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Budget Session 2022 : प्रोन्नति से संबंधित इस विधेयक का सत्ता पक्ष ने भी किया विरोध, पढ़िए रिपोर्ट

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रांची: 

झारखंड विधानसभा में आज राज्य सरकार के पदों पर आरक्षण के आधार पर प्रोन्नत सरकारी सेवकों की परिणामी वरीयता का विस्तार विधेयक-2022 सदन से ध्वनिमत से पारित हुआ। विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने खड़े होकर इस विधेयक का विरोध किया। सत्ता पक्ष की दीपिका पांडेय सिंह, ममता देवी, पूर्णिमा नीरज सिंह ने अपने अपने सीट पर खड़े होकर इसका विरोध किया।

सेवा की अवधि को बनाएंगे आधार
बता दें कि 25 फरवरी 2022 को कैबिनेट आरक्षण के आधार पर सरकारी सेवकों की प्रोन्नति के लिए विधेयक 2022 को मंजूरी दी थी। इसके तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कोटे के सरकारी सेवक पदों में आरक्षण की नीति के अनुरूप प्रोन्नति पाने वाले परिणामी वरीयता के हकदार होंगे। पदोन्नत ग्रेड में वरीयता का निर्धारण कोटि को ध्यान में लाये बिना सेवा की अवधि के आधार पर ही किया जायेगा।

इस विधेयक पर भाजपा विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी, अमित मंडल, मनीष जयसवाल, आजसू विधायक लंबोदर महतो और माले विधायक बिनोद सिंह ने संशोधन लाया था और सरकार से इसे प्रवर समिति में भेजने का आग्रह किया।

बिल को प्रतिष्ठा का विषय बनाती है सरकार
कई विधायकों ने विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव लाया। विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि सरकार किसी भी विधेयक को प्रतिष्ठा का विषय बना लेती है और सदन मुझ पर चर्चा नहीं होता। हड़बड़ी में विधेयक के पास होने से राज्यपाल वापस कर देते हैं। इससे सरकार की किरकिरी होती है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक जनता के भविष्य और वर्तमान को प्रभावित करने वाला है। कानून बनने के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसलिए किसी भी तरह की त्रुटि को खत्म करके ही विधेयक पास किया जाए।

अमित मंडल ने प्रवर समिति के पास भेजने को कहा
विधायक अमित मंडल ने कहा कि विधायक को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाए। उन्होंने कहा कि यह सरकार ओबीसी के गर्दन पर छुरी चलाने की तैयारी कर रही है। ओबीसी का गर्दन काटकर एसटी-एससी को आरक्षण मिले यह में मंजूर नहीं है। सरकार बताए कि परिणामी वरीयता का डेफिनेशन क्या है। ओबीसी को एडजस्ट करने के लिए इस बिल में क्या प्रावधान है। आने वाले समय में ओबीसी कोटा के अधिकारी को प्रमोशन दिया जा सकता है या नहीं।

विधायक लंबोदर महतो ने दिया जरूरी सुझाव
विधायक लंबोदर महतो ने भी विधेयक को प्रवर समिति में भेजने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि डॉ प्रवीण शंकर बनाम राज्य सरकार मामला कोर्ट में लंबित है। अगर मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है तो उससे जुड़ा मामला सदन में कैसे लाया जा सकता है। जब तक प्रवीण शंकर मामले में फैसला नहीं आ जाता विधेयक नहीं लाना चाहिए। सरकार बताये कि 50% आरक्षण में एसटी को कितना और एससी को कितना दिया गया है।

मनीष जायसवाल ने हाईकोर्ट का हवाला दिया
विधायक मनीष जायसवाल ने कहा कि इससे जुड़ा मामला हाईकोर्ट में स्थगित है इसलिए विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओबीसी को जो 14 परसेंट आरक्षण मिलता है उसे इस विधेयक में निरस्त किया जा रहा है। इसके एवज में ओबीसी को क्या दिया जा रहा है यह स्पष्ट होना चाहिए। क्या इस बिल के माध्यम से सरकार ओबीसी का गला काटना चाहती है।

माले विधायक ने भी प्रवर समिति में भेजने की मांग की
माले विधायक विनोद सिंह ने भी बिल को प्रवर समिति में भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि पिछले सत्र में भी जैसे तैसे मॉब लिंचिंग विधेयक और पंडित रघुनाथ मुरमू विधेयक सरकार ने पास करा दिया था जो राजभवन से वापस कर दिया गया। इसलिए सरकार बिल पर पूरी तरह चर्चा करने के बाद ही सदन से पास कराया।

बीजेपी विधायकों ने वेल में आकर हंगामा किया
विधेयक पर सरकार की ओर से संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि इस बिल के लाने से रुका हुआ प्रमोशन होगा। वहीं बिल के पास होने के दौरान बीजेपी के विधायक वेल में आ गए और हंगामा करने लगे। तब आलमगीर आलम ने कहा कि संविधान में ओबीसी आरक्षण का प्रावधान है तो बताएं। उन्होंने कहा कि यह लोग ओबीसी के नाम पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, लेकिन ओबीसी का आरक्षण 27 से 14% करने वाले यही लोग हैं।