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सिमडेगा में आज भी "गुड़ा तीयन" की बाजारों में काफी है मांग, जाने कैसे करते हैं तैयार

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अमन मिश्रा: सिमडेगा  

भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित एक खूबसूरत और आकर्षक राज्य है झारखंड। जो अपनी विलक्षण खूबसूरती तथा हरे-भरे घने जंगलों के लिए पूरे देश में विख्यात है। झारखंड अपने बेहतरीन जंगल, पहाड़, झरने, विभिन्न संस्कृति और जीवनशैली के लोगों तथा बड़ी संख्या में आदिवासियों के रहने के कारण प्रसिद्ध है। इसे 'लैंड ऑफ फॉरेस्ट' के नाम से भी जाना जाता है। झारखंड के स्थानीय भोजन में रोटी, दाल, सब्जी, मिठाइयां चावल आदि शामिल होता है। इसके अलावा मुख्य व्यंजन अरसा रोटी, ठेकुआ, लिट्टी, धुस्का, मीठा खाजा आदि सम्मिलित हैं। झारखंड राज्य के सिमडेगा जिला में जहां जंगलों में मिलने वाले दर्जनों पेड़ों की पत्तियों को मिलाकर "गुड़ा तीयन" बनाते है। जिसे जिलावासी अपने खानपान में इस्तेमाल करते है। इसे गुड़ा दाल(माड़ में डाल कर बनने वाली सब्जी) के नाम से भी जाना जाता है। यहां ज्यादा तर गरीब आदिवासी अपने खाने में यही सब्जी का उपयोग करते हैं। भले ही ये 4 से 5 मिनट में ही पककर तैयार होता है। पर इसका स्वाद गजब का है। अगर आपकी थाली में गरमा गरम इसे चावल के साथ परोसा जाय। तो शायद आप भी उंगलियां चाटते रह जाएंगे। इसे स्थानीय बोल चाल की भाषा मे गुड़ा तीयन के नाम से जाना जाता है। आज भी जिले के जंगलों में पाए जाने कई अनगिनत पेड़ हैं, जिसकी पत्तियां को ग्रामीण गुड़ा बनाने में उपयोग करते हैं। गुड़ा दाल हरे पत्तियों से बने रहने के कारण यह स्वादिष्ट तो रहता ही है। साथ ही इसमे पौष्टिक भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

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दर्जनों पेड़ों की पत्तियों से बनता है गुड़ा

ग्रामीण जगंलों में पाए जाने वाले पेड़ों के जिन पत्तियों को गुड़ा बनाने के लिए उपयोग में लाते हैं, उनमें मुनगा साग, सरला साग, चाकोर साग, पुटकल साग, कोयनार साग, माथा साग, इमली आदि शामिल है। इसके अलावे पेचकी साग, पालक साग, तीता साग, मेथी साग, सवा साग से भी ग्रामीण गुड़ा बनाते हैं। सबसे पहले ग्रामीण इन पेड़ों की पत्तियों को तोड़कर लाते हैं। फिर सूखा कर इसे ओखली अथवा चट्टान में कूट कर गुड़ा बनाते हैं। हरे पत्तियों से बने रहने के कारण इसे कई महीनों तक गुड़ा दाल बनाने के उपयोग में ग्रामीण लाते हैं।

महज 5 मिनट में पककर तैयार हो जाता है गुड़ा दाल

बताया गया कि इस गुड़ा दाल को पकाने में ज्यादा समय और मेहनत भी नहीं लगता है। बताया गया कि चावल के पकने के बाद उनसे निकला माड़ में ही आवश्यकता अनुसार गुड़ा, नमक और टमाटर डाला जाता है। इसके बाद सिर्फ उबलने के लिए छोड़ दिया जाता है। माड़ पहले से ही गर्म लगता है। इसलिए उबलने में भी ज्यादा समय नहीं लगता है और उबलते ही गुड़ा का दाल तैयार हो जाता है। आसानी से , शून्य खर्च पर मिलने और जल्दी पकने के कारण आज भी गांव के अधिकतर घरों में लोग गुड़ा दाल की सब्जी ही पकाकर खाते हैं।

जिले में आज भी काफी अधिक खपत होती है गुड़ा

ग्रामीण क्षेत्र के अलावे शहरी क्षेत्र के लोग आज भी गुड़ा दाल को बड़े चाव से खाते हैं। यही कारण है कि इसकी ख़पत आज भी काफी अधिक है। जिले के हर छोटे बड़े सभी बाजारों में कई प्रकार के गुड़ा आज भी आसानी से मिलते हैं। बताया गया कि छोटे साइज का दोना में गुड़ा आज भी 10 से 20 रु प्रति दोना की हिसाब से बिकता है।

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