द फॉलोअप टीम, नई दिल्ली/पटना
बिहार के विधानसभा चुनाव के ऐलान से डेढ़ साल पहले जदयू के उपाध्यक्ष रहे प्रशांत कुमार ने 'बिहार की बात' की थी। माना जा रहा था कि इस बार के चुनाव में प्रशांत बैकडोर की जगह फ्रंट पर आकर इलेक्शन लड़ेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दिलचस्प बात यह भी है कि वह इलेक्शन तो लड़ नहीं रहे, साथ ही बिल्कुल खामोश बैठे हुए हैं।
प्रशांत का ट्विटर हैंडल भी खामोश है !
एक ओर जहां चुनाव को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नेता और दल अलग-अलग दावे और वादों के जरिए जनता के बीच जा रहे हैं, तो वहीं प्रशांत भूषण ने इन चुनावों पर कोई ट्वीट तक नहीं किया। उनका आखिरी ट्वीट जुलाई में कोरोना के संबंध में था। दूसरी ओर पटना के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि प्रशांत किशोर रालोसपा समेत अन्य छोटे दलों से बात कर महागठबंधन में अपना भविष्य तलाश कर रहे हैं। वहीं जदयू का मानना है कि लोजपा के एनडीए गठबंधन छोड़ने के पीछे प्रशांत ही वजह हैं।
चिराग को प्रशांत ने समझाया !
मिली जानकारी के अनुसार प्रशांत किशोर ने लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को समझाया कि यह राज्य का आखिरी विधानसभा चुनाव है, जिसके बाद पुराने समाजवादी नेताओं की पीढ़ी नेपथ्य में चले जाएंगे और ऐसे में उन्हें बड़ा रिस्क लेना चाहिए। वहीं लोजपा के प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने इन दावों को बेकार का बताते हुए खारिज कर दिया।
आखिर प्रशांत को किस दिन का है इंतजार?
प्रशांत के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि उनकी सफलता जीतनेवाले को चुनना है। यूपी चुनाव में सपा और कांग्रेस की हार में वह भी असफल हुए। वहीं कइयों का मानना है कि प्रशांत को खारिज ना करते हुए साल 2025 का इंतजार करना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत के एक करीबी ने कहा कि 'कोरोना की वजह से जमीनी स्तर पर नहीं उतरे, लेकिन डिजिटली बिहार की बात सबसे बड़ा पॉलिटिकल पेज है जहां 20 लाख से ज्यादा फॉलोवर्स हैं। बहरहाल, पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होगा। इस बीच प्रशांत किशोर कहां हैं, इस पर लोग सवाल जरूर कर रहे हैं।