द फॉलोअप टीम, रांची:
भारत का दर्दनाक विभाजन धर्म के नाम पर जरूर हुआ, लेकिन पाकिस्तान मजहब के नाम पर एकजुट न रह सका। पूर्वी पाकिस्तान में जमकर असंतोष उभरा। शेख मुजीबुरर्हमान के मुक्ति आंदोलन को पाकिस्तानी सेना ने कू्ररता से कुचलने की कोशिश की। तब भारत ने विश्व बिरादरी के दबाव पर दखल दिया। बंग्लादेश के आंदोलन का समर्थन किया गया। तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उनके निर्देश पर भारतीय सेना ने सीधी कार्रवाई की। पाकिस्तानी फौजियों के अत्याचार से बंग्लादेश वासियों को मुकति दिलाई। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा मां कहा था। 1971 में आखिर बंगलादेश विश्व के मानचित्र पर नए देश के रूप में उभरकर सामने आया। बंगलादेश मुक्ति युद्ध के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं। कांग्रेस यह 50 वीं वर्षगांठ शौर्य गाथा के रूप में मनाएगी।
प्रदेश कांग्रेस ने तैयारी को लेकर बैठक की
दिवंगत प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के शानदार और अनुकरणीय नेतृत्व में उप-महाद्वीपीय भू-राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। इस बातों से युवा पीढ़ी को अवगत कराने हेतु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के निर्देशानुसार झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के तत्वावधान में आज शाम 04 बजे महत्वपूर्ण बैठक प्रदेश कांग्रेस अध्य्क्ष डॉ रामेश्वर उरांव की अध्यक्षता में हुई। बैठक में बंगलादेश युद्ध 1971 के 50वीं वर्षगांठ शौर्य गाथा के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। मौके पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, समिति के चेयरमैन राजेश ठाकुर, समन्वयक संजय लाल पासवान, संयोजक प्रदीप तुलस्यान, सदस्य गीताश्री उरांव, अमुल्य नीरज खलखो, ज्योति सिंह मथारू, ले. कर्नल समित साहा, राणा संग्राम सिंह एवं जय शंकर पाठक, राकेश सिन्हा मौजूद थे।
सभी जिलाध्यक्षों को दिया गया निर्देश
बैठक की जानकारी देते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने बताया कि सभी जिलाध्यक्षों को यह निर्देश दिया गया कि अपने जिले से भूतपूर्व सैनिकों को चिन्हित करते हुए उसकी सूची प्रदेश कांग्रेस को अविलंब उपलब्ध करायें। ताकि उन्हें जिला एवं राज्य स्तर पर सम्मानित किया जा सके एवं प्रदेश कांग्रेस इस अवसर पर सभी प्रखंडों एवं जिला में कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया गया तथा युवा कांग्रेस और एनएसयुआई को यह निर्देश दिया गया कि अपने संगठन के माध्यम से राज्य एवं जिला स्तर पर निबंध प्रतियोगिता करवाने का निर्देश दिया गया है।
भारत ने तब बॉर्डर खोल दिए थे, प्रवासी कैम्प बनवा दिए: रामेश्वर उरांव
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सह राज्य के वित मंत्री डाॅ रामेश्वर उरांव ने कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान की बर्बरता और रक्तपात से मुक्ति वाहिनी का जन्म हुआ। इसी दौरान पड़ोसी मुल्क की अस्थिरता का असर भारत पर पड़ा। वहां से लोग भाग-भागकर भारत की शरण लेने लगे। माना जाता है कि उसी दौर में लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत आए। भारत ने बॉर्डर खोल दिए थे, प्रवासी कैम्प बनवा दिए थे और शरणार्थियों की देखभाल के लिए काफी आर्थिक-राजनैतिक प्रयास हो रहे थे। इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ये मामला पहले वैश्विक पटल पर उठाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. दूसरी ओर जनसंहार जारी था। लगातार विस्थापन और क्रूरता को देखते हुए भारत ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देने का फैसला किया। पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी पाकिस्तानी सैनिकों ने ही मुक्ति वाहिनी का रूप ले लिया था, जो गुरिल्ला युद्ध के जरिए आजादी पाने की कोशिश में था।
जनरल मानेकशॉ की अगुवाई में भारतीय सेना ने की कार्रवाई: सुबोधकांत
पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुबोधकांत सहाय ने कहा कि जनरल मानेकशॉ की अगुवाई में भारतीय सेना मुक्ति वाहिनी के साथ शामिल हुई। भारत की इस घोषणा के बाद 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर हमला बोल दिया। लेकिन भारतीय सैनिकों ने तुरंत ही उन्हें सीमा से खदेड़ दिया। पाकिस्तानी सेना के हमले की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना रणनीति के साथ बांग्लादेश की सीमा में घुसी और लगभग 15 हजार किलोमीटर के दायरे को अपने कब्जे में ले लिया। संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों ओर से लगभग 4 हजार सैनिक मारे गए।
90 हजार से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदी बनाए गए: राजेश ठाकुर
आयोजन समिति के चेयरमैन सह प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि 16 दिसंबर को महज 13 दिनों के भीतर पाकिस्तान ने भारत के आगे घुटने टेक दिए। 90 हजार से भी ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बना भारत लाए गए थे, जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया. 16 तारीख को सेना के समर्पण के बाद पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा एक नए देश के रूप में सामने आया, जिसका नाम बंगलादेश हुआ।