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अंधश्रद्धा कानून बने ताकि दोबारा न हो हाथरस त्रासदी, अंधविश्वास पर किस राज्य में क्या नियम

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द फॉलोअप नेशनल डेस्क 

हाथरस में सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 123 लोगों के मारे जाने के बाद देश में अंधश्रद्धा कानून बनाने पर चर्चा होने लगी है। इस संबंध में राज्यसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आवाज उठाई है। खड़गे ने कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मौजूदा कानूनों के समान एक राष्ट्रीय कानून बनाने पर जोर दिया है। अगर ये कानून  बनता है तो इसका उद्देश्य अंधविश्वासी प्रथाओं पर रोक लगाना होगा। कुछ राज्यों में ऐसे कानून बनाये भी गये हैं। आइये देखते हैं, किस राज्य में अंधश्रद्धा से जुड़ा किस तरह का कानून है। 

कर्नाटक का कानून 

 कर्नाटक में अमानवीय प्रथाओं और काले जादू की रोकथाम के लिए उन्मूलन अधिनियम, 2017 जनवरी 2020 में लागू किया गया था। यह कानून मूल रूप से काले जादू और अंधविश्वास से संबंधित कई प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाता है। साथ ही ये कानून धार्मिक त्योहारों और अभ्यास में किसी व्यक्ति को आग पर चलने के लिए मजबूर करने की प्रथा को रोकता है। इस कानून के अनुसार अदालत पुलिस को अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति का नाम समाचार पत्रों में जारी करने का निर्देश दे सकती है। इसी के साथ ये कानून अमानवीय व बुरी प्रथाओं और काला जादू को अपराध मानता है। इस तरह की गतिविधियों के लिए विज्ञापन, प्रचार या प्रचार के लिए सात साल तक की कैद हो सकती है। साथ ही 5,000 से लेकर 50,000 रुपये तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। 

महाराष्ट्र का कानून 

महाराष्ट्र में 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय, बुराई और अघोरी प्रथाओं और काला जादू रोकथाम और उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया है। इस कानून को अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता डॉ नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद लागू किया गया। कानून में मानव बलि और अन्य अमानवीय प्रथाओं की रोकथाम और उन्मूलन के लिए प्रावधानों को लिस्टेड किया गया है। इन कानून के अनुसार दोषी पाये जाने पर 6 महीने से 7 सात साल तक की कैद और 5,000 से 50,000 रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। 

झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान के कानून 

अंधश्रद्धा के खिलाफ बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान में भी कानून बनाये गये हैं। इन राज्यों में मूल रूप से डायन, टोटका और जादू टोना के कारण होने वाली मौतों और अन्य मानवीय व्यवहारों को रोकने के लिए ये कानून प्रभावी हैं। इन राज्यों में अंधश्रद्धा से जुड़े अपराधों के लिए अलग-अलग सजा के प्रावधान किये गये हैं। 

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