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रूस की सैर इन वन क्‍लिक-4: दुबई से आगे निकलता हुआ 20 साल में नया मॉस्को

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सुभाष चन्द्र कुशवाहा, लखनऊ:

हल्की बूंदाबांदी हो रही है। सड़कें गीली हैं फिर भी सड़कों की सफाई के लिए मशीनें चल रही हैं। पानी छिड़कतीं, रगड़तीं और गंदगी खिंचती चल रही हैं ऐसी साफ-सफाई, हमारे लिए कल्पना की चीज है मॉस्को। रूस में लेखकों, वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, सैन्य नायकों आदि सभी को समुचित सम्मान मिला है। मैक्सिम गोर्की की मूर्ति तो लगी ही है, उनके नाम पर एक खूबसूरत पार्क बना है। यह देश, अपने नायकों को समुचित सम्मान दिया है। सड़क और पुल बनाने वाले इंजीनियरों की भी मूर्तियां लगी हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के नायकों की जगह-जगह मूर्तियां लगी हैं। उनके सम्मान में विजय द्वार बने हैं। यहां अरबा स्ट्रीट है, जहां कवि, कविताएं पढ़ते हैं, संगीतकार गाते, बजाते हैं। कोई भी मूर्ति सड़क पर नहीं है और न सड़क को बाधित करती है।

 

20 साल में तैयार नया मॉस्को। दुबई से आगे निकलता हुआ।

मार्क्स, लेनिन, ख्रुश्चेव आदि को छोड़ दें तो वर्तमान राष्ट्रपति की भी कहीं कोई मूर्ति या चित्र नहीं। पूरा शहर जैसे सजाया गया हो। मात्र तीन महीने में चार मंजिला मकान बना लेने की क्षमता है यहां। यहां 19 को चुनाव सम्पन्न हुआ मगर कहीं किसी नेता का कटआउट, पोस्टर या प्रचार न दिखा। हमारे लिए यह स्वप्न लोक से कम नहीं रहा।

 

लेलीनका, रसिया स्टेट लायब्रेरी, मॉस्को के सामने क्राइम एन्ड पनिशमेंट के लेखक दोस्तोवस्की की मूर्ति।

इसके अलावा, दीवारों पर सभी महत्वपूर्ण लेखकों की मूर्तियां स्थापित हैं।

रूसी लेखक अंतोन चेखव की कब्र 

रूसी लेखक Bulgakov की कब्र

रूसी लेखक Mayakovskiy की कब्र

रूस केेेेेेेेेे पूर्व राष्ट्रपति Khrushchev की कब्र 

 

मॉस्को की सर्वाधिक ऊंची जगह, स्पैरो हिल, जहां नैपोलियन आया था। बारिश से बहुत कुछ साफ नहीं है फिर भी। 

यहां मेन होल के ढक्कन तक कलात्मक हैं।

स्पैरो हिल के सामने मॉस्को सिटी स्टेट यूनिवर्सिटी है। 1955 में बनी।

सोवियत संघ के विघटन के पूर्व उसकी  अंतिम पार्लियामेंट, इसी भवन में सम्पन्न हुई थी। वर्तमान में भी यह पार्लियामेंट है।

 

यहां के दो चित्रों में से एक मॉडल है जिसके टॉप पर लेनिन की मूर्ति लगी है। इस भवन को जिस जगह पर बनाया जाना था वहाँ, ताजमहलनुमा चर्च बनाया गया क्योंकि सोवियत संघ के विघटन के बाद, वह नहीं बना।

 

लेनिन कुछ वर्षों तक जिस भवन में रहे, उसकी बाहरी दीवार पर यह चित्र उकेरा गया है। अभी भी जगह-जगह लेनिन की स्मृतियों को बचा कर रखा गया है जबकि स्टालिन को हटा दिया गया है। चर्च की सत्ता कम्युनिस्टों को पसन्द नहीं करती। देश में मध्यम वर्ग की संख्या 50 प्रतिशत के लगभग है जो निजी संपत्ति का हिमायती है। वह भले ही लेनिन का सम्मान करें मगर कम्युनिज्म का समर्थक नहीं है। 35 प्रतिशत गरीब जनता निश्चय ही कम्युनिज्म की समर्थक है। एक वर्ग ऐसा है जो कम्युनिज्म का समर्थक होते हुए भी वर्तमान कम्युनिस्टों को पसन्द नहीं करता। ऐसी स्थिति में फिलहाल रूस में कम्युनिस्टों के वापस आने की सम्भावना नहीं है।

 

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(यूपी सरकार की उच्च सेवा से रिटायर्ड अफसर सुभाष चंद्र कुशवाहा लेखक ,इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी हैं। आशा, कैद में है जिन्दगी, गांव हुए बेगाने अब (काव्य संग्रह), हाकिम सराय का आखिरी आदमी, बूचड़खाना, होशियारी खटक रही है, लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) और चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन (इतिहास) समेत कई पुस्तकें प्रकाशित। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन। संप्रति लखनऊ में रहकर स्वतंत्र लेखन। अभी वह रूस की यात्रा पर हैं।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।