द फॉलोअप टीम, दिल्ली:
केरल के बाद अब उत्तर भारत में एक नया वायरस दस्तक दे चुका है। इस जीका वायरस का फिलहाल कोई इलाज नहीं है। ऐसे में मच्छरों से बचकर रहना ही प्रमुख उपाए है। आमतौर में जीका वायरस उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में कहीं नहीं पाया जाता है। कानपुर में पहला केस मिलना भी अपने आप में सवाल है, क्योंकि नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी (एनआइवी) की लैब में हुई जांच में पुष्टि हुई है। अभी तक डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया ही कहर बरपा रहे थे। जीका का वायरस मिलने से मच्छरों से बचाव के हर संभव उपाय अपनाने की जरूरत है। जीका वायरस का संक्रमण भी मच्छरों के जरिए ही फैलता है। डेंगू, चिकनगुनिया, यलो फीवर और वेस्ट नाइल वायरस के संवाहक एडीज प्रजाति के मच्छर हैं, जिनके काटने से इन बीमारियों के वायरस शरीर में प्रवेश करके संक्रमण फैलाते हैं। इनमें एडीज एब्लोपिक्टस और एडीज एजेप्टी नामक मच्छर अधिक घातक होते हैं। जीका वायरस फ्लेविविरिडे फैमली के फ्लेवी वायरस से संबंधित है। जब यह मच्छर जीका वायरस से संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो मच्छर भी संक्रमित हो जाता है, उसके बाद जिस भी व्यक्ति को काटता है वह संक्रमित हो जाता है।
शरीर में जीका वायरस के प्रवेश करने के तीन से 14 दिन के भीतर जीका वायरस के संक्रमण के लक्षण दिखने लगते हैं। जो तीन से सात दिन तक रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति को बुखार है, जो लगातार है। दवाएं खाने में न उतरे, साथ ही डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया व टायफाइड की जांच में पुष्टि न हो। व्यक्ति विदेश यात्रा अथवा जीका प्रभावित क्षेत्र से लौटा हो। ऐसे में जीका वायरस की जांच करानी चाहिए। जीका वायरस भी मच्छर के काटने से फैलता है। जीका वायरस का संवाहक एडीज एजेप्टी नामक मच्छर होता है। इसका मच्छर भी दिन के समय ही काटता है। यह वायरस गर्भवती एवं महिलाओं के लिए अधिक घातक और खतरनाक होता है। वायरस का संक्रमण होने पर वायरस गर्भ में पल रहे बच्चे के ब्रेन पर सीधे अटैक करता है, जिससे बच्चे के सिर का आकार छोटा हो जाता है। बच्चे में विकृति भी आ सकती है। इस मच्छर की वजह से ही डेंगू और चिकुनगुनिया भी फैलता है। आमतौर पर यह वायरस देश के दक्षिण हिस्से के तटीय क्षेत्र में पाया जाता है। मुख्यत: जीका वायरस दक्षिण अफ्रीका के देशों और मध्य अमेरिका में अधिक फैलता है।
जीका के संक्रमण के समान्य लक्षण
- सामान्य से तेज बुखार।
- शरीर में छोटे-छोटे लाल दाने उभर आना।
- आंखों में जलन और लगातार कीचड़ आना।
- मांसपेशियों और जोड़ों में भीषण दर्द व ऐठन।
- तेज सिरदर्द के साथ बेचैनी भी होना।
चलने फिरने में आ जाती लाचारी
जीका वायरस के संक्रमण से बच्चे, बुजुर्ग, वयस्क, महिलाओं व गर्भवती को गंभीर समस्या भी हो सकती है। खासकर गुलियन बेरी सिंड्रोम, न्यूरोपैथी और मायलाइटिस जैसी तंत्रिता तंत्र से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जिसकी वजह से पीडि़त व्यक्ति चलने फिर ने में पूरी तरह से लाचार हो जाता है।
इस तरह करता है हमला
गुलियन बेरी सिंड्रोम पैरों में झुनझुनाहट से समस्या शुरू होती है, धीरे-धीरे व्यक्ति लकवाग्रस्त हो जाता है। उसके बाद दिल की धड़कन असमान्य, चेहरे की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे चेहरे के भाव खत्म होने लगते हैं। व्यक्ति को खाने-पीने व निगलने में दिक्कत होती है। फिर झनझनाहट व शरीर में जलन, पेशाब न उतरन और उठने-बैठने व बोलने में समस्या होने के साथ सांस फूलने लगती है।