द फॉलोअप डेस्क
साल 2000, भारत के नक्शे पर तीन नए राज्य नजर आए। उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड। गाना गूंजा- अलग भईल झारखंड, अब खईहे शकरकंद। आजादी के बाद से ही झारखंड अपनी अलग पहचान के लिए संघर्ष कर रहा था। जयपाल सिंह की अगुवाई वाली झारखंड पार्टी शुरु से ही अलग राज्य के लिए संघर्षरत थी। हालांकि, पार्टी में आपसी कलह की वजह से 1967 में कई फाड़ हो गए। इसके बाद एक पार्टी बनी बिहार प्रान्त हुल झारखण्ड जिसके नेता थे शिबू सोरेन। हालांकि, शिबू सोरेन को यह पता था कि इस दल से उनकी राजनीति नहीं हो पाएगी। विनोद बिहारी महतो ने शिबू सोरेन और एके राय के साथ एक नए दल का गठन किया, झारखंड मुक्ति मोर्चा। वर्तमान परिदृश्य में यह कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा देश की सबसे मजबूत क्षेत्रीय दलों में शामिल है। कारण क्या? यात्रा कैसी? किसने पहुंचाया फर्श से अर्श तक? और भविष्य किसका? आइए चर्चा करते है इन तमाम सवालों पर...
पहला महाधिवेशन करने में जेएमएम को लगे 10 साल
आंदोलन के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल मांगने वाले दल को लोगों ने जब चवन्नी और अठन्नी भी दिया तो पार्टी नेतृत्व में यह उम्मीद जगी कि उन्हें पसंद किया जा रहा है। 1973 में बना झारखंड मुक्ति मोर्चा को अपना पहला महाधिवेशन करने में 10 साल लग गए। 1984 में निर्मल महतो ने पार्टी का अध्यक्ष पद संभाला। यही समय था जब झामुमो तेजी से मजबूत हुआ। निर्मल महतो की हत्या के बाद पार्टी की कमान शिबू सोरेन ने खुद संभाली और राज्य में पार्टी को बड़ी पहचान दिलाने में लग गए। साल 1990 में पार्टी ने मात्र 10 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की मगर उसके बाद से हर चुनाव में दल को आसमान ही दिखा। राज्य गठन के वक्त पार्टी के 12 विधायक थे। साल 2005 में 17, साल 2009 में 18, साल 2014 में 19, साल 2019 में 30 और 2024 में 34 विधायक चुने गए। 38 साल तक पार्टी के अध्यक्ष पद की लंबी पारी के दौरान ही मजदूरों और झारखंडियों की राजनीति करने वाले शिबू सोरेन कब दिशोम गुरु बन गए पता ही नहीं चला।
पार्टी की उम्मीद पर खड़े उतरे हेमंत सोरेन
हालांकि, बढ़ती उम्र ने अब शिबू सोरेन को शारीरिक रूप से कमजोर कर दिया है। और इधर झामुमो समर्थकों के दिल में अब एक नया चेहरा राज कर रहा है, हेमंत सोरेन। झारखंड के मुख्यमंत्री और शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन अब पार्टी के मुखिया के तौर पर सामने आ चुके है। चाहे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोड़कर रखने की बात हो या आम जन के बीच अपनी बात पहुंचाने की, हेमंत सोरेन हर जगह बड़ी ही मजबूती से अपना कदम जमा चुके है। साल 2015 में शिबू सोरेन और झामुमो ने जिस उम्मीद से कार्यकारी अध्यक्ष का पद बनाया और जिम्मेदारी हेमंत सोरेन को दी वह उस पर पूरी तरह से खड़े उतरे। इतना तो तय है कि हेमंत सोरेन ही अब झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व करेंगे और भविष्य में भी शायद उनकी जगह लेना मुश्किल होगा।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से और मजबूत हुआ दल
2024 के विधानसभा चुनाव से पहले हुई गिरफ्तारी के बाद जब हेमंत सोरेन वापस आए तो अटकलें थी कि अब वह कमजोर हो जाएंगे, मगर हुआ ठीक इसके उल्टा। हेमंत सोरेन भी मजबूत हुए और पार्टी भी। आत्मविश्वास इतना कि हेमंत सोरेन ने हाल ही में यह कहा कि अगर मैं 2024 लोकसभा चुनाव के वक्त बाहर होता तो बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाती। हालांकि, उस दौर में भी ऐसा नया चेहरा निकला और निखरा, चेहरा ऐसा जिसके झारखंड की वर्तमान राजनीति में अहम भूमिका होने के कयास भी लगाए जाते है, नाम कल्पना सोरेन। हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जब राज्य की राजनीति में झामुमो के भविष्य पर कई सवाल थे, तब हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने बागडोर संभाली। प्रदर्शन इतना शानदार की अगले ही चुनाव में पार्टी ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाया। कयास तो यह भी लग रहे थे कि 2024 विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद पार्टी सरकार में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं मगर कल्पना सोरेन ने काफी कम समय में पार्टी में अपना कद बहुत बड़ा कर लिया है।
दिशोम गुरु ने हेमंत सोरेन के लिए मांगा आशीर्वाद
शिबू सोरेन ने अपने संघर्ष से पार्टी को देश के मजबूत क्षेत्रीय दलों में शामिल करवाया तो वहीं, हेमंत सोरेन ने इसे झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी बनाई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने 13वें महाधिवेशन में अपना केन्द्रीय अध्यक्ष हेमंत सोरेन को चुना है। शिबू सोरेन ने उनके नाम की घोषना की। वहीं, दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने संस्थापक संरक्षक का पद संभाला। पद संभालते ही शिबू सोरेन ने अपने बेटे और पार्टी के नवनिर्वाचित केंद्रीय अध्यक्ष हेमंत सोरेन के लिए राज्य की जनता से आशीर्वाद मांगा है, तो लोगों को भी उम्मीद है कि हेमंत सोरेन भी शिबू सोरेन की तरह ही पार्टी को अलग ऊंचाईयों तक पहुंचाएंगे।