों में से ज्यूरी द्वारा बेहतरीन फ़िल्म को चयनित किया गया। कोविड कि वजह से भी मैंने बहुत ही मामूली फ़ीस रखी थी। ताकि फिल्मकारों को फ़ीस बोझ न लगे। सिनेमा के प्रति प्रेम और समर्पण की वजह से ही मैंने फ़िल्म फेस्टिवल बनाया था।
निष्पक्ष ज्यूरी मेम्बर का चयन भी इसी लिए किया गया। आर्थिक समस्या व अपेक्षित सहयोग के अभाव में सब कुछ बिखरने लगा। लगा जैसे सब कुछ ज़ीरो पर आ गया हो। ऐसी विषम परिस्थितियों में यशपाल जी ने बहुत साथ दिया। उन्होंने सिनेमा जगत से जुड़े अनेक तकनीकी लोगों को फ़िल्म फेस्टिवल से जोड़ा। इन लोगों के सहयोग से फ़िल्म फेस्टिवल फिर से रफ़्तार पकड़ने लगा।
(लेखिका कहानीकार, आलोचक और फ़िल्म समीक्षक हैं। इनकी कहानियां और समीक्षात्मक लेख देश -विदेश की पत्र -पत्रिकाओं में निरंतर छपते रहते हैं। संप्रति अंतर्राष्ट्रीय मासिक पत्रिका "साहित्य मेघ" में सह संपादक ।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।