द फॉलोअप टीम, रांची:
देश में कोरोना संक्रमण के मामले धीरे-धीरे कम होने लगे हैं वहीं ब्लैक फंगस की बीमारी ने चिंता बढ़ा दी है। ब्लैक फंगस के बारे में डॉक्टर चंद्रभूषण ने बताया कि ये ये इंफेक्शन उन लोगों में देखने को मिल रहा है जो कोरोना होने से पहले किसी दूसरी बीमारी (शुगर आदि) से ग्रसित थे या फिर जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, आंख दर्द, नाक बंद या साइनस और देखने की क्षमता पर असर शामिल है
आइए जानते हैं कि आखिर ब्लैक फंगस की बीमारी कोरोना संक्रमण के समय ही क्यों हो रही है
प्रश्न: कोविड से रिकवर हुए काफी समय हो गया, लेकिन खांसी आ रही है तो क्या करें?*
इस प्रश्न पर डॉ. चंद्रभूषण कहते हैं, 'इस समय कई लोगों में पोस्ट कोविड में खांसी आ रही है। अगर बुखार या कोई और लक्षण नहीं है, तो परेशान न हों। कई लोगों को दो महीने तक खांसी आती है, लेकिन धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं। अगर खांसी तेज है या बलगम के साथ ब्लड आ रहा है तो अपने डॉक्टर को दिखा सकते हैं।'
प्रश्न: क्या नए वैरिएंट्स लोगों को दोबारा संक्रमित कर सकते हैं?
'इस बारे में कोई स्पष्ट धारणा नहीं है।छ कुछ शोधों के मुताबिक, जब तक एंटीबॉडीज रहती हैं, तब तक व्यक्ति को कोरोना का संक्रमण दोबारा नहीं होता या कह सकते हैं कि उनमें लक्षण ही नहीं आते यानी वायरस कमजोर हो जाता है, क्योंकि एंटीबॉडी उन्हें बचाती है। शरीर में एंटीबॉडीज कितने दिन तक रहती हैं, इसके बारे में भी अलग-अलग रिसर्च हैं। कोई तीन महीने तक तो कई छह या आठ महीने तक कहते हैं। मगर इस बात का ध्यान रखना है कि वायरस कितना भी रूप बदले या कोई भी वैरिएंट आए, उससे बचाव का उपाय कोविड नियमों का पालन ही करना है।
प्रश्न: ब्लैक फंगस की बीमारी कोरोना संक्रमण के समय ही क्यों हो रही है?
डॉ. चंद्र भूषण कहते हैं, 'ब्लैक फंगस हमारे वातावरण में पहले से मौजूद है, लेकिन इस वक्त कोविड काल में म्यूकोरमाइकोसिस बीमारी की तरह लोगों में पाई जा रही है। इसकी वजह ये है कि कोविड के इलाज में, जो दवा दी जा रही है, जैसे डेक्सामेथासोन और दूसरे स्टेरॉयड जिनसे इम्यूनिटी कम होती है! खासतौर पर डायबिटीज वाले मरीजों में इसका ज्यादा असर होता है या फिर ऐसे लोग जिन्हें वेंटिलेटर पर रखते हैं, उनमें ये पाया गया है। इसलिए खुद से स्टेरॉयड या कोई भी दवा का प्रयोग ना करें। डॉक्टर की निगरानी में ही दवा लें।
प्रश्न: डायबिटीज के मरीजों में तेजी से फैलता है संक्रमण
भारत में ब्लैक फंगस के मामले अधिक आने की सबसे बड़ी वजह यह है कि दुनिया भर में सबसे अधिक डायबिटीज के मामले भारत में हैं। यहां डायबिटीज के लगभग 7 करोड़ मरीज हैं। इनमें से कई लोगों को कोरोना इंफेक्शन होने पर स्टेरॉयड देना पड़ता है, जिनसे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और कम हो जाती है। ऐसे मरीजों के ब्लैक फंगस संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बहुत अधिक रहता है।
उनके मुताबिक भारत में न सिर्फ डायबिटीज की मरीजों की संख्या बहुत अधिक है, बल्कि उनमें बड़ी तादाद ऐसे रोगियों की है, जिनका शुगर कंट्रोल में नहीं रहता। इसके साथ ही यहां इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल लंबे समय तक हो रहा है, जो बहुत खतरनाक साबित हो रहा है। इसके अलावा हाइजीन यानी स्वच्छता की कमी और संक्रमित इक्विपमेंट के इस्तेमाल के कारण भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़ रहे हैं।
प्रश्न: ऑक्सीजन थेरेपी और स्टेरॉयड के चलते बढ़ रहे केसेज!
हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ऑक्सीजन थेरेपी की वजह से कितने फीसदी लोगों को ब्लैक फंगस हो रहा है और उनमें से स्टेरॉयड पर कितने लोग हैं। स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल रिस्की होता है लेकिन जिनकी ऑक्सीजन थेरेपी चल रही है, उनके मामले में सांस लेने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को डिसइनफेक्ट करने पर भी ध्यान देना होगा। शायद इन बातों पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने के कारण ही ब्लैक फंगस के मामले बढ़ रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि स्टेरॉयड का इस्तेमाल जरूरत से छह गुना अधिक हो रहा है, जिसके चलते शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है. ऐसे हालात ब्लैग फंगस को फैलने का पूरा मौका दे रहे हैं।
प्रश्न: तीन चरणों में ब्लैक फंगस का इलाज
ब्लैक फंगस के इलाज को लेकर डॉक्टर का कहना है कि इसका इलाज तीन चरणों में है।
पहले चरण में ब्लैक फंगस के कारणों का पता लगाया जाए और स्टेरॉयड का इस्तेमाल बंद किया जाए, शुगर लेवल को तुरंत चेक किया जाए। दूसरे चरण में सर्जरी के जरिए एग्रेसिव तरीके से डेड टिश्यू हटाए जाएं जिसमें कई स्पेशलिस्ट्स की जरूरत पड़ सकती है। इस चरण में यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि फंगस और न फैले। इसके बाद तीसरे चरण में ब्लैक फंगस पर काबू पाने के लिए दवाइयां दी जाएं, इस समय इसके इलाज में Amphotericin B इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है।
प्रश्न: ब्लैक फंगस से खुद को कैसे बचाएं?
अगर किसी को डायबिटीज है और कोरोना हो गया है, तो ब्लड शुगर पर ध्यान दें। जब भी कोरोना का उपचार करें या घर पर रहकर इलाज कर रहे हैं तो स्टेरॉयड की जरूरत नहीं है और अगर ले रहे हैं तो डॉक्टर की निगरानी में ही लें।