द फॉलोअप डेस्क
20 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को भारत सरकार के सामने एक अलग "वरिष्ठ नागरिक मंत्रालय" बनाने की मांग रखने की अनुमति दी। न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत सीधे तौर पर ऐसा मंत्रालय बनाने का निर्देश नहीं दे सकती। मजाकिया अंदाज में उन्होंने कहा कि जज भी वरिष्ठ नागरिकों की उम्र में आते हैं।
याचिका में वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन और राहुल श्याम भंडारी ने तर्क दिया कि भारत में तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी के लिए एक अलग मंत्रालय होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि 2022 में देश में 60 साल और उससे ऊपर की उम्र के 14.9 करोड़ लोग थे, जो कुल जनसंख्या का 10.5% हैं। 2050 तक यह संख्या बढ़कर 34.7 करोड़ (20.8%) हो जाएगी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कमजोर वर्ग में आते हैं और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 (गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार) के तहत विशेष सुरक्षा मिलनी चाहिए। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि जैसे महिलाओं और बच्चों के लिए 2006 में अलग मंत्रालय बनाया गया था, वैसे ही बुजुर्गों के लिए भी अलग मंत्रालय होना चाहिए।
इस समय, बुजुर्गों से जुड़े मामलों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया है, लेकिन उन्हें नशा पीड़ितों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिखारियों के साथ जोड़ा गया है। याचिकाकर्ता ने इसे सुधारने की मांग की है।