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झारखंड सरकार के विरोध के बावजूद कोल ब्लॉक की नीलामी शुरू, सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई

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द फॉलोअप टीम, नई दिल्ली:
झारखंड सरकार के विरोध के बावजूद कोयला खदानों की कॉमर्शियल माइनिंग की नीलामी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस मामले में केंद्र के रुख से झारखंड सरकार को करारा झटका लगा है। झारखंड की कोल ब्लॉक नीलामी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार झारखण्ड सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ में सुनवाई हुई।

राज्य सरकार की कोर्ट में दलील
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि जिन इलाकों के कोल ब्लॉक की नीलामी की गई है, वहां के कुछ इलाकों में एलिफेंट कॉरिडोर है और कुछ स्थानों पर नेशनल टाइगर रिजर्व का क्षेत्र पड़ता है। ऐसे में अगर माइनिंग होती है तो पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ेगा, इसलिए उत्खनन नहीं करने दिया जाए। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने अदालत में कहा कि वे कुछ बिंदुओं पर बहस करना चाहते हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने शुक्रवार को इस मामले को सूचीबद्ध करते हुए अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित की है।

समता जजमेंट का हवाला दिया गया
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा देश के अन्य कोल ब्लॉक की नीलामी समेत झारखंड के कॉल ब्लॉक्स की नीलामी की प्रक्रिया के विरुद्ध झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। राज्य सरकार द्वारा इस मामले में दो याचिकाएं दायर की गई हैं, वहीं झारखंड नागरिक के प्रयास द्वारा भी इसी मामले में जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि जिन कोल ब्लॉक की नीलामी की गई है वह शेड्यूल एरिया की है। वहां रहनेवाले लोगों को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। इसके साथ ही समता जजमेंट का हवाला देते हुए कहा गया है कि जंगल में रह रहे लोगों को विस्थापित कर देना सही नहीं है और कॉल ब्लॉक की नीलामी की प्रक्रिया राज्य सरकार की सहमति के बिना की गई है।

गिरिडीह-लातेहार के कॉल ब्लॉक की बोली लगी
इधर, मंगलवार को आंध्रप्रदेश मिनरल्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने गिरिडीह के ब्रह्मडीहा कोल ब्लॉक के लिए सर्वाधिक बोली लगाकर हासिल कर लिया। इससे पहले सोमवार को हिंडाल्को कंपनी ने सबसे अधिक बोली लगाकर चंदवा की चकला खदान के लिए ले ली। निजी कंपनियां अब खनन के साथ-साथ कोयले की बिक्री भी करेंगे, जो अब तक सरकार के नियंत्रण में था। बता दें कि केंद्र ने जुलाई-2019 में कॉमर्शियल कोल माइनिंग का निर्णय लिया था।

जून माह में केंद्र के फैसले को मिली है चुनौती 
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार ने जून महीने में केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसमें आरोप लगाया कि खदानों की नीलामी के बारे में राज्य सरकार से परामर्श नहीं लिया गया। यह एकतरफा निर्णय है। केंद्रीय नीति में पारदर्शिता नहीं है। राज्य और लोगों को कैसे फायदा मिलेगा? यह भी सवाल उठाया है कि चकला खदान के पास 55 प्रतिशत, चोरीटांड़ तिलैया का 50 प्रतिशत और सेरेगढ़ा का 44 प्रतिशत वनक्षेत्र खत्म हो जाएगा। विस्थापितों के हक-अधिकारों का संरक्षण कैसे हो सकेगा।

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नीलामी से रोजगार बढ़ने का दावा
बता दें कि सरकार का दावा है कि इन प्रस्तावित बदलावों से खनन में बड़ी तदाद में रोजगार पैदा किया जा सकेगा और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, लेकिन जानकार रोज़गार के इन सरकारी दावों के साथ-साथ, इस निजीकरण के पर्यावरण, खदान बहुल राज्यों के जंगलों और वहां के आम जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर भी सवाल उठा रहे हैं। इन बदलावों के बारे में जानना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि ये बदलाव खनन में सीधे तौर पर शामिल देश की एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करेंगे।