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कोयला से जुड़े व्यवसाय में लगे 1.3 करोड़ लोगों पर रोजगार का संकट, स्टडी में हुआ खुलासा

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द फॉलोअप टीम, दिल्ली: 

सोमवार को भारतीय प्रतिष्ठान (एनएफआई) ने एक वेबिनार के दौरान भारत में कोल ट्रांजीशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के आकलन के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट (https://www.nfi.org.in/resources) जारी किया। अध्ययन में यह आकलन किया गया है कि "एक अनुमान के मुताबिक कोयला खनन, परिवहन, बिजली, स्पंज आयरन, स्टील और ईंट भट्ठा के क्षेत्रों में कार्यरत कम-से-कम 1.3 करोड़ से अधिक लोग भविष्य में होने वाले कोल ट्रांजीशन के कारण प्रभावित होंगे"। भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के सचिव डॉ. अनिल जैन ने इसे जारी किया। 

कोल ट्रांजिशन से जीवन और व्यवसाय प्रभावित
लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए डॉ. जैन ने कहा, "एनएफआई द्वारा अपने शोध में एक कोल ट्रांजीशन वर्कर को परिभाषित करने का विचार वास्तव में मुझे बहुत पसंद आया। हमें ट्रांजीशन के कारण प्रभावित होने वाले लोगों, जिनका जीवन और करियर इससे प्रभावित होगा, की पहचान इस तरीके से करने की जरूरत है, जिससे कि सही-सही उनकी संख्या पता की जा सके और उन्हें लक्षित किया जा सके। ऐसा करना स्थानीय लोगों की मदद करेगा और यूनियनों को साथ लाएगा। इसलिए, इस अंतरराष्ट्रीय (ग्लासगो) समझौते के केंद्र में केवल प्रभावित आबादी की संख्या नहीं बल्कि उनका जीवन है। यह अध्ययन कई अर्थों में समस्या की जटिलता और व्यापकता के आकलन में मदद करेगा।

कोल ट्रांजिशन का इन राज्यों में होगा प्रभाव
कोल ट्रांजीशन से सबसे ज्यादा झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के लोग प्रभावित होंगे। झारखंड (15) और पश्चिम बंगाल (11) के कम-से-कम आधे जिले, ओडिशा और छत्तीसगढ़ (9) के 30 प्रतिशत जिले अगले 30 से 50 वर्षों में प्रभावित होंगे, जब भारत धीरे-धीरे कोयले का इस्तेमाल खत्म कर देगा। चरणबद्ध तरीके से कोयले का इस्तेमाल समाप्त करने से ये जिले राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और वित्तीय रूप से प्रभावित होंगे। विशेष रूप से इन जिलों के ऐसे समुदायों पर असर पड़ेगा जिनकी जीवन पद्धति पिछले 200 वर्षों से कोयला खनन पर आधारित रही है। 

उर्जा अंतरण की दोहरी मार ना झेलें नागरिक
भारतीय प्रतिष्ठान के कार्यकारी निदेशक बिराज पटनायक ने कहा, "भारत के कुछ सबसे हाशिए पर रहने वाले समुदाय लगभग एक सदी से संसाधनों के कारण अभिशप्त हैं। बेहतर भविष्य की दिशा में बढ़ते हुए, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऊर्जा अंतरण की ऐसी दोहरी मार न झेलें जो उन्हें फिर से पीछे धकेल दे। जलवायु परिवर्तन पर हमारे पहले चरण की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि भारत को जलवायु परिवर्तन और जस्ट ट्रांजीशन (न्यायपूर्ण अंतरण) के लिए अपना खुद का मुहावरा और दृष्टिकोण विकसित करना होगा। इस पर विचार करना होगा। 

एनएफआई के अध्ययन में हुआ बड़ा खुलासा
एनएफआई अध्ययन का आकलन है कि भारत के 135 जिलों में कोयले पर निर्भर दो या दो से अधिक परिसंपत्तियां हैं, यानी कि कोयला खदान, थर्मल पावर प्लांट, स्पंज आयरन प्लांट या स्टील प्लांट, जो कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने से प्रभावित होंगे। ट्रांजीशन नीतियां तैयार करने के लिए चरणबद्ध योजना हेतु कोयला और कोयले से संबंधित परिसंपत्तियों की जिला स्तर पर प्रभावित होने वाले सभी सेक्टर्स के मैपिंग की आवश्यकता होगी। 

कोयला संबंधित इकाइय़ों में रोजगार का अवसर कम
भौतिक संपत्तियों से परे, भारत को विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों के कार्यों और उनकी योग्यता से मेल खाने वाली प्रशिक्षण और कौशल-निर्माण नीतियों के साथ अनुरूपता स्थापित करने की आवश्यकता होगी। एनएफआई की स्वाति डिसूजा, रिसर्च लीड - क्लाइमेट एक्शन, के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। उन्होंने कहा, "इन उद्योगों में कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने से दूसरों की तुलना में कोयला ढुलाई या बिजली और आयरन स्टील इकाइयों में कोयला संचालन (कोल हैंडलिंग) जैसे कार्यों के जरिए मिलने वाले रोजगार के अवसर ज्यादा घटेंगे। 

प्रशिक्षण या कौशल प्रदान कर भी समस्या का निजात नहीं
यहां तक कि फिर से प्रशिक्षण देकर या कौशल प्रदान कर भी सभी चुनौतियों से एक ही तरीके से नहीं निपटा जा सकता क्योंकि अध्ययन बताता है कि विभिन्न जॉब प्रोफाइल और उद्योगों में सामाजिक-आर्थिक संकेतक और कौशल स्तर अलग-अलग होते हैं।

ग्लासगो में संपन्न कोप-26 में उठा था ये मुद्दा
ग्लासगो में हाल ही में संपन्न कोप-26 में, भारत ने ग्लासगो जलवायु समझौते के एक हिस्से पर सहमति व्यक्त की है, जो कि जस्ट ट्रांजीशन का समर्थन करते हुए कोयला बिजली संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान करता है। समझौते में यह भी माना गया है कि इस महत्वपूर्ण दशक में सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान और समानता के आधार पर त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता है। साथ ही ये कार्रवाइयां विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के आलोक में और सतत विकास एवं गरीबी उन्मूलन के प्रयासों के संदर्भ में व्यापक लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं को दर्शाती हों। 

कोयले का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से कम होगा
डॉ. जैन ने कहा, "कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने पर अंतरराष्ट्रीय सहमति है और भारत ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं। मुझे यकीन है कि आने वाले वर्षों में हम पर यह दबाव होगा कि हमने चरणबद्ध तरीकों को ज़मीन पर कितना उतारा। हम इससे बच नहीं सकते हैं और न ही भारत अपनी प्रतिबद्धता कम करने का इरादा रखता है।
भारत को ऐसे भविष्य के लिए अपनी अर्थव्यवस्था, अपने कार्यबल और अपने समुदायों को तैयार करने की आवश्यकता है जो कोयले पर आधारित और आश्रित नहीं होगी और इस योजना पर आज से की कार्य शुरू करने की जरुरत है।