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साबरमती का संत-10: हे राम ! भक्तों को माफ करें, गांधीवादी भक्तों को भी

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(‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था’ - आइंस्टीन ने कहा था। आखिर क्षीण काया के उस व्यक्‍ति में ऐसा क्या था, कि जिसके अहिंसक आंदोलन से समूची दुनिया पर राज करने वाले अंग्रेज घबराकर भारत छोड़ गए। शायद ही विश्व का कोई देश होगा, जहां उस शख्सियत की चर्चा न होती हो। बात मोहन दास कर्मचंद गांधी की ही है। जिन्हें संसार महात्मा के लक़ब से याद करता है। द फॉलोअप के पाठक अब सिलसिलेवार गांधी और उनके विचारों से रूबरू हो रहे हैं। आज पेश है,  10वीं किस्त -संपादक। )

भरत जैन, दिल्ली:

आज किसी को भक्त कहना एक प्रकार से गाली हो गई है। यह वर्तमान सरकार के विरोधियों की एक उपलब्धि है। भक्ति चाहे किसी की भी हो यदि आंखें खोल कर न की जाए तो बुरी ही होती है। बहुत से गांधी भक्तों से सोशल मीडिया पर संपर्क है और उनमें से ज्यादातर गांधी का नाम लेकर केवल वर्तमान शासक दल का विरोध ही करना चाहते हैं। जैसे शासक दल के समर्थक भगवान राम का नाम लेकर कुछ लोगों को पीट रहे हैं। बस वैसे ही विरोधी दलों के सदस्य गांधी का नाम लेकर शासक दल को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं, पीट नहीं रहे बस यही गनीमत है और वह भी शायद इसलिए कि उनके पास शक्ति नहीं है। यह गांधीजी को समझने वालों के लिए अफसोस का विषय है।

 

गांधीजी दलगत राजनीति से सदा दूर थे। अंत में कांग्रेस के सदस्य भी नहीं रहे थे। उनका कांग्रेस में सम्मान था। बिना किसी पद के, बिना सदस्यता के भी। आज का शासक दल प्रत्यक्ष में या परोक्ष में गांधी के हत्यारे का समर्थन करता है और गांधी से नफरत करता है। इसी बात का सहारा लेकर विरोधी दलों के शुभचिंतक गांधी का नाम लेकर शासक दल पर आक्रमण कर रहे हैं। गांधी की सोच को समझना बहुत मुश्किल काम है और शायद समझना संभव लगता नहीं क्योंकि गांधीजी वर्तमान आर्थिक व्यवस्था के धुर विरोधी थे। आज स्थिति ऐसी है कि चाहे किसी भी दल की बात करें सभी पूंजीवाद के वर्तमान रूप के समर्थक हैं। भूतपूर्व सोवियत संघ के सभी सदस्य देश पूंजीवाद की दौड़ में शामिल हो गए हैं। चीन जो अपने आप को कम्युनिस्ट देश होने का दावा करता है वह भी पूंजीवादी रास्ते पर ही चल रहा है। हालांकि वह ना तो लोकतांत्रिक है और ना ही उदारवादी जो कि पूंजीवाद की सफलता के लिए आवश्यक है। 

 

 

गांधीजी का सिद्धांत था कि  लोगों को वैसे ही रहना चाहिए जैसे कि पहले रहते थे गांवों में, अपने ऊपर आत्मनिर्भर होकर। गांधीजी विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विरोधी नहीं थे परंतु इनके आधार पर कुछ लोग अमीर हो जाएं और बाकी लोग गरीब रहे गांधीजी को इसी बात पर आपत्ति थी। परंतु आज गांधीजी के विरोधी उन्हें टेक्नोलॉजी का विरोधी , पिछड़ी सोच वाला मानते हैं और उनके समर्थक गांधीवाद के नाम पर केवल सत्ता को पाने का प्रयास ही कर रहे हैं। उनमें से कोई भी गांधी जी के आर्थिक और सामाजिक सोच को मानता हो ऐसा कोई लक्षण नहीं है। वह भी वैसे ही भक्त हैं जैसे कि आजकल बदनाम ' भक्त ' हैं  जिन्हें नहीं पता की राम कितने क्षमाशील थे। हे राम ! भक्तों को माफ करें - हर क़िस्म के भक्तों को।

 

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(लेखक गुरुग्राम में रहते हैं।  संप्रति स्‍वतंत्र लेखन।)

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। द फॉलोअप का सहमत होना जरूरी नहीं। हम असहमति के साहस और सहमति के विवेक का भी सम्मान करते हैं।