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इश्क में समरीन, सुमन बन गई; धर्म बदल कर बॉयफ्रेंड मित्रपाल से रचा ली शादी

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द फॉलोअप डेस्कः
उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक मुस्लिम युवती ने हिंदू युवक से शादी कर ली। युवती का नाम समरीन बताया जा रहा है। हिंदू धर्म अपनाने के बाद उसने अपना नाम सुमन यादव रख लिया। सुमन ने मित्रपाल नाम के हिंदू युवक से शादी करके सनातन धर्म अपना लिया है। बरेली के मणिनाथ स्थित अगस्तय आश्रम मंदिर में हिंदू रीति रिवाज से पहले शुद्धिकरण हुआ फिर मित्रपाल से शादी की। इस दौरान युवक के परिजन भी साथ रहे। युवक के परिजनों ने कहा कि समरीन ने हिंदू रीति रिवाज के साथ शादी की है, यह हमारे घर की आजीवन बहू रहेगी। वहीं आने जाने और पहनने पर कभी कोई पाबंदी नहीं उठानी पड़ेगी। 


कैसे हुई मुलाकात 
बरेली के कुंआ डांडा सेंथल निवासी समरीन उर्फ सुमन यादव ने बताया कि मैं बालिग हूं और कक्षा 5 तक ही स्कूल गई हूं। एक जनवरी 2002 मेरी जन्म की तारीख है। युवती ने बताया कि मैं बालिग हूं और मुझे अपनी शादी करने का पूर्ण अधिकार है। अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन कर शादी कर रही हूं। समरीन से सुमन यादव यादव बनकर कहा कि मेरे पिता कपड़ों का काम करते हैं। दो साल पहले समरीन की दोस्ती बरेली के इज्जतनगर क्षेत्र के बरकापुर निवासी मित्रपाल के साथ हुई थी। युवक के पड़ोस में समरीन की रिश्तेदारी है, जहां समरीन एक शादी समारोह में गई थी। यहीं से उसकी जान पहचान मित्रपाल से हुई। मित्रपाल कक्षा 8 तक पढ़ा हुआ है और 12 हजार रुपये की प्राइवेट नौकरी करता है। 


उसके बाद दोनों ने एक दूसरे का मोबाइल नंबर लिया और चोरी छिपे बात करने लगे। यह बात जब समरीन के परिवार को पता चली तो उन्होंने उसे डांटा व घर से निकलने पर रोक लगा दी। लेकिन अपने प्रेमी मित्रपाल को पाने के लिए समरीन ने अपने घर को छोड़ दिया। समरीन उर्फ सुमन यादव ने कहा कि मुस्लिमों में महिलाओं की इज्जत नहीं है. बिना बुर्के के घर से नहीं निकल सकते, किसी से बात नहीं कर सकते। घर में भी कोई आये तो वहां भी परिवार के लोग नजर रखते हैं। 


समरीन उर्फ सुमन यादव ने बताया कि एक साल से मैं धर्म परिवर्तन के लिए सोच रही थी। जब मैं अपने प्रेमी मित्रपाल से मिलती और अन्य हिंदू परिवारों को देखती तो मुझे उनका रहन सहन अच्छा लगता था। मैं नमाज भी नहीं पढ़ती थी, न ही मुझे इस्लाम धर्म पसंद है। समरीन ने आगे बताया कि जब मैं अपनी  हिंदू सहेलियों के घर जाती तो वहां अच्छा लगता, जो बहू होती थी वह साड़ी या सूट सलवार पहने हुए होतीं थीं, लेकिन पल्ला नहीं करती थीं। मैं कहती थीं कि हमारे यहां तो बिना बुर्के के एक मिनट नहीं रहने दिया जाए।