द फॉलोअप डेस्क, रांची
आदिवासी समुदाय की पहचान और भावना से जुड़ी एक बहुप्रतीक्षित मांग ‘सरना धर्म कोड’ लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है। आदिवासी समुदाय का यह मुद्दा विशेष रूप से जनगणना में एक अलग कॉलम निर्धारित करने के लिए उठाया गया है। यह धर्म कोड धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व की पहचान की रक्षा करेगा। ये बातें पूर्व झारखंड आंदोलनकारी और लोहरदगा के पूर्व विधायक कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत ने कही है।
धार्मिक मान्यताओं की रक्षा अत्यंत आवश्यक
नीरू शांति भगत ने कहा कि आदिवासी समुदाय के लिए यह मांग ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिसमें जल जंगल और जमीन को देवता के रूप में पूजा जाता है। आदिवासी समुदाय के लिए इन धार्मिक मान्यताओं की रक्षा अत्यंत आवश्यक है। इनकी जड़ें उनके पूर्वजों और प्रकृति के साथ गहरे जुड़े हुए हैं।
झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों में यह समुदाय इस आस्था का पालन करता है और सरना धर्म को अपने धार्मिक अस्तित्व के रूप में स्वीकारता है। झारखंड में इस मांग को लेकर आदिवासी संगठनों द्वारा लगातार आंदोलन किया जाता रहा है। 2011 की जनगणना में झारखंड में लगभग 50 लाख लोगों ने सरना को अपना धर्म घोषित किया। लेकिन जनगणना में इसके लिए कोई अलग कॉलम निर्धारित नहीं था। आदिवासी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि 1871 से 1951 तक की जनगणनाओं में आदिवासी धर्म के लिए एक अलग कॉलम था। अब इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
पूर्व विधायक कमलकिशोर भगत ने उठाई थी मांग
झारखंड विधानसभा ने नवंबर 2020 में सर्वसम्मति से ‘सरना आदिवासी धर्म कोड’ का प्रस्ताव पारित किया था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को पत्र लिखा था और संसद में भी इस विषय पर ध्यान आकर्षित किया गया था। बता दें कि झारखंड आंदोलनकारी और पूर्व विधायक कमलकिशोर भगत ने भी कई वर्षों पहले इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था।
आदिवासी समुदाय की आवाज़ को उच्चतम स्तर तक पहुंचाने और उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक अस्तित्व की रक्षा के लिए सरकार से सकारात्मक पहल की अपील की जा रही है। गौरव और सम्मान की रक्षा के लिए आदिवासी महिला और जनप्रतिनिधि के रूप में इस विषय पर उचित कदम उठाने के लिए आग्रह है।