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पेसा कानून लागू न होने पर रघुवर दास का हेमंत सरकार पर हमला, विदेशी धर्म मानने वालों के दबाव का आरोप

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द फॉलोअप डेस्क
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आज हेमंत सरकार पर बड़ा हमला बोला। वह आज प्रदेश कार्यालय में प्रेसवार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा हेमंत सरकार विदेशी धर्म मानने वालों के दबाव में राज्य में पेसा कानून लागू नहीं कर रही। एक सरना समाज के मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य का जनजाति समाज अपनी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था से वंचित है। उन्होंने कहा कि झारखंड के वीर महानायकों जिसमें धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा,सिदो कान्हू, पोटो हो ने अंग्रेजों से इसी स्वशासन की व्यवस्था के लिए लड़ाइयां लड़ी, संघर्ष किया ,अपने बलिदान दिए। उन्होंने कहा कि 1996 में देश में पेसा कानून लागू किया। जिसके तहत सभी राज्यों ने पेशा नियमावली बनाई। लेकिन अगर झारखंड को देखा जाए  तो हेमंत सरकार पार्ट वन और टू के साढ़े पांच वर्ष बीत जाने के बाद भी एक सरना मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य में पेसा कानून लागू नहीं हुआ है। क्या पेसा कानून लागू होने से हेमंत सरकार को खतरा है? क्या इस डर से लागू नहीं कर रहे कि सरकार गिर जाएगी?


रघुवर दास ने कहा कि झारखंड सरकार ने  जुलाई 2023 में पेसा नियमावली प्रारूप को प्रकाशित कर पंचायती राज विभाग द्वारा आम लोगों एवं संस्थाओं से प्रतिक्रिया मांगी थी। इसके बाद मंतव्य के साथ  नियमावली प्रारूप विधि विभाग को भेजी गई थी।महाधिवक्ता ने 22 मार्च 2024 को नियमावली प्रारूप  पर अपनी सहमति दी और कहा कि नियमावली को सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के न्यायिक आदेशों के अनुरूप बनाया गया है। कहा कि इतना ही नहीं इस संबंध में  क्षेत्रीय सम्मेलन में भी गहन विमर्श हुआ जिसमें भारत सरकार के साथ साथ झारखंड ,उड़ीसा,छत्तीसगढ़,तेलंगाना , आंध्र प्रदेश के प्रतिनिधि शामिल हुए और सभी ने पेसा प्रारूप नियमावली पर सहमति दी। जब सारी वैधानिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है तो फिर आखिर कौन सी शक्ति है जो इसे लागू होने से रोक रही है? क्या विदेशी धर्म मानने वालों को नुकसान और सरना धर्म  को फायदा होने वाला है इसलिए इसे लागू नहीं किया जा रहा है?


विदेशी धर्म मानने वाले इस संबंध में लगातार भ्रम फैला रहे हैं। ऐसे लोगों ने समिति बनाकर 2010 से 2017 तक कानून को चुनौती दी। इसे 5 वीं अनुसूची वाले राज्य में नहीं बल्कि 6ठी  अनुसूची में लागू किया जाए । लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए 5 वीं के तहत लागू करने का आदेश दिया। ऐसी ताकतें नहीं चाहती कि आदिवासी समाज की पारंपरिक रूढ़िवादी व्यवस्था आगे बढ़े। आदिवासी धर्म छोड़कर दूसरे धर्म मानने वालों का इस व्यवस्था में प्रवेश चाहते है। जो इस नियमावली की मूल भावना के खिलाफ है। पेसा नियमावली में निर्वाचित व्यवस्था का प्रावधान नहीं है बल्कि इसके तहत पारंपरिक रूढ़िवादी स्वशासन व्यवस्था लागू होगी। 6ठी अनुसूची के तहत ऑटोनोमस कॉन्सिल का प्रावधान है  जिसमें नामांकन के आधार पर प्रतिनिधि चुने जाएंगे। और विदेशी धर्म वाले जिन्होंने आदिवासी परंपरा को छोड़ दिया है इस माध्यम से अपना प्रतिनिधि शामिल करना चाहते हैं।इसलिए ऐसे लोग इसका विरोध कर रहे। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग सत्ताधारी पार्टी और राज्य सरकार ने शामिल हैं। बड़े पद लेकर बैठे हैं। और ऐसे लोगों के दबाव में राज्य सरकार पेसा कानून लागू नहीं कर रही। कांग्रेस झामुमो के लोग ऐसे लोगों की गोद में बैठे हैं।


पेसा लागू होने से 112 अनुसूचित  प्रखंडों में सारी योजनाओं का अधिकार आदिवासी समाज के पारंपरिक प्रधान को मिल जाएंगे। लघु खनिज ,बालू , पत्थर पर उनका अधिकार होगा।इस कारण बालू पत्थर,माफिया,सिंडिकेट भी इसे लागू होने देना नहीं चाहता। हेमंत सोरेन को इतिहास माफ नहीं करेगा। आज सरना मुख्यमंत्री के रहते जनजाति समाज के अधिकारों का हनन हो रहा है। इसलिए उन्हें अविलंब नियमावली को कैबिनेट से पारित कराकर लागू कराना चाहिए। जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने वाले फॉर्म में धर्म का कॉलम जिसे उनकी सरकार ने जोड़ा था को फिर से लागू करने का अनुरोध किया। ताकि आदिवासी समाज की नौकरी, पेशा,को कोई दूसरा छीन नहीं सके। कांग्रेस बताए क्यों 1961 की जनगणना में हटाया आदिवासी कोड