द फॉलोअप टीम
2019 के नवंबर महीने में जेएमएम के सुप्रीमो शिबू सोरेन, कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने रांची प्रेस क्लब में अपना निश्चय पत्र यानी घोषणा पत्र जारी किया था। निश्चय पत्र की पहली लाइन थी धधक रहा है झारखंड। ये भरोसे के संकट से जूझ रहा है। ये संकट चौतरफा है। पिछले चुनाव के बाद झारखंडियों के साथ जो छल हुआ, उसकी कसक आज भी हर झारखंडियों के दिल में है। छल और विश्वासघात के जख्म को भाजपा के पांच वर्षों के कुशासन ने और भी गहरा किया है। आइए हम उस निश्चय पत्र की पड़ताल करते हैं कि धधकता झारखंड अबतक कितना शांत हो पाया है। निश्चय पत्र में उल्लेखित बातों का हम सिलसिलेवार ढंग से जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं।
पुलिसकर्मियों को बर्खास्तगी का लेटर मिला
निश्चय पत्र में कहा गया था कि सरकार गठन के दो साल के अंदर राज्य के विभिन्न खाली पड़े सरकारी पदों पर लाखों झारखंडी युवकों, युवतियों की नियुक्ति की जाएगी। एक साल बीतने को है, पदों को भरना तो दूर, जो लोग नौकरी कर रहे थे, उन्हें अपनी नौकरी बचाने के लिए आंदोलन करना पड़ा और लाठियां खानी पड़ी। हम बात कर रहे हैं 3000 से अधिक सहायक पुलिसकर्मियों की। दस दिन से अधिक चले आंदोलन के बाद आश्वासन लेकर ये पुलिसकर्मी घर लौटे थे। लौटते ही इनपर पहाड़ टूट पड़ा। गुमला में 20 से अधिक पुलिसकर्मियों को बर्खास्तगी का लेटर थमा दिया गया है। बता दें कि घोषणा पत्र में साफ कहा गया है कि होमगार्ड और सहायक पुलिसकर्मियों को बहाली में उम्र संबंधी छूट दी जाएगी। साथ ही उनके लिए भविष्य की सभी पुलिस भर्तियों में 50 प्रतिशत पद आरक्षित रहेंगे।
बहुत जल्द अपने वादे भूल गई सरकार
यहां याद दिला दें कि पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने साफ कहा था कि सबकी नौकरी अगले तीन साल तक बनी रहेगी। मानदेय में भी वृद्धि होगी। पुलिस बहाली में मिलनेवाले अतिरिक्त नंबरों में भी बढ़ोत्तरी होगी। अभी पंचायत सचिव अभ्यर्थी, जेटेट पास शिक्षक, होमगार्ड के जवान फिलहाल मोरहाबादी में आंदोलन कर रहे हैं।
अभी तक 46 हजार को नौकरी दी गई
झारखंड सरकार के रोजगार पोर्टल
http://www.jharkhandrojgar.nic.in/ के मुताबिक सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्रों में फिलहाल 93 हजार नौकरियां ही हैं, जबकि रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या राज्य में 8 लाख 48 हजार 079 है। कोरोना के दौर में यानी अप्रैल से सितंबर तक कुल 1 लाख 2 हजार 552 युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया। जिसमें लगभग 46 हजार को नौकरी दी गई।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग में कोई कमी नहीं आयी
निश्चय पत्र में कहा गया था कि राज्य में व्यापक तौर पर हो रही मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे। सख्त कदम उठाने के नाम पर केवल चार नई ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की स्थापना की गई है। इस यूनिट का काम ट्रैफिकिंग से जुड़े मामले दर्ज करना और उनपर कार्रवाई करना है। राज्य में फिलहाल मात्र 12 जिलों में इस यूनिट की स्थापना हो पाई है, जबकि हालात ये है कि दिल्ली के चार बालगृहों में 56 लड़कियां और 10 लड़के रेस्क्यू होने के बाद से वहां पड़े हुए हैं। सरकार की एयरलिफ्ट की घोषणा के अमल में आने का इंतजार कर रहे हैं।
148 गायब बच्चों का कहीं अता-पता नहीं
वहीं साल 2019 में गायब हुए
148 बच्चों का अब तक कोई अता पता नहीं है। इसमें सबसे अधिक संतालपरगना के बच्चे शामिल हैं। यही नहीं सीएम के विधानसभा क्षेत्र बरहेट की बच्चियां भी बड़ी संख्या में गायब हुई हैं। हेमंत सरकार के अबतक के कार्यकाल में कुल 1033 लड़कियों-महिलाओं के साथ
बलात्कार की घटनाएं हो चुकी हैं।
रिम्स में उपकरण खरीद में 20 करोड़ का घपला
झामुमो का वादा था कि प्रत्येक पांच हजार परिवार पर एक एंबुलेंस और प्रत्येक एक हजार परिवार पर एक ममता वाहन की व्यवस्था की जाएगी। इसकी सेवा निःशुल्क रहेगी। बता दें कि
झारखंड में इस वक्त प्रति 18,518 व्यक्ति पर एक डॉक्टर है। हाल ही में अखबार में छपी एक खबर के मुताबिक रिम्स के तीन डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया है। एक ने खराब हालात का जिक्र करते हुए ऐसा किया है। वहीं कंट्रोलर एंड ऑडिटर जेनरल (कैग) के हवाले से छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक रिम्स में इलाज के लिए उपकरण खरीद में लगभग 20 करोड़ रुपए का घपला किया गया है।
अबतक अवैध खनन बंद नहीं हुआ
कहा गया था कि खनन नहीं पर्यटन की विकास नीति के साथ पर्यावरण संरक्षण एवं आदिवासी विकास का मानक तैयार किया जाएगा। इसकी बानगी देखिये। खुद जेएमएम की विधायक और हेमंत की भाभी सीता सोरेन ने 10 अक्टूबर को किए एक
ट्विट में आरोप लगाया कि दुमका में 400 अवैध माइंस और 300 अवैध क्रशर चल रहे हैं। इन अवैध माइंस और क्रशर को डीआईजी, डीसी, डीएमओ दिलीप ताती, डीएसपी विजय कुमार का संरक्षण प्राप्त है। सीएम ने दुमका दौरे के दौरान अवैध खनन बंद कराने की बात कही थी, पर अभी तक कुछ भी बंद नहीं हुआ।
कुपोषण से कई लोगों की मौत हुई
पत्र में कहा गया कि खाद्य सुरक्षा और हर व्यक्ति को भोजन का अधिकार दिलाना झामुमो का लक्ष्य होगा। सरकार बनने के बाद इसे तब खारिज किया गया, जब हेमंत सोरेन ने पिछली सरकार में हुए 20 से
भूख की मौत के मामलों को खारिज कर दिया। हेमंत सरकार ने साफ कहा कि भूख से मौत नहीं हुई है। यही नहीं अबतक के कार्यकाल के दौरान सबसे पहले छह मार्च को बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के करमा गांव के भूखल घासी की मौत भोजन की कमी से हुई। इससे पहले लातेहार जिले के हेरहेंज प्रखंड के केडु गांव में 28 नवंबर से 14 फरवरी के भीतर सात बच्चों की मौत हो गई थी। बीमारी का पता नहीं चल पाया था। स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से गई एक फैक्ट फाइडिंग टीम के मुताबिक यह पूरी तरह कुपोषण का मामला था। इसके बाद बीते 18 मई को लातेहार जिले के दोनकी पंचायत की पांच साल की दलित बच्ची नेमानी कुमारी की मौत भूख से होने की बात परिजनों ने कही। हालांकि प्रशासन ने हर बार की तरह इसे भी नकार दिया। वहीं 1 मई को भी देवघर के मोहनपुर इलाके में 40 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत भूख से हो जाने की खबर सामने आई थी।
ट्रांसफर-पोस्टिंग तबादला उद्योग में तव्दील हुआ
हेमंत सरकार में बड़े पैमाने पर लगभग हर दिन हो रही ट्रांसफर-पोस्टिंग पर तो आम आदमी भी अब चुटकी लेने लगा है। विपक्ष इसे तबादला उद्योग बता रहा है। पैसे की कमी का रोना रोनेवाली यह सरकार डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड में पड़े 3000 करोड़ से अधिक रुपए इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। रोजगार देने के मामले में अबतक सरकार विफल रही है। गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस की ओर से किसानों के कर्जमाफी की घोषणा अभी तक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही है। जाहिर सी बात है, जिस उम्मीद के साथ लोगों ने इनपर भरोसा जताया, वह अब तक तो होल्ड पर ही दिख रहा है। सच कहा जाए तो झामुमो के निश्चय पत्र में किए गए वादों के मुताबिक हेमंत सरकार हर क्षेत्र में फिसड्डी साबित हुई है।