प्रेमकुमार मणि, पटना:
भारत के राष्ट्रपति आज बिहार दौरे पर हैं। बिहार विधानसभा भवन शताब्दी वर्ष समारोह की शोभा बढ़ाने। मुझे इसका कोई औचित्य समझ में नहीं आ रहा है। बिहार एक स्वतंत्र प्रान्त के रूप में 1912 में अस्तित्व में आया। इस पर हुए शताब्दी -समारोह का औचित्य समझ में आ रहा था। लेकिन 1921 में बिहार विधान सभा भवन बना और इसका शताब्दी समारोह हो, इसका औचित्य समझ से परे है। बिहार इस वर्ष भयावह महामारी और उसके बाद बाढ़ से तबाह हुआ है। सरकारी आंकड़े जो कहें, लेकिन हजारों आम -आदमी स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में तड़प -तड़प कर मरे हैं। स्थिति इतनी भयावह हुई कि सरकार के मुख्य सचिव और दो विधायक इस कुव्यवस्था के शिकार हुए। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा जिसका कोई न कोई परिजन या परिचित इस महामारी की भेंट न चढ़ा हो। त्राहिमाम की स्थिति थी।
वैसे बिहार में महामारी ( क्योंकि तीसरी लहर का डर अभी बना हुआ है ) के बीच ही सौ साल पुरानी इमारत के बहाने कोई जलसा आयोजित करना ,केवल फिजूलखर्ची का नहीं, असंवेदनशीलता का मामला है। करोड़ों रुपए का खर्च होगा। इतने रुपए से कम से कम एक अस्पताल का आमूलचूल परिवर्तन तो हो ही सकता था। यदि इस उपलक्ष्य में बिहार विधानसभा किसी एक अस्पताल का आधुनिकीकरण और विस्तार कर देती, तो इसकी सराहना में कोई भी नतमस्तक होता। लेकिन ,इस जलसे के कुकृत्य की तो केवल निंदा ही की जा सकती है।
मुझे राष्ट्रपति पर भी तरस आता है। वह राष्ट्र के नायक अभिभावक हैं। जब उनके पास आमंत्रण का प्रस्ताव आया था, तब अपनी बुद्धि का थोड़ा इस्तेमाल तो कर लिया होता। उन्हें प्रस्ताव नकार कर बिहार विधानसभा अध्यक्ष को एक नसीहत-भरी चिट्ठी लिखनी चाहिए थी। इसीलिए उन्हें उस ऊँचे ओहदे पर बैठाया गया है। लेकिन, जैसा कि कुछ रोज पहले उनके एक बयान से स्पष्ट हुआ था, उनकी दिलचस्पी अपनी तनख्वाह और पेंशन गिनने में अधिक है। ऐसे राष्ट्रपति से हम उम्मीद ही क्या कर सकते हैं। पूर्व विधायक के नाते मुझे भी इस समारोह में शामिल होने का न्योता है। लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे इसमें शामिल होने से मना कर रही है। मेरी नजर में यह एक अपराध में शामिल होने जैसा है। यह बिहार की अस्मिता के साथ क्रूर मजाक है।
(प्रेमकुमार मणि हिंदी के चर्चित कथाकार व चिंतक हैं। दिनमान से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक पांच कहानी संकलन, एक उपन्यास और पांच निबंध संकलन प्रकाशित। उनके निबंधों ने हिंदी में अनेक नए विमर्शों को जन्म दिया है तथा पहले जारी कई विमर्शों को नए आयाम दिए हैं। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।)
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।