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झारखण्ड राज्य विस्थापित, प्रभावित, आयोग का गठन करे सरकार: बंधु तिर्की

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द फॉलोअपी टीम, रांची:
मांडर के कांग्रेसी विधायक बंधु तिर्की ने सीएम हेमंत सोरेन से झारखण्ड राज्य विस्थापित, प्रभावित, आयोग जल्द गठन करने की मांग की है। विधायक ने प्रेस बयान में कहा कि इससे आंदोलनकारियों तथा विशेषज्ञों को प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। 

अव्यक्त गाथाएं अब भी दफन
बंधु ने कहा कि विस्थापन आदिवासी के लिए भारत में एक ऐसी पीड़ा है, जिसके अनकहे अव्यक्त गाथाएं अब भी दफन हैं। विस्थापन को समझना और इस समस्या की तह में जाने का काम अब भी बाकी है। विकास से उपजी विस्थापन की समस्या को आदिवासी समाज का जेनोसाइड कहा जा सकता है जहां आदिवासी धीरे-धीरे धीमी मौत की ओर अग्रसर हो रहे हैं। लेकिन लगातार अभाव और जीवन की बुनियादी समस्याओं से जूझते- जूझते वह कमजोर और असहाय होता जा रहे है। उसके जीवन में प्रगति के तमाम रास्ते बंद हो जाते हैं। 

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1960 से आदिवासी समाज झेल रहा विस्थापन
बंधु तिर्की ने कहा कि विस्थापन की समस्या की शुरुआत झारखंड से ही 1960 में हुई, जो बदस्तूर अब भी जारी है। उन्होंने बताया कि विस्थापन केवल बड़े बांधों की वजह से ही नहीं बल्कि कोयला, बॉक्साइट,  यूरेनियम के खनन से भी बड़े पैमाने पर हुआ है। राष्ट्रीय पार्क सेंचुरी की स्थापना से भी बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है। आजादी के लगभग 70 सालों में एक बड़ी त्रासदी के तौर पर सरकार ने चिन्हित करने का काम किया लेकिन आज तक पुनर्वास की समस्या का कोई निदान नहीं ढूंढा जा सका। पूरे देश में विकासजनित विस्थापन स्थल पर कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जिससे लगे आदर्श पुनर्वास के प्रयास किए जा चुके हैं।

पांचवी अनुसूची के इलाके में हो रहा भूमि अधिग्रहण
यूपीए की सरकार ने 2013 में द राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन रिहैबिलिटेशन एंड रिसेटेलमेंट एक्ट लाया है जिसके तहत यह व्यवस्था है कि पांचवी अनुसूची के इलाके में अर्थात आदिवासी इलाके भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। यदि जमीन का अधिग्रहण आवश्यक है तो ग्राम सभा की सहमति के बाद ही जमीन का अधिग्रहण किया जा सकेगा अगर इसे अक्षरशः लागू किया जाए तो आने वाले समय में विस्थापन का दंश कम हो सकेगा।