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बंधु तिर्की ने सीएम को लिखा पत्र, ST-SC कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण के लिए बने नई नियमावली

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द फॉलोअप टीम, रांची:
कार्मिक, प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने एसटी/एससी कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने संबंधी अधिसूचना जब से जारी की है, इसपर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की ने इसको रद्द करते हुए नई प्रोन्नति नियमावली बनाए जाने की मांग की है। इस संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र भी लिखा है। जिसमें कहा है कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजातियों के कर्मियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने संबंधी नियम का गठन गलत है। कहा कि प्रभारी नियमों में संशोधन से पूर्व quantifiable data on inadequate representation, efficiency of administration और क्रीमी लेयर से संबंधित आंकड़ों को एकत्रित कर एक प्रतिवेदन तैयार करने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन करना बिल्कुल ही निराधार एवं तथ्यहीन है।

पहले प्रमोशन के बाद ही कर्मचारी हो जाता है सीनियर
तिर्की ने कहा परिणामी वरीयता के बारे में कोई भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मी, पदाधिकारी अपनी प्रथम प्रोन्नति के पश्चात वरीयता धारित हो जाता है। उसे अक्षुण्ण रखने हेतु संसद से पारित 85 वें संशोधन के आलोक में झारखंड सरकार कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के परिपत्र संख्या 1862 दिनांक 31.03. 2003 में स्पष्टीकरण किया गया है। जिसके आधार पर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के प्रोन्नति के पश्चात प्राप्त वरीयता के आलोक में अनारक्षित पद पर उनकी प्रोन्नति की जा सकती है। 



विस में सवाल उठाने पर विशेष समिति का किया गया था गठन
बंधु ने कहा कि महाधिवक्ता के दिए परामर्शानुसार एम. नागराज के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के उपरांत भी कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग द्वारा सरकारी सेवा में आरक्षण रोस्टर नियमों के अनुसार प्रोन्नति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सरकारी सेवकों की परिणामी वरीयता अक्षुण्ण रखने संबंधी जारी दिशा-निर्देश में कोई संशोधन की आवश्यकता नहीं है। कह कि उनके द्वारा विधानसभा में उठाया गया अल्पसूचित प्रश्न के आलोक में अध्यक्ष झारखंड विधान सभा द्वारा आलोच्य मामले की जांच हेतु विशेष समिति का गठन किया गया था।

सरकार को गुमराह करना चाहता है विभाग
बंधु ने कहा कि विधानसभा के विशेष समिति के जांच प्रतिवेदन के विरुद्ध उच्च स्तरीय समिति का गठन करना बहुत ही संदेहास्पद प्रतीत होता है। इससे बिल्कुल स्पष्ट होता है कि कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग मुद्दे को भटकाते हुए सरकार को गुमराह करना चाहता है। जिससे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मियों को प्रोन्नति से सदा वंचित रखा जाए।