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आर्यन के बहाने: सज़ा नहीं शिक्षा और संस्कार से नशाबंदी संभव

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक, दिल्ली:

आजकल अखबारों और टीवी चैनलों पर लगातार आर्यन खान का मामला जमकर प्रचारित हो रहा है। आर्यन और उसके कई साथियों को नशीले पदार्थों को सेवन करने के अपराध में पकड़ा गया है। ऐसे कई दोषी हमेशा पकड़े जाते हैं लेकिन उनका इतने धूम-धड़ाके से प्रचार प्रायः नहीं होता लेकिन आर्यन का हो रहा है, क्योंकि वह प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता शाहरुख खान का बेटा है। सरकार को इस बात का श्रेय तो देना पड़ेगा कि उसने शाहरूख के बेटे के लिए कोई लिहाजदारी नहीं दिखाई लेकिन मैं पहले दिन से सोच में पड़ा हुआ था कि जो लोग नशेड़ी होते हैं, उन्हें तभी पकड़ा जाना चाहिए, जब वे कोई अपराध करें। अगर वे सिर्फ नशा करते हैं तो किसी दूसरे का क्या नुकसान करते हैं ? वे तो अपना ही नुकसान करते हैं, जैसे कि आत्महत्या करनेवाले करते हैं। नशे और आत्महत्या, दोनों ही अनुचित हैं और अकरणीय हैं लेकिन इन्हें अपराध किस तर्क के आधार पर कहा जा सकता हैं? उन्हें आप सजा देकर कैसे रोक सकते हैं?

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सख्त सजाओं के बावजूद नशे और आत्महत्याओं के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। इन्हें रोका जा सकता है— शिक्षा और संस्कार से! यदि बच्चों में यह संस्कार डाल दिया जाए कि यदि तुम नशा करोगे तो आदमी से जानवर बन जाओगे याने जब तक तुम नशे में रहोगे, तुम्हारी स्वतंत्र चेतना लुप्त हो जाएगी तो वे अपने आप सभी नशों से दूर रहेंगे। हमारी सरकार का यह रवैया अजीब-सा है कि शराब की दुकानें तो वह खुले-आम चलने दे रही है लेकिन लगभग 300 नशीली दवाओं के सेवन पर उसने कानूनी प्रतिबंध लगा रखा है। ये नशीली दवाएं शराब की तरह स्वास्थ्यनाशक तो हैं ही, ये मानव-चेतना को भी स्थगित कर देती हैं। इनके उत्पादन, भंडारण, व्यापार और आयात पर प्रतिबंध आवश्यक है लेकिन इनके सेवन करनेवालों को अपराधी नहीं, पीड़ित माना जाना चाहिए। उन्हें जेल में सड़ाने की बजाय सुधार-गृहों में भेजा जाना चाहिए। जेल में भी मादक-द्रव्यों का सेवन जमकर चलता है याने कानून पूरी तरह से नाकारा हो सकता है जबकि नशा-विरोधी संस्कार हमेशा मनुष्य को सुद्दढ़ बनाए रखता है।

मुझे खुशी है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि नशाखोरी के ऐसे मामलों को ‘अपराध’ की श्रेणी से निकालकर ‘सुधार’ की श्रेणी में डालिए। इस संबंध में संसद के अगले सत्र में ही नया कानून लाया जाना चाहिए और अंग्रेज के जमाने के पोगापंथी कानून को बदला जाना चाहिए। पुराने कानून से नशाबंदी तो नहीं हो पा रही है बल्कि रिश्वतखोरी और अवैध व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है। आर्यन को छुड़ाने के लिए 25 करोड़ रु. रिश्वत की एक खबर अभी सामने आई है और पिछले दिनों गुजरात के मूंद्रा बंदरगाह से 3 हजार किलो नीशीली चीजें पकड़ी गई हैं। यदि इस कानून में संशोधन होता है और समस्त नशीले पदार्थों के उत्पादन, भंडारण और व्यापार पर प्रतिबंध लगता है तो भारत को दुनिया का शायद अप्रतिम देश होने का सम्मान मिल सकता है। नशाखोरी के मामले आए दिन सुनाई पड़ते हैं लेकिन आर्यन के बहाने इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि उसका जड़ से समाधान सामने दिखाई पड़ने लगा है। 

 


 

(लेखक दैनिक नवभारत टाइम्‍स के साथ न्‍यूज एजेंसी भाषा के संपादक रहे हैं। संप्रति भारतीय विदेश नीति और भारतीय भाषा सम्‍मेलन के अध्‍यक्ष के साथ स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।