गोड्डाः
विश्व आदिवासी दिवस बड़े धूमधाम से मनाया गया। आदिवासियों के लिए कई बड़ी बड़ी बातें भी कही गई लेकिन गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड क्षेत्र के सुंदमोर गांव में एक आदिवासी बच्ची इलाज को तरस रही है। अनाथ नाबालिग बच्ची शांति बास्की अपने इलाज को लेकर काफी परेशान है। उसके ब्रेस्ट में कई गिल्टी है जिसके इलाज के लिए वो काफी परेशान है। शांति अपनी बहन के साथ कस्तूरबा आवासीय विद्यालय में पढ़ाई करती है। उसकी तबियत खराब होने के बाद उसे समाजसेविका बंदना दुबे ने गोड्डा सदर अस्पताल में भर्ती करवाया लेकिन उसके उचित ईलाज के लिए डॉक्टर ने उसे दूसरे अस्पताल में रेफर कर दिया। शांति के पास इतना पैसा है नहीं है कि वह इलाज के लिए बाहर जा सके । शांति को अंदेशा है कि उसे गंभीर बीमारी है जिसका समय पर उपचार बहुत जरूरी है ।
कुछ वर्ष पूर्व प्रशानिक उदासीनता का शिकार हो गया था अनाथ भाई
शांति को एक बड़ा भाई मोहन भी था जिसकी मौत प्रशासनिक उदासनिता के कारण हो गई। जब मोहन बीमार था तब भी बाल संरक्षण ने लापरवाही बरती थी , शांति की बड़ी बहन प्रमिला बताती है कि सरकारी सिस्टम ने भाई पर उस वक्त ध्यान नहीं दिया था और उसका भाई भूख के कारण मर गया था । उस वक्त अगर प्रशासन ने हमलोगों पर ध्यान दिया होता तो आज उसका भाई जिंदा होता ।
कहीं शांत भी ना हो जाए शिकार
प्रमिला कहती है कि जब भाई बीमार था तो कोई देखने नही आया ,न कोई सुविधा मिली भाई की मौत हो गई। आज बहन गंभीर बीमारी से जूझ रही है, जिसका समुचित जांच और ईलाज समय पर होना बहुत जरूरी है लेकिन क्या पता मेरी बहन भी भाई की तरह लापरवाह सिस्टम का शिकार न हो जाय। बाल संरक्षण या जिला प्रशासन तब देखने आता है जब कोई अनहोनी हो जाय और मामला मीडिया में आ जाए। ऐसे किसी को कोई फिक्र नहीं रहता है कि हमलोग कैसे रहते हैं , पिछली बार जब भाई को लेकर मामला उठा तो कई अधिकारी घर पर पहुंचे थे, विधायक दीपिका पांडे और विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश के बाद जिला प्रशासन जागी थी ,लेकिन फिर सबकुछ शांत हो गया ,कोई अधिकारी फिर लौटकर नहीं आये की किस हाल में हैं हमसभी ।
सरकार से बहन के ईलाज के लिए गुहार
शांति की बीमारी को लेकर बड़ी बहन बताती है कि इसके इलाज में काफी पैसे खर्च होंगे यहां का अस्पताल रेफर कर दिया है। अब इसका इलाज बाहर के अस्पताल में होगा , हमलोग कस्तूरबा में रहकर पढ़ाई करते हैं ऐसे में हमारे पास इसके इलाज के लिए फूटी कौड़ी भी नही है । एक घर मिला है सरकार की ओर से लेकिन वो भी अभी अधूरा ही है हमलोग जब छुट्टी में स्कूल से आते हैं तो इधर उधर रहकर छुट्टी काट लेते हैं। इस बार जब छोटी बहन बीमार पड़ी तो हमने बंदना दीदी को फोन की जिसके बाद दीदी ने शांति को डॉक्टर से दिखाई लेकिन इसके ईलाज के लिए डॉक्टर ने रेफर कर दिया है, अब हमें सरकार से मदद की शख्त जरूरत है लेकिन अबतक कोई देखने नहीं आया है ।
समाजसेविका बंदना दुबे बनी है एकमात्र सहारा :
स्वामी विवेकानंद अनाथ सुरक्षा आश्रम चलाने वाली समाजसेविका बंदना दुबे ने बताया कि शांति मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र की आदिवासी बच्ची है। सरकार का भी इस ओर ध्यान नहीं है ,भाई के गुजर जाने के बाद दोनो बहन कस्तूरबा विद्यायल में रहकर पढ़ाई करती है लेकिन जब भी छुट्टी होता है तो वो हमे फोन करती है और हमारे पास आ जाती है। जहां उसे अच्छे देखरेख में रखा जा रहा है लेकिन शांति को ब्रेस्ट में 3 बड़ा गिल्टी हो गया है डॉक्टर ने उसके बेहतर इलाज के लिए बाहर रेफर कर दिया है अब शांति को सरकार के मदद की जरूरत है ताकि वो अपना समुचित ईलाज कर सके और स्वस्थ होकर अपने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सके ।
मुख्यमंत्री और जिला उपायुक्त से मदद की आस
शांति और परमिला को अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और जिला उपायुक्त पर ही आसरा है वो कहती है कि शायद इनलोगों तक मेरी बात पहुंचे जिससे मेरी बहन का ईलाज संभव हो सकता है । अन्यथा भाई मोहन की तरह ही मेरी बहन इलाज के आभाव में हमे छोड़ न दे ।