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कहानी यथार्थ होते हुए भी कल्पना के माध्यम से रची जाती है: अलका सरावगी 

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रांची 

रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान (TRI), रांची की ‘रचनात्मक लेखन कार्यशाला’में लेखिका अलका सरावगी ने कहा कि कहानी यथार्थ होते हुए भी कल्पना के माध्यम से रची जाती है। कहानी का मूल तत्व किस्सागो होता है। उन्होंने महात्मा गांधी पर लिख रही नये उपन्यास के कुछ हिस्से भी सुनाए और अपनी रचना प्रक्रिया भी प्रतिभागियों से साझा किये। प्रतिभागियों ने उपन्यास और कहानी लिखने की कला के बारे में सवाल पूछे। झारखण्ड के डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर दीपक बाड़ा ने कहा कि शोषण करने वाले लोग मेनस्ट्रीम सिनेमा बना रहे हैं। शोषित समाज जब सिनेमा बनाता हैं, तो उसे ही पैरलल सिनेमा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि अनुवाद के जरिए एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति की यात्रा की जाती है। शोध संस्थान के डायरेक्टर रणेंद्र ने कहा सभी कहानियों को तार्किक नजरिए से देखने की जरूरत है।

प्रतिभागियों से जानकारी साझा किये

मुंबई के पटकथा लेखक मिथिलेश प्रियदर्शी ने कहानी की संरचना पर प्रतिभागियों से जरूरी जानकारी साझा किये। उन्होंने एक कहानी में किरदारों की रचना, उनकी यात्रा, उनके लक्ष्य और कहानी के अंत पर विशेष बातचीत की। सिनेमा कार्यशाला में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली के एलुमिनाई और वरिष्ठ नाटककर्मी संजय लाल ने एक्टिंग की कक्षा में पैरलल सिनेमा की फिल्मों को दिखाकर उन फिल्मों के किरदारों की एक्टिंग पर प्रतिभागियों से विशेष चर्चा की।

कहानी और संस्मरण के बीच का अंतर समझाया

प्रसिद्ध कहानीकार विनोद यादव ने कहानी और संस्मरण के बीच के अंतर को समझाया। उन्होंने कहा कि कहानी में कल्पनाओं से रचना की जाती है। संस्मरण में कल्पनाएं नहीं होती वहां वास्तविक घटनाओं का जिक्र होता है। पैरलल सिनेमा की कक्षा में राहुल सिंह ने पैरलल सिनेमा के विकास और उद्भव के बारे में बात की। कहा कि पैरलल सिनेमा की फिल्मों का विषय आम आदमी के जीवन का सच दिखाता है। पैरलल सिनेमा बनाने का एक कारण उस दौर की सामाजिक संस्कृति और भाषा का वास्तविक चित्रण किया जाना था। उन्होंने इस दौरान मृणाल सेन की फिल्म मृग्या दिखाकर प्रतिभागियों से चर्चा भी की।